मंगलवार, 25 सितंबर 2012

वेटिंग टिकट का अचानक कन्फर्म होना !

२५/०९/२०१२ को 'नैशनल दुनिया' में !

जनसंदेश में २६/०९/२०१२ को ! 



जैसे ही नई दिल्ली स्टेशन पर उतरा कि अचानक दूसरे प्लेटफॉर्म पर नज़र पड़ी।समर्थन जी होल्डाल लादे हुए कोलकाता राजधानी एक्सप्रेस की ओर बढ़ते दिखाई दिए।मैंने ज़ोर से आवाज़ लगाई,अरे भई, कहाँ चल दिए ?’ सुनते ही वे ठिठक गए और मैं झट से उनके पास पहुँच गया।समर्थन जी तब तक अपना होल्डाल नीचे पटक चुके थे।देखा,उनके पीछे माँ,माटी और मानुष कतारबद्ध होकर खड़े थे।मैंने अपनापा दिखाते हुए पूछा,’भाई,’क्या किसी बैठक में शामिल होने कोलकाता जा रहे हैं या फ़ाइल पास करवाने ?’अब तक वे होल्डाल लादने की थकन से संभल चुके थे और बड़े रहस्यमयी लहजे में बोले,’भई,अबकी बार का जाना पहले जैसा नहीं है।पहले तो जा जाकर वापस आ जाते थे पर इस बार आने के लिए नहीं जाना है,तभी बोरिया-बिस्तर बाँधकर और लादकर लाएँ हैं।

मैंने कारण जानने की गरज से कुरेदा,’मगर आप तो ऐसे न थे।अचानक ऐसा क्या हुआ कि दूसरों की टिकट काटने वाले की ही टिकट कट गई?’ वे अब तैश में बोले,’इस बार सबसे बड़ा धोखा हमारे अपनों ने ही दिया है।किसी की वेटिंग टिकट कन्फर्म न करने वाले निकम्मे ऐन मौके पर सक्रिय हो गए।हमारी तीन दिन से वेटिंग चल रही टिकट को अचानक कन्फर्म कर दिया।हमें पूरा भरोसा था कि इस बार भी हम जायेंगे तो रिटर्न टिकट के साथ,पर इस बीच सरकार जी ने हमारे साथ मजाक किया।हमें माँ,माटी और मानुष के साथ बिलकुल अकेला छोड़ दिया ।

मैंने ज़रा सहानुभूति जताते हुए पूछा,’पर हर बार आपके वार पर चुप और असहाय रहने वाली सरकार जी में इतना दम आया कैसे?’समर्थन जी शून्य की ओर ताकते हुए बोले,’सब हमारे ही भाई-बिरादरों का किया धरा है।सरकार जी को बीच में काफ़ी मौका मिल गया था और उन्होंने सीबीआई जी के द्वारा हमारे जुड़वाँ भाई-बहिन पैदा कर लिए।वे दिखने और टिकने में हमसे मज़बूत निकल रहे हैं।सरकार जी पर चौतरफ़ा माया बरस रही है इसीलिए वे हमारे लिए इस बार मुलायम नहीं हुए।बस यहीं हमसे चूक हो गई और हमारी कठोरता बिलकुल पिलपिली साबित हुई।

लेकिन सुनने में तो आ रहा है कि आपकी मुख्य परेशानी एफडीआई जी रही हैं,ऐसा क्या है जो आप उनसे इतना जलते हैं ? मुझे अब समर्थन जी पर दया आ रही थी।देखिए,ये एफडीआई जी,गैस जी व कोयला जी तो खिलौने मात्र हैं।इनके सहारे हम माँ,माटी और मानुष को बहला लिया करते थे।सबसे बड़ी बात कि ये खिलौने दिल्ली में ही मिलते हैं और हम यहीं से हमेशा के लिए जा रहे हैं।समर्थन जी एक साँस में बोल गए।मैंने दिलासा देते हुए पूछा,’तो क्या किसी ने आते वक्त आपको एक बार भी नहीं रोका ? वे अभी भी गहरी निराशा में थे,कहने लगे,’बस,आखिरी उम्मीद मोहन जी से थी कि दूसरों के सवाल पर हमेशा चुप रहने वाले हमारे जाने के समय तो बोलेंगे,पर हमारे रहते उन्होंने अपना रिकॉर्ड कायम रखा।हमें आते हुए बस टुकुर-टुकुर देखते रहे,जुबान तक न हिली।हमने भी दिल को समझा लिया कि हमारी रुखसती से उनको दिली गम है,इसीलिए वो कुछ कह नहीं पाए होंगे।हमें तसल्ली इसी बात की है कि आखिरी वक्त में हमने अपने चेहरे पर ठीक से कोयले का लेप लगा लिया है ,जिससे माँ,माटी और मानुष को थोड़ा सुकून मिल गया है

तब तक प्लेटफॉर्म पर लगे टीवी स्क्रीन पर मोहन जी का राष्ट्र के नाम संबोधन का फ्लैश आने लगा और लगभग उसी समय समर्थन जी की ट्रेन ने आखिरी सीटी बजा दी।वे बिना और कुछ कहे,देखे,कोयले से दहकते चेहरे के साथ अपने होल्डाल को उठाकर  सामने वाले कोच में परिवार सहित दाखिल हो गए !


कोई टिप्पणी नहीं:

चुनावी-दौरे पर नेताजी

मेरे पड़ोस में एक बड़का नेताजी रहते हैं।आमतौर पर उनकी हरकतें सामान्य नहीं होती हैं पर जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई , उनकी...