नेता जी जमानत पर हैं। आम आदमी को बाहर जितनी सुविधाएँ नहीं मिलतीं,उनको अंदर रहकर हासिल होती हैं। यह उनकी अपनी अर्जित कमाई है। आदमी और नेता को जो अलग करती है,वह यही हनक होती है। बताते हैं कि जेल से बाहर आने पर तेरह सौ गाड़ियाँ उनके आगे-पीछे नाच रही थीं। इससे एक भी कम होती तो जलवे में दाग लग जाता। सुशासन भले जल-भुनकर राख हो गया हो,पर जनता ने अपने प्रतिनिधि पर आँच नहीं आने दी। कुछ भी करने और बोलने के लिए नेता जी अब पूरी तरह तैयार थे।
दरबार सज गया। नेता जी को खुला दरबार पसंद है। वास्तविक नेता बिना दरबार के जीवित नहीं रह सकता। कारागार में भी इसीलिए कारगर इंतजाम किए गए थे।वहाँ थोड़ा लुका-छिपी थी,अब सरेआम है। नेता बोल रहा हो और आप न सुनें तो वह बुरा मान जाता है। यही सोचकर हम भी कुछ सवाल लेकर पहुँच गए।
वे चौतरफ़ा घिरे हुए थे। आधुनिक पत्रकार उनके साथ सेल्फी लेकर कृतार्थ हो चुके तो अपन का नम्बर आया। मैंने उन्हें बाहर आने की औपचारिक बधाई दी। उन्होंने सहर्ष स्वीकारी भी। मेरा पहला सवाल यही था-आपके आने से राज्य की राजनीति में क्या असर पड़ेगा ?’ नेता जी इस प्रश्न के लिए जैसे तैयार ही बैठे थे,लपकते हुए बोले-यह हमसे मत पूछिए। जनता सही समय पर इस बात का जवाब देगी। उसने देना शुरू भी कर दिया है। आप जो इत्ती भीड़ देख रहे हैं,दरअसल यह कातर जनता है। हम इसी के लिए जेल से बाहर आने के लिए आतुर थे। ’
‘आप पर बाहुबली होने का भी आरोप हैं। इसमें कितना झूठ है ?’ मैंने अगला सवाल धर दिया। सामने लगते जयकारे के बीच वे सहजता से बोल उठे-यह सब विरोधियों की साजिश है। हम हिंसा में विश्वास नहीं करते। हमारा नाम ही काफ़ी है। रही बात बाहुबली होने की,तो हमारी बाजुएँ जनता ने मजबूत कर रखी हैं। यह मजबूती उसी को समर्पित है।’
‘अब एक आखिरी सवाल,आपको किससे डर लगता है ?’
‘देखिए वैसे डरने का काम हमारा नहीं है। कानून हमारे साथ है। सरकार और जनता भी हमारे साथ है फिर भी हम थोड़ा-बहुत ऊपरवाले से डर लेते हैं। इससे लोगों में भी डर के प्रति आस्था बनी रहती है। यही हमारी पूँजी है। ’ नेता जी ने दो-टूक जवाब दे दिया था।
नेता जी की अट्टहास वाली फोटो के साथ साक्षात्कार समाप्त हुआ। दूर सुशासन का सूरज अस्त हो रहा था। अँधेरा ज्यादा बढ़ता उसके पहले ही हम लौट आए।
दरबार सज गया। नेता जी को खुला दरबार पसंद है। वास्तविक नेता बिना दरबार के जीवित नहीं रह सकता। कारागार में भी इसीलिए कारगर इंतजाम किए गए थे।वहाँ थोड़ा लुका-छिपी थी,अब सरेआम है। नेता बोल रहा हो और आप न सुनें तो वह बुरा मान जाता है। यही सोचकर हम भी कुछ सवाल लेकर पहुँच गए।
वे चौतरफ़ा घिरे हुए थे। आधुनिक पत्रकार उनके साथ सेल्फी लेकर कृतार्थ हो चुके तो अपन का नम्बर आया। मैंने उन्हें बाहर आने की औपचारिक बधाई दी। उन्होंने सहर्ष स्वीकारी भी। मेरा पहला सवाल यही था-आपके आने से राज्य की राजनीति में क्या असर पड़ेगा ?’ नेता जी इस प्रश्न के लिए जैसे तैयार ही बैठे थे,लपकते हुए बोले-यह हमसे मत पूछिए। जनता सही समय पर इस बात का जवाब देगी। उसने देना शुरू भी कर दिया है। आप जो इत्ती भीड़ देख रहे हैं,दरअसल यह कातर जनता है। हम इसी के लिए जेल से बाहर आने के लिए आतुर थे। ’
‘आप पर बाहुबली होने का भी आरोप हैं। इसमें कितना झूठ है ?’ मैंने अगला सवाल धर दिया। सामने लगते जयकारे के बीच वे सहजता से बोल उठे-यह सब विरोधियों की साजिश है। हम हिंसा में विश्वास नहीं करते। हमारा नाम ही काफ़ी है। रही बात बाहुबली होने की,तो हमारी बाजुएँ जनता ने मजबूत कर रखी हैं। यह मजबूती उसी को समर्पित है।’
‘अब एक आखिरी सवाल,आपको किससे डर लगता है ?’
‘देखिए वैसे डरने का काम हमारा नहीं है। कानून हमारे साथ है। सरकार और जनता भी हमारे साथ है फिर भी हम थोड़ा-बहुत ऊपरवाले से डर लेते हैं। इससे लोगों में भी डर के प्रति आस्था बनी रहती है। यही हमारी पूँजी है। ’ नेता जी ने दो-टूक जवाब दे दिया था।
नेता जी की अट्टहास वाली फोटो के साथ साक्षात्कार समाप्त हुआ। दूर सुशासन का सूरज अस्त हो रहा था। अँधेरा ज्यादा बढ़ता उसके पहले ही हम लौट आए।
2 टिप्पणियां:
गजब का व्यंग्य, बहुत अच्छा लगा यहाँ तक आकर आपको पढ़ने का मौका मिला। आभार
गजब का व्यंग्य, बहुत अच्छा लगा यहाँ तक आकर आपको पढ़ने का मौका मिला। आभार
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