अपन बिलकुल नई सोच
और नए ज़माने के हैं,इसलिए नया कुछ भी हो ,अपन को खूब जंचता है।पुराने लोग,पुरानी
चीज़ें किसे अच्छी लगती हैं ? नया जमाना इतनी खूबसूरती से हर जगह अपनी घुसपैठ करता
जा रहा है कि पुरानों का पुरसाहाल है।अब तो पुराने लोग वृद्धाश्रम या पुरानी कोठरी
में ही मिलते हैं और पुरानी चीज़ें कबाड़ी के यहाँ ।हम इसी परम्परा
के नए निर्वाहक हैं और इसीलिए नए साल के आने का इंतज़ार हमें सबसे अधिक रहता है।क्या
है कि जिन बातों से हम आसानी से पीछा छुटाना चाहते हैं,नए साल की सम्भावना उसे
आसान बना देती है।नए साल के आने की प्रक्रिया दो-तीन महीने पहले से ही सक्रिय हो
जाती है।
हमको नए साल की
खुमारी ने घर के हालात से कई बार उबारा है।श्रीमती जी की सिलसिलेवार फरमाइशों को
हम बड़ी चतुराई से नए साल की फेहरिस्त में जोड़ देते हैं।वे पीछे वाले कमरे में लकड़ी
का काम करवाने को कहती हैं या आगरे का ताजमहल देखने की बात,हम बस इतना कह देते हैं
कि थोड़ा सा रुक जाओ ,बस नया साल आने वाला है,हम सारी ख्वाहिशें पूरी कर देंगे।बच्चे
पिछले कई सालों से गाड़ी लेने की माँग कर रहे हैं और हम उन्हें हर बार नए मॉडल और नए
साल का झाँसा दे देते हैं।अब फ़िर से यह माँग ज़ोर पकड़ रही है और मैंने फ़िर उन्हें
नए साल का झुनझुना पकड़ा दिया है।इसलिए मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि नया साल
हमारे लिए कई आफतों का निदान करने वाला होता है।
अब हमारे नेताजी को
ही देख लीजिए।हम लोग इलाके की समस्याएं लेकर जब भी उनके पास जाते हैं तो वे भरपूर आत्मविश्वास
और अपनेपन से सारे काम नए साल में करने का वचन हमें दे देते हैं।वे
नाली,सड़क,पानी,बिजली सभी पर इतना तर्कपूर्ण आश्वासन देते हैं कि उनकी बात पर भरोसा
न करने का कोई कारण नहीं दिखता है।अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए जब हम उनसे मिले थे तो
उन्होंने हमें ईमानदारी से बताया कि देखो,नया साल आने आ रहा है।इस साल का सारा बजट
तो ठिकाने लग गया है।हम भी इसी इंतज़ार में हैं कि वह कितनी जल्दी आए और हम खजाने
से नया बजट निकाल सकें।नेताजी के लिए नया साल बहुत से वादों को आगे सरकाने के काम
आता है।अव्वल तो नये साल तक मोहलत मिल जाती है,फ़िर साल के आने पर वे दो-तीन महीने
तो यूँ ही टाल देते हैं कि अभी तो शुरू ही हुआ है।तब तक कई काम हिल्ले लग जाते हैं
और भाई-लोग कह-सुन कर थक लेते हैं।
हम तो कहते हैं कि
घर में हो या बाहर,नयेपन का कोई जोड़ ही नहीं है।हमारे पड़ोसी निगम के कार्यालय में
बाबू हैं।दिवाली से पहले उनके चेहरे पे रौनक रहती है पर जैसे ही दिवाली की रोशनी
बुझती है,वे भी फक्क पड़ जाते हैं।हमने उनकी उदासी का सबब पूछा तो बोले, ‘यार यह
नया साल भी कितनी देर से आता है।दिवाली के बाद से ही हमारी हालत खराब है।बच्चों की
कई डिमांड अभी भी अधूरी हैं।अब तो नया साल आए,तभी कुछ हो सकता है।’ हमको लगता है कि
नए साल का जादू ही ऐसा है कि उसके आते ही सबकी सारी समस्याएं छू-मंतर हो जाती है।
हमने तो नए साल के
दम पर कई काम छोड़ रखे हैं।नया
साल आता है तो नए विचार आते हैं।सूखे ह्रदय में भी कल्पनाओं का समंदर हिलोरें
मारता है।कवि गिरिजा कुमार माथुर भी कहते हैं कि ‘छाया मत छूना मन, दुःख होगा
दूना’,इसलिए हम तो भविष्य और कल्पना-लोक के घोड़ों में ही सवारी करने में यकीन करते
हैं।नया साल यह सब अपने आने से पहले ही ले आता है।हम हवा में उड़ने लगते हैं।नए साल
में नया सूरज होगा,दिन अलग तरह से दिखेगा और हमारे आस-पास का मंज़र भी नया होगा।जिस
सड़क पर चलने में ट्रेक्टर भी जंग लड़ता है,वह भी नए साल में,बकौल एक नेता,किसी अभिनेत्री के गाल
जैसी चिकनी और रपटीली हो जाती है ।
नए साल के आने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि घर से लेकर बाज़ार तक,समाज से लेकर
राजनीति तक ,सब जगह ढेर सारे सपने पैदा होते हैं,भले ही इनमें से अधिकांश की
भ्रूण-हत्या हो जाती हो।नए साल के आगमन तक सब अच्छा-अच्छा ही दिखता है,ठीक उसी तरह
जैसे सावन के अंधे को हरा-ही हरा दिखाई देता है।इसलिए साल के शुरुआत में ही सब कुछ
अच्छा सोच लेने का लाभ यह है कि पूरे साल आप पर बुरी मनोवृत्तियाँ हावी नहीं होती
हैं।इस बात का फायदा घर,समाज और राजनीति अर्थात हर सेक्टर में वर्ष-पर्यंत
परिलक्षित होता है।यहाँ तक कि संपादक जी की भी हिदायत है कि भाई,कुछ नया लिखिए।अब
हम नयेपन की इस खुमारी से उबर पायें,तभी तो कुछ लिख पाएँगे।
'व्यंग्योदय' में जनवरी 2013 के अंक में प्रकाशित
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