यह अच्छा ही हुआ कि हमारे यहाँ ‘लोकतंत्र के मंदिर’ के निर्माण की इजाज़त मिल गई।देश में लोकतंत्र का निबाह हो और उसका मंदिर न हो,यह निहायत बचकानी बात है।ऐसा नहीं है कि हमारे यहाँ पहले ‘लोकतंत्र का मंदिर’ था ही नहीं, पर लोकतंत्र की तरह वह भी बहुत पुराना हो गया है।कई बार ठीक से ‘मरम्मत’ भी की गई,पर आए दिन हो रही ‘लोकतंत्र की हत्या’ की घोषणाओं के बाद यह तय किया गया कि इसका नए सिरे से निर्माण किया जाएगा।जो लोग इसमें आने वाली लागत को लेकर हलकान हैं,उन्हें पता होना चाहिए कि लोकतंत्र बनाए रखने के लिए कोई भी क़ीमत अधिक नहीं होती है।मंदिर में घुसने को लेकर जिस तरह मारामारी होती है,इसी से पता चलता है कि इसका पुख़्ता होना कितना ज़रूरी है !
‘न्यू इंडिया’ में वैसे भी हर चीज़ नई होने को आतुर है। ‘नोटबंदी’ की अपार सफलता के बाद जिस तरह फ़र्ज़ी नोट छपने बंद हो गए और ‘काला धन’ अथाह समंदर में विलीन हो गया ,उसी प्रकार नए ‘लोकतंत्र के मंदिर’ बनने से लोक का भला हो जाएगा,यह अभी से निश्चित है।सरकारों का कोई भी काम बिना सोचे-समझे नहीं होता।भीषण चिंतन और गहन विमर्श के बाद ही कोई योजना या क़ानून बनता है।‘आन्दोलन’ थोड़ी है कि ट्रैक्टर में बैठे और दन्न से राजपथ पर आ गए ! यहाँ आने के लिए जनसेवकों को कितना ख़ून बहाना पड़ता है,यह पसीना बहाने वाले नहीं समझ पाएँगे।
सिर्फ़ हमारे ही देश में लोकतंत्र की इतनी तगड़ी रक्षा नहीं की जाती है।दुनिया के सबसे समृद्ध देश में भीड़ ‘लोकतंत्र के मंदिर’ में बेखटके घुस रही है।लोकतंत्र की रक्षा के लिए किसी भी क़ीमत पर हार नहीं मानने वाले ट्रंप चचा इसकी असली ‘पिच्चर’ दिखा रहे हैं।आने वाले दिनों में और भी लोकतांत्रिक देश इसका अनुसरण कर सकते हैं।लोकतंत्र तभी मज़बूत होता है जब ‘लोक’ भी जनसेवकों जैसा आचरण करने लगें।
ऐसा नहीं है कि लोकतंत्र ही सारी मज़बूती क़ायम किए हुए है।हमारे पड़ोसी देश में ‘साम्यवाद’ की इतनी ज़ोर की लहर चल रही है कि वहाँ चोर तो छोड़िए,‘अलीबाबा’ तक ग़ायब हो जाते हैं।इसलिए ‘मंदिर’ का मज़बूत बनना बहुत ज़रूरी है,नहीं तो किसी दिन वहाँ आम आदमी भी घुस सकता है !
संतोष त्रिवेदी
1 टिप्पणी:
पूजा जारी रहेगी अनन्त तक तंत्रलोक में इसी तरह। बहुत खूब।
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