बड़ा अद्भुत दृश्य था।अस्पताल के आईसीयू से सीधे स्वर्ग के दरवाज़े पर ! मैं एकदम भौंचक्का था।जिस स्वर्ग की न जाने कैसी-कैसी कल्पनाएँ किया करता था,वहाँ बिना सीढ़ी,बिना सत्कर्म और बिना वीज़ा के अनायास पहुँच गया था।आज पहली बार ‘सिस्टम’ पर ग़ुस्सा नहीं प्यार आ रहा था।उसी के ‘सदप्रयासों’ से मुझे यह अयाचित ‘सद्गति’ मिल पाई थी।परलोक में मेरी उपस्थिति का भान होते ही दो भव्य-पुरुष मेरे निकट आए।मेरे मुँह पर बँधे स्थायी-मास्क को उन्होंने नोचकर फेंक दिया।मैंने ‘प्रोटोकॉल’ का हवाला दिया तो उनमें से एक ने स्पष्टीकरण दिया,‘यह भूलोक नहीं है।तुम्हारे मरने के साथ ही सभी अलाएँ-बलाएँ समाप्त हुईं।तुम अब संपूर्ण दुखों से मुक्त हुए।यहाँ हवा,दवा और दुआ की कोई कमी नहीं है।यह स्थान एकदम वायरस-प्रूफ़ है।लेखक-आत्माओं के लिए तो यहाँ हमेशा ‘बेड’ उपलब्ध होता है।स्वर्गलोक में रहने की तुम सभी पात्रताएँ पूरी करते हो,इसलिए तुम्हारा स्वागत है।’ ऐसे सम्मानित वचनों को सुनकर मैं अभिभूत हो उठा।होश खोने ही वाला था तभी मुझे आगे बढ़ने का संकेत मिला।स्वर्ग-द्वार के दोनों ओर अप्सराएँ खड़ी मुस्करा रहीं थीं।स्वर्ग का यह ‘प्रोटोकॉल’ देखकर मैं दंग था।जीते-जी जिस सम्मान के लिए ज़िंदगी भर तरसता रहा,एक मुए वायरस ने पलक झपकते ही उससे मुझे निहाल कर दिया था।
अचानक एक सुकन्या आगे बढ़ी और एक अजीब-सा यंत्र मेरे चेहरे के सामने कर दिया।‘मुस्कुराइए कि आप स्वर्ग-लोक में हैं !’ उसके इस अप्रत्याशित निवेदन से मैं पशोपेश में पड़ गया।इसके पहले मैंने कभी ऑन-डिमांड मुस्कुराहट का डेमो नहीं दिया था।कई बार तो मेरी रोनी-सूरत के चलते कई कमेटियों ने मुझे ‘सम्मानित’ तक कर डाला था फिर भी मनहूसियत पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई थी।ख़ैर,वह लोक दूसरा था,यह लोक दूसरा है यह सोचकर मैंने ठीक से मुस्कुराने के चक्कर में खिस्स से दाँत चियार दिए।उसने दोहराया, ‘ऐसे नहीं।हमें आपकी मुस्कुराहट को स्कैन करना है,दांतों को नहीं।कृपया खीस न निपोरें,केवल मुस्कुराएँ।’ इस बार का निवेदन मौलिक और तनिक तल्ख़ था।
मामले की गंभीरता को देखते हुए मैं भी गंभीर हो गया।उसके कहे के मुताबिक़ मैंने उतना ही मुँह खोला,जितने की अनुमति थी।इस बार ‘टेस्ट’ में पास हो गया।इसके बाद दूसरी सुकन्या ने मुझे सूचना दी कि मेरी चित्रगुप्त जी के साथ मीटिंग ‘फ़िक्स’ हुई है।हम सबको सीधे उन्हीं के पास चलना है।इस मीटिंग को लेकर मेरे मन में तीव्र उत्सुकता हुई और फिर एक बार मन ही मन ‘सिस्टम’ को प्रणाम करके उनके साथ चल पड़ा।
