बुधवार, 11 दिसंबर 2013

आम आदमी की सरकार !


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11/12/2013 को जनसन्देश में
 

शाम को जैसे ही घर पहुँचा,माना चाचा गाँव से आये हुए थे।अचानक उनके दिल्ली आने से मुझे ख़ुशी भी हुई और कुछ खटका भी लगा।वे गाँव में हमारे पिताजी के करीबी दोस्त हैं और जब भी मैं गाँव जाता हूँ,उनसे भेंट हो जाती है।गाँव में ही वे एक छोटी-सी दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं।उनके आने की कोई खबर नहीं थी,इसलिए घर में उनको पाकर मैं चौंक गया।सबसे पहले माना चाचा से मैंने यही सवाल पूछा कि गाँव-घर में सब ठीक-ठाक है तो उन्होंने बताया कि वहां तो सब ठीक है,पर दिल्ली की खबर सुनकर उनसे रहा नहीं गया।आगे मैंने पूछा ,’आपने दिल्ली के बारे में ऐसा क्या सुन लिया है कि इसके लिए आपको यहाँ आना पड़ा ?’
माना चाचा गंभीर होते हुए बोले,’ हम दिल्ली ख़ास मकसद से आये हैं।जब से रेडियो में खबर सुनी कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में चुनाव जीत गई है पर सरकार बनाने से बच रही है,मन में बेचैनी-सी है ।पता चला है कि उसके पास आम आदमी की कुछ कमी रह गई है ।दूसरी पार्टी भाजपा भी कुर्सी से दूर रहना चाहती है।ऐसे में सरकार की कुर्सी वीरान पड़ी है।मैंने सोचा मैं भी आम आदमी हूँ इसलिए सरकार बनाने के लिए हमें भी योगदान करना चाहिए।आपकी चाची के लाख मना करने के बावजूद यहाँ आ गया हूँ।’मैंने आश्चर्य जताते हुए उनसे पूछा,’मगर आप को पता कैसे लगा कि आप आम आदमी हैं ?चाचा ने बड़े ही भोलेपन से बताया कि पिछले दिनों ही प्रधान जी ने ‘मनरेगा’ का जॉब-कार्ड बना के उनके हाथ में धरते हुए बताया था कि वे आम आदमी हैं ।इसके अलावा गरीबी रेखा से नीचे वाला बीपीएल कार्ड भी मेरे पास है और झाड़ू से मैं अपने घर-दुवार की सफाई भी बढ़िया तरीके से कर लेता हूँ, सो मैंने सोचा कि सबसे योग्य आम आदमी मैं ही हूँ।इसलिए दिल्ली आ गया।

अब गंभीर होने की बारी मेरी थी।दिल्ली में रहते हुए यह बात मुझे क्यों नहीं सूझी ? चाचा जी ने तो हमारी आँखें खोल दीं।वे आम आदमी की जगह भरने के लिए इतनी दूर से यहाँ तक आ गए और मैं समाचार चैनलों के भरोसे ही बैठा रहा।रही बात आम आदमी बनने की,सो उसकी पात्रता मेरी भी तो है।मुझे याद नहीं पड़ता कि पिछली बार घर में बाज़ार से थैला भरकर सब्जी कब लाया था ?आने-जाने के लिए हमेशा पैदल ही रास्ता तय करता हूँ।इससे जेब भारी और शरीर हल्का होने का गुमान भी रहता है।इस हैसियत से तो आम आदमी बनने की पहली दावेदारी हमारी बनती थी, पर अब कुछ नहीं हो सकता है।वे गाँव से आये हैं,इसलिए मैं उनका समर्थन करने को मजबूर हूँ।मैंने इस बावत चाचा जी को आश्वस्त कर दिया है कि उनकी सरकार बनने पर मैं विरोध नहीं करूँगा।वे अब सरकार बनाने के लिए राज्यपाल के बुलावे के इंतजार में बैठे हैं।

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम तो उत्सुकता से देख रहे हैं।

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