रविवार, 20 नवंबर 2022

कुछ न कुछ खाते रहिए !

नेताजी चुनावी-सभा के बाद जैसे ही बाहर निकले,पार्टी के पुराने कार्यकर्ता ने स्वयं को उनके चरण-कमलों में अर्पित कर दिया।वह बहुत घबराया-सा लग रहा था।नेताजी कृपालु थे।चरणों में पड़े कार्यकर्ता को देखकर द्रवित हो उठे, ‘किस बात का कष्ट है भई ? टिकट-विकट चाहिए तो अध्यक्ष जी से मिल लो।’ कार्यकर्ता संवेदनशील था,सुबक पड़ा, ‘यही तो दिक़्क़त है ! मुझे इस बार फिर टिकट मिल गया है जबकि मैं पार्टी-सेवा करना चाहता हूँ।’ यह सुनते ही नेताजी विस्मित-से उसे देखने लगे।थोड़ा रुककर बोले ‘क्यों क्या हुआ ? दूसरी पार्टी बड़ा ऑफर दे रही है या जीतने की उम्मीद नहीं ? हमारे रहते किस बात का डर है तुम्हें ?’ नेता जी ने एक साथ कई सवाल पूछ लिए।कार्यकर्ता एकदम से हड़बड़ा गया। ‘नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है।हमें डर लग रहा है कि कहीं जीत गया तो ? चुनाव जीतने के बाद काम न करने पर जनता द्वारा लात मारने की जिस स्कीम को आपने आज लॉन्च किया है,डर तो उससे लग रहा है।कहीं जनता हमारी परफॉरमेंस को देखकर सचमुच हमें लतियाने पर उतारू न हो जाए ? या लात मारने की गरज से ही मुझे जिता दे ! हमारी तो अब रीढ़ की हड्डी भी कमज़ोर हो चुकी है।’ कार्यकर्ता घुटनों के बल बैठे-बैठे बोला।


नेता जी ने बड़ी ज़ोर से ठहाका लगाया। ‘या तो तुम मुझे ठीक से नहीं जानते या जनता को।राजनीति में आए हो तो डर को अपने से दूर रखो।तुम अब जनता के हो चुके इसलिए तुम्हारा जो भी है,वह जनता का है।डर भी।तुम जनता से नहीं जनता तुमसे डरे।वह डरने लगे तो और डराओ।उसे बताओ कि अगर उसने तुम्हें नहीं चुना तो ख़तरे बढ़ जाएँगे।सबसे पहले तो धर्म ख़तरे में होगा।फिर समाज।और देश तो ख़तरे में रहेगा ही।इस तरह तुम्हारा सारा डर जनता की ओर शिफ्ट हो जाएगा।वह डरेगी तभी वोट देगी।निर्भय होने का अहसास होने पर कोई घर से भी नहीं निकलेगा।रही बात,चुनाव जीतने के बाद काम न करने पर लात मारने की,हम इसका मौक़ा ही नहीं आने देंगे।हम हर चैनल पर नया विमर्श शुरू करवा देंगे।जनता आपस में वहीं अपने चरणों का सदुपयोग कर लेगी।’


‘फिर भी मैं पार्टी-सेवा में ही अपना तन समर्पित करना चाहता हूँ।कृपया मुझे चुनाव लड़ने से बचा लीजिए’ कार्यकर्ता अभी भी नासमझी का प्रदर्शन कर रहा था।उसकी गुहार बड़ी मौलिक लग रही थी।


उसके इस तरह बेवक़्त के राग ने नेताजी का सारा मूड बिगाड़ दिया।वह अपने मौलिक रूप में आ गए।‘कौन है यह आदमी ? इसका पता करो कि यह अपना कार्यकर्त्ता है भी कि नहीं ? इसे यह भी नहीं पता कि पार्टी को तन से ज़्यादा धन चाहिए।और इसके लिए चुनाव में जीतना होगा।इस आदमी को हमारे ‘मिशन’ की बुनियादी जानकारी तक नहीं है।किस इलाक़े से है यह ?’ नेताजी बिना रुके सब कह गए।