थोड़ी देर में ही हम चित्रगुप्त जी के बँगले में थे।वे एक अत्याधुनिक सोफ़े पर पसरे हुए थे और सामने दीवार पर सौ-इंची स्क्रीन में पूरा नर्क-लोक दिख रहा था।उनके पास चाबी के गुच्छे जैसी छोटी चीज थी।मेरे पहुँचते ही उन्होंने मुझे पास बैठने का इशारा किया।गुच्छे जैसी चीज को दबाते ही उनकी हथेली टीवी स्क्रीन में बदल गई।वे घटनाओं को नज़दीक से देखना चाहते थे,इसलिए बड़ी स्क्रीन के बजाय उसे अपनी हथेली में उतार लिया।मुझे उनका यह कौतुक देखकर अच्छा लगा कि स्वर्ग-लोक तकनीक के मामले में भूलोक से काफ़ी आगे है।मेरे सामने ही उनकी हथेली पर एक-एक कर सारे न्यूज़ चैनल खुलने लगे।ये सब वहाँ के थे जहाँ से अभी-अभी मुझे ‘डिपोर्ट’ किया गया था।चित्रगुप्त जी बताने लगे, ‘मुझे जब भी अपने रिकार्ड को अपडेट करना होता है,इसी का सहारा लेता हूँ।इस समय काम ज़्यादा है इसलिए ‘नोडल ऑफ़िसर’ के रूप में तुम्हें बुलाया गया है।सुना है वहाँ ‘सिस्टम’ से ज़्यादा डेटा की जानकारी तुम्हें है।’
अपनी प्रशंसा सुनकर मैं सामान्य बना रहा।सातवें आसमान में पहुँच भी नहीं सकता था क्योंकि उसे बहुत पहले पार कर आया था।मैंने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि मामले को समझने के लिए कुछ ‘नारकीय-घटनाओं’ को देखने की कोशिश करता हूँ।
उन्होंने तुरंत एक चैनल खोला।बहुत से लोग भैंसागाड़ी में लदे हुए नर्क की ओर चले जा रहे थे।चित्रगुप्त जी ने वहाँ ड्यूटी पर तैनात यमदूत से पूछा, ‘इतने सारे लोग एक के ऊपर एक क्यों लदे हुए हैं ?‘इन्होंने बहुत बड़ा गुनाह किया है।ये हर चुनाव में ‘हवा’ देखकर वोट डाल आते थे।उसी का प्रतिफल है कि बिना हवा और दवा के ही इन्हें मुक्ति प्रदान कर दी गई।’ यमदूत ने एक साँस में उत्तर दिया।यह सुनकर चित्रगुप्त जी मेरी ओर मुख़ातिब हुए-कुछ गड़बड़ी समझ आई ? मैंने इसका रहस्य खोलते हुए बताया कि ‘सिस्टम’ ने इनको गिना ही नहीं क्योंकि किसी अस्पताल या घाट में इनका रिकार्ड नहीं है।इसलिए यहाँ के डेटा में भारी अंतर है।पर आप चिंता न करें,सब ‘मैनेज’ हो जाएगा।बस,आप इस यंत्र की मेमोरी डिलीट कर दीजिए।
‘वाह,वाह ! कितना सुंदर और त्वरित समाधान किया है तुमने ! इस साल का ‘स्वर्ग-पीठ’ सम्मान तुम्हें ही दिया जाएगा।’ चित्रगुप्त जी ने तत्काल ‘राहत-राशि’ घोषित कर दी।यह सुनकर मेरे रुँधे गले से आवाज़ नहीं आ रही थी।मैं छटपटाने लगा था कि तभी श्रीमती जी ने झिंझोड़ा, ‘शालू के पापा,ओ शालू के पापा ! तुम्हारा ऑक्सिजन लेवल वापस आ गया है।तुम यहीं हो।’
मैं एक झटके में ही स्वर्ग से नर्क में आ गिरा।
संतोष त्रिवेदी
1 टिप्पणी:
बहुत खूब :) सुन्दर।
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