शनिवार, 6 अगस्त 2016

मेरे ख़िलाफ़ साज़िश है यह !

जैसे ही मंत्री जी के बंगले के दरवाजे पर पहुँचा,दरबान कुत्ता लेकर मेरे ऊपर टूट पड़ा।मैंने डरते-सहमते पूछ ही लिया कि भई,मुझ को कटवाने का इरादा है क्या ? जनसेवक के सेवक ने तुरंत उत्तर दिया,’नहीं साहब,यह केवल सूँघता है,काटता नहीं।’ राहत पाकर मैंने फिर सवाल किया,’मैं पत्रकार हूँ।खबर सूँघने का काम तो मेरा है,यह क्या सूँघता है ?’

इस बीच वह कुत्ता मेरे इर्द-गिर्द दो चक्कर लगा चुका था।मेरे सवाल पर दरबान ने जवाब दिया,’साज़िश और क्या ! हमें सख्त निर्देश हैं कि कोई भी चीज़ साज़िश हो सकती है।आप जानते ही होंगे कि कुत्ते साज़िश सूँघने में माहिर होते हैं।बस इसीलिए यह सब करना पड़ता है।’

‘मगर हमने तो सुना है कि मंत्री जी भी खूब सूँघ लेते हैं।उनकी घ्राण-शक्ति इतनी प्रबल है कि कोसों दूर हुई वारदात मिनटों में उनके नथुनों में प्रवेश कर जाती है।ऐसे में इस कुत्ते की क्या ज़रूरत ? यह तो फिर भी पास से ही सूँघ सकता है।’ मैंने अपने आने का प्रयोजन स्पष्ट कर दिया।दरबान मुझसे अधिक समझदार निकला।उसने झट-से प्रवेश-द्वार खोल दिया।

अंदर जाकर कुछ सूँघता कि मंत्री जी आते दिखाई दिए।मुझे देखते ही बोल पड़े,’भई,तुम लोगों ने मेरी बात का बतंगड़ बना दिया।इसमें विपक्षियों की साज़िश है।’ मैंने पलटकर मंत्री जी से पूछा,’ अगर प्रदेश में जो-जो हो रहा है,सब विपक्ष की साज़िश है,तो क्या आपका बयान भी विपक्ष की साज़िश का हिस्सा है ?’ अब वो चौंके।मुझसे ही पूछ बैठे,’यह कैसे हो सकता है भला ? मैं तो सत्ता-पक्ष में हूँ।इससे तो मुझे ही नुकसान होगा।’

‘बिलकुल ठीक समझे।आपकी सूँघने की इतनी अधिक क्षमता पार्टी को नुकसान पहुँचा रही है।यही काम तो विपक्ष का है तो क्यों न इसे साजिश माना जाए ?’मैंने मियाँ की जूती मियाँ के सर वाली कहावत यहाँ लागू कर दी।सारे अख़बारों की कतरनें उनके आगे फेंक दी।

मंत्री जी सोफे पर पसर गए।कहने लगे-हमारे खिलाफ़ बड़ी साज़िश हुई है।मैंने पूछ ही लिया,’किसकी हो सकती है ?’

‘मीडिया की,और किसकी ?’ मंत्री जी ने गहरी साँस लेते हुए कहा।

मुझे नई खबर मिल गई थी,पर सच इसमें कोई साज़िश न थी।

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