बुधवार, 25 सितंबर 2013

लो फ़िर आ गए हम !

जनवाणी में २५/०९/२०१३ को !

 

नुक्कड़ की तरफ बहुत दिनों बाद जाना हुआ तो वहां की बदली रंगत देखकर हम चौंक गए। फिज़ा काफ़ी बदली-बदली नज़र आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि पतझड़ के बाद वसंत आया हो ! सारी दुकानों में बदलाव की बयार थी और खूब चटख रंगों से दीवारें पुत रही थीं।  सभी की नाम-पट्टिकाओं में फेरबदल किया जा रहा था । सबसे ज़्यादा बदलाव दो दुकानों में था,क्योंकि वे सबसे बड़ी हैं और अधिकतम ग्राहकों को आकर्षित भी करती है। जहाँ एक दुकान के बोर्ड से नए मैनेजर के आने का संकेत मिल रहा था,वहीँ दूसरी दुकान ने अपने बुजुर्ग मैनेजर को हटा दिया था। उस पर आरोप था कि अब उसके पास माल बेचने का नुस्खा नहीं रहा। दोनों दुकानों के अन्दर ख़ास तबदीली तो नहीं दिख रही थी पर बाहर काफी रौनक थी। जिस दुकान के मैनेजर बदल गए थे,हम सबसे पहले वहीँ गए।

नए मैनेजर अभी-अभी वीडियो कांफ्रेंस करके आए थे। वे कई फाइलों को उलट-पुलट के देख  रहे थे। कइयों पर काफ़ी गर्द जमीं हुई थी और वे बहुत चिंता-मग्न लग रहे थे। हमने उनके पास पहुंचकर इस बदलाव का रहस्य जानना चाहा। वे बोले,’अगले ही साल इस इलाके का टेंडर उठना है और हमारी समस्या है कि इसमें बोली लगाने वाले कई लोग हैं।हमारे लोगों ने तो टेंडर-प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही नई फाइल को गोदी में उठा रखा है.... तो इसमें समस्या क्या है ?’ हमने बीच में ही बात काट दी। वे एकदम से बिफर पड़े,इस फाइल पर लगे भगवे कवर से हमारे कई साझीदारों का हाज़मा बिगड़ जाता है वहीँ दूसरी फ़ाइल बार-बार दाँव पर लगना चाहती है। वह बहुत पुरानी और परखी हुई है,रथ पर भी घूम चुकी है । कुछ और फाइलें हैं जो अभी दबी पड़ी हैं पर उनके भी ऊपर आने का अंदेशा है।  हमें टेंडर मिलने का अभी पुख्ता भरोसा नहीं है,फिर भी इतनी भारी संख्या में फाइलों के आने से हमारी दुकान के भरभराकर गिर जाने का खतरा बन गया था,तभी हमने एक खुल्लम-खुल्ला सर्कुलर जारी कर दिया है ताकि स्थिति स्पष्ट हो जाय ! इसमेंहालाँकि अंदेशा है कि  ऐसा करने पर बाकी फाइलें फट सकती हैं । पर हम भी मजबूर हैं और इसी को असली और मज़बूत फ़ाइल मान रहे हैं।

तब तक हमने देखा कि पहली दुकान के आगे अचानक चहल-पहल बढ़ चुकी थी। हम उधर की ओर ही चल दिए। दुकान के मैनेजर ने पास में रखी एक कोरी फाइल निकाली और सभी कर्मचारियों को हिदायत देनी शुरू कर दी। वे बोले,’इस फाइल को अच्छी तरह से तैयार किया जाए ताकि अगले साल का टेंडर फ़िर हमें ही मिले। इसके लिए जीतने भी लंबित आदेश हों,उन पर आखिरी नोट लिखकर अमल किया जाय। इस फाइल को सजाने के लिए आतंकवाद,बलात्कार और भ्रष्टाचार की पुरानी फाइलें त्वरित गति से निपटाई जांय। फांसी वाली फाइल तो इसमें नत्थी कर ही दीजिए,लोकपाल का झुनझुना और मंहगाई का सिलेंडर इसकी मुख्य नोटिंग में होना चाहिए। हमारे देखते-ही देखते कई लोग अचानक सक्रिय हो गए। थोड़ी ही देर में ही यह नई फाइल "भारत-निर्माण ' के लेबल के साथ दुकान के काउंटर में रख दी गई। इसके ऊपर-नीचे दूसरी फाइलों का कोई पेंच ही नहीं था,इसलिए इस दुकान का मैनेजर इस बारे में निश्चिन्त दिखा !

थोड़ी देर में बड़ा-सा झोला लादे एक कारिन्दा आया। उसने एक-एक कर कई चीज़ें झोले से निकाली और फाइल पर रखने लगा। हमने इसका कारण पूछा तो रहस्यमयी मुस्कान के साथ उसने बताया कि आने वाले टेंडर को पाने के लिए इस थैले से निकली यह पूजा-पाठ की सामग्री है। अगर यह भेंट ठीक-ठाक हो गई तो दुकान का काम चल निकलेगा। इस पूजा में हम अपने घर से कुछ नहीं लगाते,बल्कि वापसी में सूद समेत वापस ले लेते हैं। इसका खर्च आम ग्राहक ही भुगतता है। इस तरह हम उसी के पैसे को उसे देकर वापस ले लेते हैं। इस काम में हमारी दुकान को विगत साठ सालों का अनुभव है। इसलिए टेंडर पाने के हम स्वाभाविक दावेदार हैं। इसके बाद तो हमसे आगे की दुकानों की भावी योजनाएं सुनने की हिम्मत नहीं बची और हम घर लौट आए।  


जनसंदेश टाइम्स में २५/०९/२०१३ को !
 

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जय हो, अभी सारा परिदृश्य गतिमय हो जायेगा।

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