मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

लड़कों की गलती या जनता की ?



नेताजी को बहुत दिनों बाद चैन की नींद आई थी।पिछले कई रोज़ से अख़बार वालों और टीवी वालों ने उनकी तरफ से बिलकुल आँखें बंद कर ली थीं। भरे चुनाव के मौसम में ऐसा हो जाये,तो कोई नेता कैसे अपना जीवन-निर्वाह कर सकता है ? वे तो फ़िर भी समाजवाद के पुरोधा और सेकुलरिज्म के चैम्पियन रहे हैं। उनकी अनदेखी होती रहे,यह नेताजी कैसे सहन कर सकते थे,आखिर पुराने पहलवान जो ठहरे। इस नाते अखाड़े में लगने वाले सभी तरह के दाँवों से वे बख़ूबी परिचित हैं ,सो मुकाबला हारते देखकर आखिरी दाँव चल दिया। नतीजा सामने था। सभी अख़बारों ने बड़ी- बड़ी फोटू के साथ ढेर सारे पन्ने उनको समर्पित कर दिए । चुनाव के समय  जबानी जमाखर्च से वे रातोंरात स्टार बन गए । चुनावी-मशीन का पिटारा चाहे जब खुले,मगर नेताजी फ़िलहाल ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे और फेसबुक पर उनके नाम से स्टेटस लहलहाने लगे ।टीवी चैनलों ने भी दो कदम आगे बढ़कर उन पर विशद-चर्चा कराई।इस तरह नेताजी री-लॉन्च हो गए।
नेताजी की इस अभूतपूर्व उपलब्धि का श्रेय एक क्रान्तिकारी बयान को है ,जिसमें उन्होंने कहा था कि लड़कों को उनकीगलतीके लिए फांसी नहीं मिलनी चाहिए। उनके कहे अनुसार यह ‘गलती’ बिलकुल मामूली है। स्त्रियों के शोषण के लिए पुरुषों को जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त हैं,ऐसे में यदि वंश-शिरोमणिसपूतअतिरिक्त मनोरंजन कर लेते हैं तो उसमें हर्ज़ ही क्या है ? सदियों से चला रहा है कि समाज में स्त्री मनोरंजन का विशेष साधन रही है। इसलिए यह गलती ही साबित नहीं हुई तो किस बात की फाँसी ? यह तर्क बाहर वालों के लिए है पर नेताजी खूब समझते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा । उन्हें पता है कि ऐसे हीलौंडेआगे चलकर उनकी पार्टी के कर्णधार बनेंगे। ऐसे होनहारों को यदि पहले ही फाँसी पर लटका दिया गया तो आगे चलकर उनकी पार्टी की अगुवाई कौन करेगा ? फ़िर तो देश-सेवा भी नहीं हो पायेगी। जो लोग इस प्रस्ताव का विरोध करते हैं,निरा मूरख हैं। आज भी नेताजी जो कुछ हैं,उसमें इसी कैटेगरी के लोग अधिक हैं। ऐसे में इस घटना को महज टीआरपी हथियाने की बात कहकर उनके साथ अन्याय किया जा रहा है।
नेताजी अपने भविष्य से अधिक देश के प्रति चिंतित हैं इसीलिए इस काम में उनके सहयोगी भी जुट गए हैं। जब सामने वोटों की फ़सल लहलहा रही हो ,ऐसे में अच्छे-भले का धीरज छूट जाता है। देश के आगे सबसे बड़ी चिंता सेकुलरिज्म को लेकर है। उसे कुर्सी पाकर ही बचाया जा सकता है। कुर्सी  पाने के लिए समाज के कुछ लोगों या वर्गों का उत्सर्ग करना पड़े तो यह बहुत छोटी बात है। नेताजी ने तो अपना और अपने पूरे परिवार का जीवन समाज और देश-सेवा के लिए पहले ही समर्पित कर रखा है। ऐसे में जनता की एक ‘गलती’ से यदि वे और उनका कुनबा तबाह होता है तो यह बहुत बड़ा अन्याय होगा। अब यह आपको सोचना है कि देश के लिए लड़कों की ‘गलती’ ज़रूरी है या जनता की ?

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