पुस्तक मेले में घुसते ही ‘वो’ दिखाई दिए।मैं कन्नी काटकर निकलना चाहता था पर उन्होंने पन्नी में लिपटी अपनी किताब मुझे पकड़ा दी।फिर फुसफुसाते हुए बोले, ‘अब आए हो तो विमोचन करके ही जाओ।तुम मेरे आत्मीय हो।आपदा में अपने ही याद आते हैं।’ ऐसा कहते हुए वे मुझे साहित्य में उदारवाद के अगुआ लगे।मन में फूटते हुए लड्डुओं को छिपाते हुए मैंने भी अनमने ढंग से कहा,‘कोई वरिष्ठ नहीं मिला क्या ? मैं तो आपसे कित्ता छोटा हूँ।फिर मेरे पास वो ‘कर-कमल’ भी नहीं हैं,जिनसे फीता काटा जाता है।ये खुरदुरे हाथ विमोचन लायक बने ही नहीं।’ मेरे हाथों को ‘इग्नोर’ करते हुए उन्होंने लंबी आह भरी-बात यह है कि इस वक्त सीज़न बड़ा ‘टाइट’ चल रहा है।‘कर-कमलों’ वाले सभी वरिष्ठ एडवांस में ‘बुक’ हैं।कोई भी ‘डेट’ ख़ाली नहीं है।बमुश्किल कल एक पेशेवर विमोचक ने हाँ भरी थी पर तेरहवीं पुस्तक लोकार्पित करते-करते वे स्वयं इस लोक से वॉक-आउट’ होने से बचे ! अचेतावस्था में ही उन्होंने किताब का विमोचन संपन्न किया।साथ ही किताब के बारे में वे यह रहस्योद्घाटन भी कर गए कि इसमें लिखी गई कविताएँ बिलकुल पानी के बताशे की तरह हैं।ज़ुबान में पड़ते ही घुल जाती हैं।ऐसा इसलिए है क्योंकि ये गोल-गप्पे खाते हुए लिखी गई हैं।साहित्य में यथार्थ के प्रयोग का इससे बेहतर उदाहरण फ़िलहाल नहीं मिलता।फिर क्या था,प्रकाशक ने इतना सुनते ही उनका गला पकड़ लिया और लेखक ने माथा।बड़ी मुश्किल से उन वरिष्ठ विमोचन-कर्ता को उनके सुरक्षित गले के साथ प्रशंसकों की भीड़ से बाहर निकाला गया।इस सबमें अच्छी बात यह हुई कि लेखक ने वहीं पर अपनी छप्पनवीं पुस्तक के आने की घोषणा कर दी।तब जाकर प्रकाशक संतुष्ट हुआ,लेकिन साहित्य तभी से सदमे में है।मैं अब कोई जोखिम नहीं लेना चाहता।उस ‘विमोचन-कांड’ से मैंने यही सीखा है।हालाँकि दो-तीन बंदों को हमने ‘बुक’ किया हुआ है पर बतौर ‘बैक-अप’ तुम्हें चुन रहा हूँ।तुम भले ही वरिष्ठ नहीं हो पर यह बात भीड़ नहीं जानती।तुम बस मेरे बारे में यह पढ़ देना।यह कहकर उन्होंने मुझे एक प्रिंटेड पर्ची थमा दी।मैंने उसे चुपचाप जेब में रख लिया और आगे बढ़ने लगा।
बड़े जतन से मुझे संभालते हुए वे घटना-स्थल तक ले गए।तीन चेहरे पहले से ही वहाँ कैंची लिए तैनात थे।इनमें एक पैदाइशी विमोचक थे और बाक़ी दोनों उनके चेले।गुरूजी को विमोचन का इतना अभ्यास था कि किसी भी किताब को देखते ही उनके ‘कर-कमल’ फड़फड़ाने लगते।मेले में यदि किसी दिन वे कोई विमोचन नहीं कर पाते,उनका शुगर-लेवल बढ़ जाता।इधर किताब में बँधा फीता कटने के लिए तड़प रहा था।