वे आते ही नेता जी के चरणों में लोट गए। नेता जी ने बहुतेरी कोशिश की कि वे उनके मुलायम चरण छोड़ दें पर वे छोड़ने के मूड में बिलकुल नहीं थे। नेता जी उन्हें कुर्सी पर बैठने का प्रस्ताव दे चुके थे मगर इस बार वे कोई चूक नहीं करना चाहते थे। पहले ही वे एक बार कुर्सी-वियोग का आघात सहन कर चुके थे। सो इस बार वे कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। जब कई बार नेता जी के आश्वस्त करने के बाद भी वे टस से मस नहीं हुए तो उन्होंने अंतिम रूप से उन्हें आगाह किया। इस बार उनके निर्जीव से शरीर में जरा-सी हरकत हुई और वे अंततः उठ बैठे।
अब वे कुर्सी पर जम चुके थे। सूनी पड़ी कुर्सी मानो उन्हीं के इंतज़ार में थी। वह उनकी विशाल काया को लादकर खुद को धन्य समझने लगी। जब तक खाली थी,हल्की थी। अब उसमें स्वाभाविक भारीपन आ गया था। दुनिया में वजन की ही पूछ है। कुर्सी मिलने से कुर्सी और वे दोनों वजनी हो गए थे। इस लिहाज़ से नेता जी का भी वजन पहले से बढ़ गया था,कद भले ही घट गया हो !
नेता जी उन्हें धीरे से समझाने लगे-देखो बरखुरदार,राजनीति में सार्वजनिक रूप से कुछ कार्य सर्वथा वर्जित माने गए हैं।इनमें चरण पकड़ना सबसे वर्जित कर्म है। इस क्रिया से चरण पकड़ने वाले और चरण धारक दोनों का नैतिक मूल्य हल्का हो जाता है।राजनीति में वजन तभी तक कायम रहता है,जब तक पर्दे के पीछे गुल खिलते रहें,ग़लती का सबूत न छूटे। सरेआम चरणों में लोटना राजनैतिक हाराकिरी है। तुम जैसे अनन्य जनसेवक को मैं खोना नहीं चाहता इसलिए आइन्दा सबके सामने ऐसे खुरदुरे और कठोर हाथों से मेरे कोमल चरण मत छूना।हल्के हो जाएँगे।
इतना सुनते ही वे सिसक पड़े। कहने लगे-आप मेरे देवता हैं। मेरा अस्तित्व आप का ही दिया हुआ है। माई-बाप तो बस नाम के हैं। प्रजापति होने का जो अवसर आपने सुलभ कराया है,उसे मैं कैसे भुला सकता हूँ ! मैं तो सुलभ शौचालय जाता हूँ तो वहाँ भी लोटा ले जाता हूँ। मैंने ज़िन्दगी में दो ही काम किए हैं। जिस वक्त चरणों में नहीं लोटता हूँ,लोटा पकड़ लेता हूँ। पिछले कई दिनों तक पकड़े रहा। विरोधी खुश थे कि मुझे पेचिश की बीमारी हुई है पर मेरी असल बीमारी तो आपको पता है। जब तक जनहित का पूर्ण मनोयोग से खनन न कर लूँ,दिल को चैन नहीं आता। आपने कृपा की है तभी चरणों में लोट रहा हूँ। इसी में मुझे परम-शांति मिलती है। कृपया मुझे चारों दिशाओं में लोटने दें। यही मेरा मौलिक कर्म है।
नेता जी ने पीठ पर हाथ धरते हुए कहा-जाओ,फ़िलहाल रेत पर लोटो।
अब वे कुर्सी पर जम चुके थे। सूनी पड़ी कुर्सी मानो उन्हीं के इंतज़ार में थी। वह उनकी विशाल काया को लादकर खुद को धन्य समझने लगी। जब तक खाली थी,हल्की थी। अब उसमें स्वाभाविक भारीपन आ गया था। दुनिया में वजन की ही पूछ है। कुर्सी मिलने से कुर्सी और वे दोनों वजनी हो गए थे। इस लिहाज़ से नेता जी का भी वजन पहले से बढ़ गया था,कद भले ही घट गया हो !
नेता जी उन्हें धीरे से समझाने लगे-देखो बरखुरदार,राजनीति में सार्वजनिक रूप से कुछ कार्य सर्वथा वर्जित माने गए हैं।इनमें चरण पकड़ना सबसे वर्जित कर्म है। इस क्रिया से चरण पकड़ने वाले और चरण धारक दोनों का नैतिक मूल्य हल्का हो जाता है।राजनीति में वजन तभी तक कायम रहता है,जब तक पर्दे के पीछे गुल खिलते रहें,ग़लती का सबूत न छूटे। सरेआम चरणों में लोटना राजनैतिक हाराकिरी है। तुम जैसे अनन्य जनसेवक को मैं खोना नहीं चाहता इसलिए आइन्दा सबके सामने ऐसे खुरदुरे और कठोर हाथों से मेरे कोमल चरण मत छूना।हल्के हो जाएँगे।
इतना सुनते ही वे सिसक पड़े। कहने लगे-आप मेरे देवता हैं। मेरा अस्तित्व आप का ही दिया हुआ है। माई-बाप तो बस नाम के हैं। प्रजापति होने का जो अवसर आपने सुलभ कराया है,उसे मैं कैसे भुला सकता हूँ ! मैं तो सुलभ शौचालय जाता हूँ तो वहाँ भी लोटा ले जाता हूँ। मैंने ज़िन्दगी में दो ही काम किए हैं। जिस वक्त चरणों में नहीं लोटता हूँ,लोटा पकड़ लेता हूँ। पिछले कई दिनों तक पकड़े रहा। विरोधी खुश थे कि मुझे पेचिश की बीमारी हुई है पर मेरी असल बीमारी तो आपको पता है। जब तक जनहित का पूर्ण मनोयोग से खनन न कर लूँ,दिल को चैन नहीं आता। आपने कृपा की है तभी चरणों में लोट रहा हूँ। इसी में मुझे परम-शांति मिलती है। कृपया मुझे चारों दिशाओं में लोटने दें। यही मेरा मौलिक कर्म है।
नेता जी ने पीठ पर हाथ धरते हुए कहा-जाओ,फ़िलहाल रेत पर लोटो।
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