मानसून का सीजन है।राजधानी में संसद चल रही है,पर पड़ोस में जाम लग गया।लोग बीस घंटे तक रुके रहे पर देश नहीं रुका।कुछ लोग अक्सर पीछे रह जाते हैं।जो आगे बढ़ गए,वे मँहगाई का पीछा कर रहे हैं।वह और आगे बढ़ गई है।यह कोई नई बात नहीं।हर सीज़न में ऐसा होता है।यह बात सीजन को नहीं पता कि देश बदल रहा है नहीं तो वह भी बदल जाता।जाम में फँसे लोगों को भी पता है कि देश बदल रहा है पर मुए जाम को कौन बताये ? जहाँ देखो,वहीँ ठिठक जाता है।
जाम को लेकर खूब हंगामा हो रहा है।कहा जा रहा है कि इससे करोड़ों रुपए स्वाहा हो गए।पर दूसरे पहलू पर किसी की नज़र ही नहीं गई।घंटों जाम में फँसे लोगों ने देश की अर्थव्यवस्था को अपना मजबूत कंधा दिया।यह किसी को नहीं दिखा।बीस रुपए वाली पानी की बोतल सौ रुपए में और दस रुपए का बिस्कुट पचास में धड़ल्ले से बिक गया।आखिर इत्ता सारा मुनाफ़ा देश की जेब में ही तो गया।कभी-कभी तो मौक़ा मिलता है,ऐसे लोगों को जो एक का दो और दो का चार बनाते हैं।वर्ना ये काम तो केवल बड़े जमाखोर ही कर पाते हैं।जाम ने इस बहाने नए अवसर पैदा किए।
जो लोग समय न होने का रोना रोते हैं और बड़ी जल्दी में रहते हैं,उनके लिए भी यह जाम एक मौक़ा था।लोग घंटों काम से दूर रह पाए,यह बड़ी बात है।लोगों को घर की याद आई,बच्चों से बातें की और अपने भूले-बिसरे दोस्तों को याद किया।कुछ लोगों ने अपनी रचनात्मकता के लिए भी समय निकाल लिया।इस जाम में कई कविताओं ने जन्म लिया।जहाँ पर आवासीय प्लॉट की भारी माँग रहती है,वहाँ कुछ देर के लिए ही सही,जेहन में कहानियों के प्लॉट आये।हो सकता है आगे चलकर बॉलीवुड वाले इस प्लॉट पर ‘वो बीस घंटे’ नाम से फिल्म बना डालें।जब इस जाम से लोग इत्ता ‘हिट’ हो सकते हैं तो फिल्म तो सुपरहिट होगी ही।
ऐसा नहीं है कि जाम के लिए केवल बारिश का पानी ही उपयोगी है।दस-दिनी कांवड़-यात्रा भी इसमें अपना भरपूर योगदान करती है।इसमें लाठी-डंडे जैसे क्रियात्मक प्रयोग आसानी से देखे जा सकते हैं।इस दौरान सामान्य जन-जीवन और करोड़ों का व्यापार पानी भरता है।शुक्र है कि इससे हमारी आस्था निर्विघ्न चलती रहती है।जाम में फँसे लोग फर्राटे-भरते राजमार्गों पर सामूहिक बलात्कारों से सुरक्षित रहते हैं,यह क्या कम उपलब्धि है ?
जाम को लेकर खूब हंगामा हो रहा है।कहा जा रहा है कि इससे करोड़ों रुपए स्वाहा हो गए।पर दूसरे पहलू पर किसी की नज़र ही नहीं गई।घंटों जाम में फँसे लोगों ने देश की अर्थव्यवस्था को अपना मजबूत कंधा दिया।यह किसी को नहीं दिखा।बीस रुपए वाली पानी की बोतल सौ रुपए में और दस रुपए का बिस्कुट पचास में धड़ल्ले से बिक गया।आखिर इत्ता सारा मुनाफ़ा देश की जेब में ही तो गया।कभी-कभी तो मौक़ा मिलता है,ऐसे लोगों को जो एक का दो और दो का चार बनाते हैं।वर्ना ये काम तो केवल बड़े जमाखोर ही कर पाते हैं।जाम ने इस बहाने नए अवसर पैदा किए।
जो लोग समय न होने का रोना रोते हैं और बड़ी जल्दी में रहते हैं,उनके लिए भी यह जाम एक मौक़ा था।लोग घंटों काम से दूर रह पाए,यह बड़ी बात है।लोगों को घर की याद आई,बच्चों से बातें की और अपने भूले-बिसरे दोस्तों को याद किया।कुछ लोगों ने अपनी रचनात्मकता के लिए भी समय निकाल लिया।इस जाम में कई कविताओं ने जन्म लिया।जहाँ पर आवासीय प्लॉट की भारी माँग रहती है,वहाँ कुछ देर के लिए ही सही,जेहन में कहानियों के प्लॉट आये।हो सकता है आगे चलकर बॉलीवुड वाले इस प्लॉट पर ‘वो बीस घंटे’ नाम से फिल्म बना डालें।जब इस जाम से लोग इत्ता ‘हिट’ हो सकते हैं तो फिल्म तो सुपरहिट होगी ही।
ऐसा नहीं है कि जाम के लिए केवल बारिश का पानी ही उपयोगी है।दस-दिनी कांवड़-यात्रा भी इसमें अपना भरपूर योगदान करती है।इसमें लाठी-डंडे जैसे क्रियात्मक प्रयोग आसानी से देखे जा सकते हैं।इस दौरान सामान्य जन-जीवन और करोड़ों का व्यापार पानी भरता है।शुक्र है कि इससे हमारी आस्था निर्विघ्न चलती रहती है।जाम में फँसे लोग फर्राटे-भरते राजमार्गों पर सामूहिक बलात्कारों से सुरक्षित रहते हैं,यह क्या कम उपलब्धि है ?
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