चुनाव-प्रभारी नेताजी के साथ में ही थे।ऐसी स्थितियों का उन्हें पूर्वानुमान होता है।उन्होंने स्थिति को तुरंत सँभाला।चुनाव-समिति की सिफ़ारिश वाली सूची लहराते हुए वह नेताजी के कान में फुसफुसाए,‘हम तो इस बार भी इनका टिकट फाइनल नहीं कर रहे थे पर पार्टी इस नतीजे पर पहुँची कि इनके चुनाव न लड़ने से पार्टी का अधिक नुक़सान हो सकता है।किसी युवा को लात खिलाने से अच्छा है कि इन पर ही दाँव लगाया जाए।युवाशक्ति में भविष्य की अपार संभावनाएँ हैं,इसलिए हम उन को जोखिम में नहीं डाल सकते।यह हमारे समर्पित कार्यकर्ता हैं और प्रयोगधर्मी रहे हैं।‘विधायक-फंड’ को पार्टी-फंड में बदलने में ख़ूब माहिर हैं।जब यह ठेकेदार थे तो सड़क और पुल खा गए।थोड़े दिन पत्रकारिता में थे तो जनता के मुद्दे खा गए।इन्होंने राजनीति की शुरुआत हमारी पार्टी से ही की।प्रवक्ता बनते ही देश का एक चौथाई इतिहास खा गए।आजकल सोशल मीडिया में ढाई किलो गाली रोज़ खाते हैं।अब इनको लात खाने से डर लग रहा है।हद है ! राजनीति सेवा का क्षेत्र है।और सेवा करते हुए गाली और लात खाना आम बात है।यह चुनाव जीतेंगे तो भी निपटेंगे और हारेंगे तो अपने आप निपट जाएँगे।आप बेफिक्र होकर चरें,मैं इन्हें ठीक कर दूँगा।’


नेताजी अभी भी अशांत थे।वे कार्यकर्ता से संतोषजनक उत्तर चाहते थे।उसे पुचकारते हुए बोले,‘अच्छा यह बताइए, तुम राज्य का भला चाहते हो या नहीं ? कार्यकर्ता डरते हुए बोला, ‘मान्यवर,हम भला चाहते हैं,इसीलिए चुनाव नहीं लड़ना चाहते।यह विरोधियों की साज़िश है।वे मुझे रास्ते से हटाना चाह रहे हैं।जीतेंगे तो जनता की मार खाएँगे और हारे तो राजनीतिक रूप से मर जाएँगे।’ ऐसा मासूमियत भरा जवाब सुनते ही नेता जी हँस पड़े।कहने लगे,‘ हमने जो ‘स्कीम’ लॉंच की है,उसकी कभी नौबत ही नहीं आएगी।अव्वल तो हम इत्ते नए मसले पैदा कर देंगे कि जनता की याददाश्त गुम हो जाएगी।मान लिया अगर वह मारने पर आमादा हो भी गई तो इसके लिए पाँव होने भी तो ज़रूरी हैं।तब तक बेरोज़गारी इतनी बढ़ जाएगी कि कोई अपने पाँवों पर खड़ा ही नहीं हो पाएगा।इसलिए अपने डर को दूर करिए।अब तो चेहरे से ‘मास्क’ भी हट गया है।खुलकर खेलिए।हम चुनाव लड़ते नहीं,खेलते हैं।’


समर्पित कार्यकर्ता फिर से नेता जी के चरणों में लोट गया।चुनाव-प्रभारी ने उसे चुनाव-सूत्र देते हुए कहा,'जाइए,कुछ न कुछ खाते रहिए,इससे तुम्हारी इम्यूनिटी बढ़ेगी और ताक़त मिलेगी !’


संतोष त्रिवेदी 

धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...