घाटी में बैठक हुई।कबूतरबाज और पत्थरबाज अपनी-अपनी माँगों के साथ मिले।कबूतरबाज चाहते थे कि वे पत्थर न फेंके।इससे शांति के कबूतरों को चोट लगती है।पत्थरबाज इसके लिए तैयार नहीं थे।उन्हें इसके सिवा और कोई हुनर सिखाया ही नहीं गया।दोनों पक्षों में वार्ता ज़रूरी थी।हुई भी।कबूतरबाजों की तरफ से सरकार के प्रतिनिधि ने अपनी बात रखी-हम आपकी समस्या से अवगत हैं।आप यदि पत्थर फेंकना ही चाहते हैं तो इसके लिए भारतीय परम्पराओं का ख्याल रखा जाए।कहने का मतलब कि पत्थर वही फेंके,जिनके निशाने सटीक हों।यह नहीं कि निशाना कनपटी पर हो और वह दिल पर जाकर लगे।इससे जनभावनाएं आहत हो सकती हैं।और हम ऐसा न होने देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
एक वरिष्ठ पत्थरबाज-प्रतिनिधि ने अपना पक्ष खोलकर धर दिया-देखिए,हम पाक-पत्थरबाज हैं।जो भी पत्थर हमारे हाथ आ जाता है,नापाक नहीं रह पाता।दूसरी बात यह कि पत्थर को तो भारतीय संस्कृति में पूजा जाता है।हम उसी परम्परा को बस आगे बढ़ा रहे हैं।फूलों की वादी में हमें पत्थरों से खेलने की आज़ादी मिलनी चाहिए।हम पत्थर के सनम होना चाहते हैं।हम कितने शरीफ हैं, फिर भी आप हमें छर्रा-बंदूक से नवाज रहे हैं ?
शान्ति का कबूतर फड़फड़ा उठा-आप पत्थर फेंकिए,पर हमें मना करने से मत रोकिए।इतनी आज़ादी तो हमारे पास भी है।पत्थरों से हमारा प्रतिरोध प्राचीन-काल से चला आ रहा है।सुना ही होगा-‘कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को ! और अगर आपको मारना ही है तो पहले ठीक से रिहर्सल कर लिया करिए।फेंकना आसान नहीं होता।आप लोग तैयार हों तो हम इसमें केंद्र सरकार की सब्सिडी-योजना लागू कर सकते हैं।आप लोग थोड़ा कम वजन के और मझोले टाइप के पत्थर फेंके।बदले में हम छर्रा-बंदूक के बजाय फ्रंट पर मिर्च के गोले तैनात कर सकते हैं।
पत्थरबाज-प्रतिनिधि ने कहा-हम आपकी माँग को ऊपर तक पहुँचा देंगे।फ़ैसला उन्हीं को करना है।हमारे हाथ में तो केवल पत्थर पकड़ा दिए गए हैं।इनकी मात्रा और साइज़ भी हम नहीं तय करते।इस मामले में हम बच्चे हैं।
सर्वदलीय बैठक बिना किसी नतीजे के सम्पन्न हो गई।घाटी में शान्ति को लेकर दोनों पक्ष सहमत थे,पर पत्थरों और छर्रों के मसले पर आम सहमति नहीं बन पाई।तय हुआ कि अगली बैठक तक ‘ऊपरवाले’ का कोई निर्देश प्राप्त हो जाएगा।तब से शान्ति के कबूतर यही गुनगुना रहे हैं,’पत्थर के सनम तुझे हमने मुहब्बत का ख़ुदा जाना,बड़ी भूल हुई अरे हमने,ये क्या समझा,ये क्या जाना !’
एक वरिष्ठ पत्थरबाज-प्रतिनिधि ने अपना पक्ष खोलकर धर दिया-देखिए,हम पाक-पत्थरबाज हैं।जो भी पत्थर हमारे हाथ आ जाता है,नापाक नहीं रह पाता।दूसरी बात यह कि पत्थर को तो भारतीय संस्कृति में पूजा जाता है।हम उसी परम्परा को बस आगे बढ़ा रहे हैं।फूलों की वादी में हमें पत्थरों से खेलने की आज़ादी मिलनी चाहिए।हम पत्थर के सनम होना चाहते हैं।हम कितने शरीफ हैं, फिर भी आप हमें छर्रा-बंदूक से नवाज रहे हैं ?
शान्ति का कबूतर फड़फड़ा उठा-आप पत्थर फेंकिए,पर हमें मना करने से मत रोकिए।इतनी आज़ादी तो हमारे पास भी है।पत्थरों से हमारा प्रतिरोध प्राचीन-काल से चला आ रहा है।सुना ही होगा-‘कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को ! और अगर आपको मारना ही है तो पहले ठीक से रिहर्सल कर लिया करिए।फेंकना आसान नहीं होता।आप लोग तैयार हों तो हम इसमें केंद्र सरकार की सब्सिडी-योजना लागू कर सकते हैं।आप लोग थोड़ा कम वजन के और मझोले टाइप के पत्थर फेंके।बदले में हम छर्रा-बंदूक के बजाय फ्रंट पर मिर्च के गोले तैनात कर सकते हैं।
पत्थरबाज-प्रतिनिधि ने कहा-हम आपकी माँग को ऊपर तक पहुँचा देंगे।फ़ैसला उन्हीं को करना है।हमारे हाथ में तो केवल पत्थर पकड़ा दिए गए हैं।इनकी मात्रा और साइज़ भी हम नहीं तय करते।इस मामले में हम बच्चे हैं।
सर्वदलीय बैठक बिना किसी नतीजे के सम्पन्न हो गई।घाटी में शान्ति को लेकर दोनों पक्ष सहमत थे,पर पत्थरों और छर्रों के मसले पर आम सहमति नहीं बन पाई।तय हुआ कि अगली बैठक तक ‘ऊपरवाले’ का कोई निर्देश प्राप्त हो जाएगा।तब से शान्ति के कबूतर यही गुनगुना रहे हैं,’पत्थर के सनम तुझे हमने मुहब्बत का ख़ुदा जाना,बड़ी भूल हुई अरे हमने,ये क्या समझा,ये क्या जाना !’
1 टिप्पणी:
बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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