धर्म अब अपनी विकास-यात्रा के अंतिम चरण में पहुँच चुका है।पहले धर्म-भीरु
होने को ही धार्मिक होना मान लिया जाता था,अब धर्म-वीर यानी जेहादी ही धार्मिक है।धर्म-भीरु बड़े कायर किस्म का होता
था।किसी भी प्रकार की हिंसा को पाप समझता था।भूल से चींटी भी पैरों तले आ जाती थी
तो तीन दिन तक प्रायश्चित्त करता था।अब हिंसक होना वीरता की निशानी है।कागज के
टुकड़ों में दर्ज धर्म को बचाने के लिए इंसानियत के टुकड़ों की दरकार पड़ती है।धर्म
बलिदान माँगता है,शायद इसीलिए
धर्म-वीर आत्मोत्सर्ग कर रहे हैं।पहले दूसरों की जान बचाने के लिए करते थे,अब लेने के लिए।
जिहाद धर्म की रक्षा के लिए तलवार ताने है।धर्म का कमजोर होना मंजूर नहीं
है।धर्म पहलवान बनेगा तो बचेगा।इंसानियत दहशत में रहेगी तभी धर्म की छतरी सलामत
रहेगी।धर्म अब जीवन शैली का नाम नहीं है,अस्तित्व की लड़ाई है।मानवता भले मिट जाए,पर धर्म जीवित रहना चाहिए।धर्म रहेगा तो जीने का मकसद भी
होगा।दिल में बदले की आग होगी तो ज़िन्दगी सार्थक होगी।धर्म नहीं होगा तो यह सब कौन
बताएगा ? इसलिए धर्म सुभीते का
व्यापार हो गया है।
व्यक्तिगत जीवन सुधारना अब धर्म का काम नहीं रह गया है।वह अब राज्य और देश को
बचाता है,मनुष्य को नहीं।मनुष्य
बचकर भी क्या करेगा ? दूसरी वजहों से
मर जाने से अच्छा है कि धर्म के नाम पर मर मिटा जाए।खुद न सही तो दूसरों को ही
मिटाकर।धर्म-ग्रन्थों को पढ़कर धार्मिक बनना लम्बी क़वायद है।कलम और की-बोर्ड पकड़ना
बच्चों का खेल है।धार्मिक बनने के लिए ज्ञान का नहीं आतंक का पाठ सीखना होता है।जो
जितना बड़ा आतंक पैदा कर सकता है,वो उतना ही बड़ा
धार्मिक बन जाता है ।
हमने किताबों में पढ़ा है,‘धर्मो रक्षति
रक्षितः’।अर्थात तुम धर्म की रक्षा
करो,स्वयं रक्षित हो जाओगे
।आधुनिक पढ़ाकुओं ने इसे सही ढंग से समझा है।इसीलिये वे धर्म की रक्षा के लिए बम,गोली और मिसाइल से लैस होकर समर-भूमि में कूद
पड़े हैं।धरती के कई जन-खंड केवल भूखंड बन गए हैं पर मजाल कि धर्म को जरा भी आंच आई
हो! धर्म के आधुनिक रणबाँकुरों ने उसे एक कीमती सामान की गठरी में तब्दील कर दिया
है।ऐसे में उसके लुटने और नष्ट होने की उम्मीद भी बढ़ गई है।अब तो हर तरफ से यही
धुन सुनाई दे रही है कि ‘तेरी गठरी में
लागा चोर,मुसाफिर जाग जरा’।पर मुसाफिर तो यही सोचने में लगा है कि गठरी
स्वयं उसकी रक्षा करेगी।
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