कूड़ा खुश है।गड्ढे से निकलकर वह सड़क पर आ गया है।यही उसका मूल है।घरवापसी किसको नहीं अच्छी लगती ?वह मंत्री के दरवाजे पर भी है और आम आदमी के सर पर भी।वह राजनीति में भी है और नीयत में भी।इस लिहाज से वह सर्वत्र है।ज्यादा समय नहीं बीता जब उस पर अचानक संकट के झाड़ू छा गए थे।सफाई-अभियान ऐसा चला कि ‘हर हाथ झाडू,हर हाथ कचरा’ से सारा देश सहम गया था।अब राहत है।झाड़ू अपनी बैरकों में वापस लौट गए हैं।झाड़ू के साथ ली गई सेल्फियाँ कूड़ेदान में हैं।कचरे के टोकरे अब उठाने के लिए नहीं गिराने के लिए उठ रहे हैं।अब कचरा-सेल्फी है।
देश में साफ़-सफाई को लेकर ज़्यादातर लोग पहले ही आश्वस्त थे।उनका विश्वास कचरे की वापसी ने और पुख्ता किया है।हम मौलिक रूप से कचरा-प्रधान मुल्क हैं।हर क्षेत्र में कचरा फैलाये हैं।इसे समेटने की कोई भी कोशिश देश को पीछे ले जाएगी।मनों में टनों कचरा भरा है जिससे ऊर्जा निकलकर हमें दैनिक रूप से प्रोत्साहित करती है।बायोगैस पर इसीलिए जोर दिया जाता है।कचरा सफाई की तरह अकेला और निःसहाय नहीं है।वह आत्मनिर्भर बन चुका है और सर्वव्यापी भी।इसे हटाने की बात करने वाला खुद हट जाता है।
कचरा अब समाज के लिए हेय नहीं रहा।वह सड़क से उठकर हमारे ड्राइंग रूम में घुस चुका है।उस पर अनंत काल तक टीवी बहसें हो सकती हैं।सफाई मुँह छिपाए हुए मन की बात सुन रही है।वह केवल सुन सकती है,कुछ कर नहीं सकती।जो भी करना है,कचरे को करना है।कचरा बिंदास है।बहुमत में है।दो-चार टोकरे इधर-उधर भी हो गए तो भी उसके पास पर्याप्त स्टॉक है।कचरा-संस्कृति राजधानी से निकलकर पूरे देश में फैलना चाहती है।इसके लिए उपयुक्त वातावरण भी है क्योंकि कचरा सर्वत्र है।
कुछ लोग इस बहाने सफाई-अभियान को कोस रहे हैं।वे नादान हैं।कूड़े-कचरे को हर जगह इसीलिए डाला जा रहा है क्योंकि वहाँ सफाई है।कचरे के लिए आरक्षित जगहों पर सफाई की तैनाती नियम विरुद्ध है।चीजें तभी तक अच्छी लगती हैं,जब तक वे अपने मौलिक रूप में हों।ऐसा न करके हम कचरे से नहीं अपनी संस्कृति से विमुख हो जायेंगे।इसीलिए तन-मन-धन से हम कचरा फेंकने में जुटे हैं।ध्यान रहे,कोई भी बयान कचरा नहीं होता।ये ऐसे सद्वचन होते हैं जो सरकारें बनाते और उखाड़ते हैं।इसीलिए बयान नियमित रूप से निकलते रहते हैं।जो इन्हें कचरा समझते हैं,वे खुद डस्टबिन में पड़े रह जाते हैं।
देश में साफ़-सफाई को लेकर ज़्यादातर लोग पहले ही आश्वस्त थे।उनका विश्वास कचरे की वापसी ने और पुख्ता किया है।हम मौलिक रूप से कचरा-प्रधान मुल्क हैं।हर क्षेत्र में कचरा फैलाये हैं।इसे समेटने की कोई भी कोशिश देश को पीछे ले जाएगी।मनों में टनों कचरा भरा है जिससे ऊर्जा निकलकर हमें दैनिक रूप से प्रोत्साहित करती है।बायोगैस पर इसीलिए जोर दिया जाता है।कचरा सफाई की तरह अकेला और निःसहाय नहीं है।वह आत्मनिर्भर बन चुका है और सर्वव्यापी भी।इसे हटाने की बात करने वाला खुद हट जाता है।
कचरा अब समाज के लिए हेय नहीं रहा।वह सड़क से उठकर हमारे ड्राइंग रूम में घुस चुका है।उस पर अनंत काल तक टीवी बहसें हो सकती हैं।सफाई मुँह छिपाए हुए मन की बात सुन रही है।वह केवल सुन सकती है,कुछ कर नहीं सकती।जो भी करना है,कचरे को करना है।कचरा बिंदास है।बहुमत में है।दो-चार टोकरे इधर-उधर भी हो गए तो भी उसके पास पर्याप्त स्टॉक है।कचरा-संस्कृति राजधानी से निकलकर पूरे देश में फैलना चाहती है।इसके लिए उपयुक्त वातावरण भी है क्योंकि कचरा सर्वत्र है।
कुछ लोग इस बहाने सफाई-अभियान को कोस रहे हैं।वे नादान हैं।कूड़े-कचरे को हर जगह इसीलिए डाला जा रहा है क्योंकि वहाँ सफाई है।कचरे के लिए आरक्षित जगहों पर सफाई की तैनाती नियम विरुद्ध है।चीजें तभी तक अच्छी लगती हैं,जब तक वे अपने मौलिक रूप में हों।ऐसा न करके हम कचरे से नहीं अपनी संस्कृति से विमुख हो जायेंगे।इसीलिए तन-मन-धन से हम कचरा फेंकने में जुटे हैं।ध्यान रहे,कोई भी बयान कचरा नहीं होता।ये ऐसे सद्वचन होते हैं जो सरकारें बनाते और उखाड़ते हैं।इसीलिए बयान नियमित रूप से निकलते रहते हैं।जो इन्हें कचरा समझते हैं,वे खुद डस्टबिन में पड़े रह जाते हैं।
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-02-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2242 में दिया जाएगा
धन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस : वहीदा रहमान और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई.
चुनाव कोई भी जीता है, अभी कूड़ा हावी है।
एक टिप्पणी भेजें