डीएलए में १४/०१/२०१३ को |
क़यामत की रात थी वह।बहुत दिनों से पढ़ते-सुनते आ रहे थे कि बड़ी सटीक भविष्यवाणी
है,कभी खाली नहीं गई है,इस वज़ह से दिल में
बड़ी बेचैनी थी।इस बीच बुरा यह हुआ कि गुजरात और हिमाचल के चुनाव भी निपट चुके थे
और उनके संभावित परिणामों से डर-सा फील कर रहा था।गुजरात को लेकर चुनावी-पंडित ढोल
बजा-बजाकर चिल्ला रहे थे कि मोदी फ़िर से आ रहे हैं।बहुतों की चिंता थी कि अगर वाकई
में आ गए तो क्या होगा ? इस देश का सेकुलर ढांचा कैसे बचेगा ?इस तरह से क़यामत के
डर से ज़्यादा मीडिया में मोदी-डर हावी हो रहा था।इस कारण हमारी खुद की हालत खस्ता
थी।
इधर जैसे ही यह किलियर हो गया कि गुजरात फ़िर से मोदी के पास आ गया है,हम अंदर
तक हिल गये ।क़यामत से भी बड़े डर से निपटने का हमें एक उपाय सूझा।खयाल आया कि अगर
मायावी कलेंडर की भविष्यवाणी सही निकली तो कम से कम मोदी-डर से तो छुटकारा मिल
जायेगा।प्रलय में तो हम सब एक साथ इस दुनिया से उठ जायेंगे,पर यदि ऐसा न हुआ तो
पूरी ज़िंदगी तिल-तिलकर मरेंगे।इस उहापोह में बिस्तर में पड़ने के बजाय हम चुनाव बाद
के हालात जानने भाजपा और कांग्रेस के दफ्तरों की ओर निकल लिए।अंदर की खबर मिल सके,
इसलिए ठण्ड के बहाने हमने अपने को तकरीबन ढक लिया था।
हमने सोचा कि मोदी के बारे में सबसे सटीक आकलन भाजपा मुख्यालय से ही मिलेगा।आख़िरकार
संगठन के लोग चुनाव जीत पाते हों या नहीं
पर उनकी सरकार का चेहरा कौन बनेगा,इसका निर्धारण यही लोग करते हैं।हम जैसे ही
दफ्तर के पास पहुँचे ,खटका-सा लगा।ऐसा लग ही नहीं रहा था कि गुजरात से जीतने वाले
मोदी इसी पार्टी से ताल्लुक रखते हैं।बस तीन-चार लोग सोफे पर औंधे पड़े थे।हमने
थोड़ा दूर खड़े होकर उन सबकी फुसफुसाहट महसूस की।उनमें से एक आकृति कह रही थी कि
इसने हमारा सारा प्लान चौपट कर दिया है।अरे ,कोई तीन बार भी चुनाव जीतता है भला
?मेरे लिए प्रधानमंत्री बनने का आखिरी मौका था,पर अब वो भी ध्वस्त हो गया।केशूभाई
और कांग्रेस से हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी।अब अपने ही बनाये चेले को अपना गुरु बनाना
मेरे लिए कितना असहज होगा।तभी दूसरी आकृति बोली,’वैसे अभी आप नाउम्मीद न हों।हमारे
पास अंतिम हथियार के लिए एनडीए का मंच है।हमें नितीश कुमार से बहुत उम्मीदें हैं।वे
मोदी के लिए सबसे बड़े अडंगेबाज सिद्ध होंगे।हम खुलकर मोदी के खिलाफ नहीं बोलेंगे
क्योंकि बाद में वही हमें राज्यसभा में पहुँचा सकते हैं।’
उनकी बातें सुनकर हमें लगा कि ये तो हमसे भी ज़्यादा डरे हुए हैं और ऐसे में
हमें बेफिक्र रहना चाहिए।आगे की पड़ताल के लिए अब हम कांग्रेस मुख्यालय की तरफ़ बढ़ गए।वहाँ
उम्मीद के विपरीत जश्न-सा माहौल था।हम एक खम्भे के किनारे खड़े हो गए और कान में
बंधे मफलर को थोड़ा ढीला कर दिया।एक प्रवक्ता जोश में कह रहे थे कि हमने हिमाचल तो
जीता ही,गुजरात में भी परिणाम हमारे मुताबिक रहा।हम चाहते तो वहाँ जीत जाते पर
अगले लोकसभा के चुनाव में हमारे लिए मुश्किल हो जाती।अब दूसरे प्रवक्ता ने इसका
राज जानना चाहा तो उसने जोश में अंदर की बात बाहर उगल दी।वह कहे जा रहा था, ‘भई
अगला चुनाव हम इसी मोदी-डर से जीतेंगे।सोचिये,अगर मोदी हार जाते तो हम मतदाताओं को
क्या कहकर अपने पाले में लाते ? इसलिए हमारे लिए यह क़यामत की नहीं जश्न की रात है।अब
कार्यकर्ताओं से कहिये कि वे बाकी बचे समय में मोदी-डर को खूब परवान चढ़ायें।इतना
सुनते ही हमें उस भीषण ठण्ड में पसीना आ गया और हम दबे पाँव घर लौट आए !
2 टिप्पणियां:
आप तो राजनीति के मास्साब हैं
एक बात तो है, कि हिमाचल में काँग्रेस जीत गई आैर गुजरात में पहले से हालत बुरी नहीं हुई. इसके चलते अगर 2014 में लोग फिर से इसे ही सत्ता में ले आएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए
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