जैसे ही चार लोग इकट्ठे हो गए,मुक्ति पाने के लिए पुस्तक तैयार थी।मैंने बिना देरी किए कैंची चला दी।जल्दबाज़ी में मैंने बर्फ़ी वाले पैकेट की जिल्द खोल दी थी।राह में चलते हुए लोग एकाएक साहित्य के प्रति गंभीर हो उठे।इस बीच अनुभवी विमोचक ने सही पैकेट पर वार किया।कई मोबाइल एक साथ चमक उठे।इस तरह किताब की मुँहदिखाई संपन्न हुई।अब विमोचित-किताब पर मेरा मुँह खुलने का समय हो गया।मैंने जेब टटोली,पर मित्र द्वारा दी गई पर्ची नदारद थी।मैंने अपने मुँह को अजीब-सा कोण दिया।आँखों को सिकोड़कर एक चिंतनीय मुद्रा बनाई।फिर किताब को दो बार उलट-पुलट कर पूरी तरह ‘स्कैन’ कर लिया।साहित्य में इसे आत्मसात करना कहते हैं।ख़ैर,इसके बाद मेरा वक्तव्य शुरू हो गया,‘मित्रो,कवि ने बिलकुल नई ज़मीन पकड़ी है।इसके शीर्षक से ही क्रांति झलकती है। ‘सुराख़ में आकाश’ पुस्तक साहित्य में परंपरावाद के विरुद्ध शंखनाद करती है।पूर्ववर्ती कवियों ने जहाँ आकाश में सुराख़ करने की कोशिश की थी,वहीं इस जाँबाज़ कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से सुराख़ में आकाश करने का दम दिखाया है।कवि गहन अंधकार में भी आशा का दामन नहीं छोड़ता।वह सुराख़ जैसी सुरंग में आकाश जैसी स्वच्छंदता की कल्पना करता है।मैं इस बात की पुरज़ोर अनुशंसा करता हूँ कि आप लोग स्थापित कवियों को दरकिनार कर इस कवि पर गौर करें।साहित्य में प्रयोगवाद की आज से शुरुआत हो रही है।’
मैं आगे कुछ और बोलता,तभी भीड़ में से भी किसी ने ‘प्रयोग’ कर दिया।मेज के नीचे रखी समोसे की टोकरी पता नहीं किसने ऊपर रख दी ! अचानक सभी साहित्य-प्रेमी समोसों पर टूट पड़े।जैसे-तैसे मेरे हाथ भी एक समोसा लगा पर विमोचित पुस्तक ग़ायब मिली।समोसे और साहित्य दोनों एक साथ निपट रहे थे।दस मिनट की अफ़रा-तफ़री के बाद जब हमें होश आया तो देखा कि पुस्तक-लेखक और प्रकाशक पाठकों के इस अप्रत्याशित हमले का जायज़ा ले रहे थे।मैंने धीरे से लेखक महोदय से पूछा ‘कुछ ज़्यादा नुक़सान हो गया क्या ?’अब लेखक जी चौंक पड़े।बोले ‘अरे नहीं मित्र,किताब ‘हिट’ हो गई है।समोसे तीस ही थे,जबकि किताबें पूरी पचास ग़ायब हैं।मतलब अपनी किताब समोसों से ज़्यादा बिकी।तुम्हारा आभारी रहूँगा जीवन भर।’ मैं संकोच सहित उस ‘आभार’ को अपने झोले में डालकर मेले से बाहर निकल आया।
अगले दिन सभी अख़बारों में ख़बर छपी कि इस बार ‘सुराख़ में आकाश’ बेस्टसेलर रही है।हमने भी उनको तुरंत ‘बिकाऊ लेखक’ होने की बधाई दे डाली।
संतोष त्रिवेदी
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