बुधवार, 18 सितंबर 2013

जंगल में आया शेर !


 

देश में जंगल-राज की खबरें बहुत पहले से आ रही थीं,पर इसके कोई पुख्ता सबूत नहीं थे।इधर कुछ लोगों के यह ऐलान करने के बाद कि जंगल में शेर आ गया है,जंगल-राज वाली बात पर मुहर लग गई है।इसके लिए सियार और लोमड़ी ने प्रचार-मंत्री का जिम्मा बखूबी संभाल लिया है।अब जब जंगल है तो शेर तो रहेगा ही और वही राज भी करेगा।इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि इस जंगल में शेर पैदा नहीं होते बल्कि बनाये जाते हैं।शेर के अलावा जंगल के सारे प्राणी निरीह होते हैं।उसकी धमक ही ऐसी होती है कि दूसरे पशु अपने जीवन-निर्वाह के बजाय अपनी जीवन-रक्षा में ही लगे रहते हैं।इस तरह जंगल में गजब की शांति रहती है।हाथी,तेंदुआ और बाघ उसे चुनौती देने की हिम्मत नहीं रखते,फ़िर हिरन,खरगोश और बन्दर किस खेत की मूली हैं ?जंगल की सत्ता इसीलिए शेर के अनुकूल रहती है।

हमारे देश में बाघों की गिनती में सब लगे रहते हैं पर शेरों की गिनती कोई नहीं करता।इसका सीधा मतलब यही है कि एक समय में एक ही शेर होता है,उसकी गिनती करने से वो नहीं बढ़ेगा।वअपने आप नहीं पैदा होता,उसे गाजे-बाजे के साथ जंगल में उतरना होता है।ऐसा नहीं है कि शेर अभी ही  आया है।इसके पहले वाला तो बब्बर शेर था,पर अब ज़्यादा बुजुर्ग हो गया है।उससे अब शिकार भी नहीं किया जाता।उसने अपने पंजों को उतरती खाल के साथ छुपा लिया है,इसलिए ऐसा शेर किस काम का ?यह वाला तो अच्छी नस्ल का है और गिर के वन से लाया गया है।यह ज़ोर से गरजता भी है और अपनी गुफ़ा में हड्डियाँ भी टाँगे रहता है जिससे कोई बाघ या तेंदुआ शेर बनने की कोशिश न करे।जंगल के बाकी पशु तो शेर की एक गर्जना पर ही लोटने लगते हैं,उन्हें किसी किस्म की घास डालने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती।

जब से नए शेर ने जंगल का काम-काज संभाला है,रोज़ नई दहाड़ सुनाई देती है।इससे कमजोर पशुओं को लगता है कि वह उन्हें भालुओं और पड़ोसी जंगल के हिंसक पशुओं से बचा लेगा।उन्हें यह शेर बहुत वैरायटी वाला लगता है।पुराने वाले शेर को कोई घास भी डालने को तैयार नहीं क्योंकि उन्हें पता है कि घास खाने वाला शेर नहीं हो सकता।उधर भेड़िये और शिकारी कुत्ते शेर की आमद से थोड़ा हलकान हो गए हैं,आसमान में गिद्ध भी बेचैन हैं।ये सभी अब तक जंगल के पशुओं को नोचकर खा रहे थे और अपने भविष्य के प्रति निश्चिन्त थे। दूसरी ओर निरीह पशु सोच रहे हैं कि उनको तो हर हाल में नुचना ही है तो शेर का शिकार बनने में क्या हर्ज़ है ?
 
'जनवाणी' में १८/०९/२०१३ को

 

 

1 टिप्पणी:

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