बुधवार, 19 अगस्त 2015

आजादी का अलार्म !

आजादी का एक दिन था,गुजर गया।आजादी अब महसूसने की नहीं मनाने की चीज़ है।हर वर्ष इसके लिए एक तिथि नियत कर दी गई है।हम इस काम में कभी नहीं चूके।आज़ादी मिलने के साथ ही वार्षिक अंतराल पर आजादी का अलार्म लगा दिया गया था।हर बार यह अलार्म लालकिले से बजता है।बहरे हुए लोगों को चीख-चीखकर जगाया जाता है कि मूर्खों,हम आज़ाद हैं।और सुनने वाले वाकई मूर्ख होते हैं।वे उस ‘हम’ में अपने को भी शामिल कर लेते हैं।

अगर आप समझते हैं कि आज़ादी एक अमूर्त चीज़ है तो भी आप गलत हैं।इसमें अप्रतिम सौंदर्य है।आज़ादी के इस रूप का अहसास कराने के लिए ही कहीं ‘स्टेचू ऑफ लिबर्टी’ है तो कहीं ‘स्वतंत्रता की देवी’।आप इसके निकट आयें और महसूस करें।यह स्वयं किसी के निकट चलकर नहीं जाती।जिस चीज़ को हासिल करने के लिए हजारों कुर्बानियाँ दी गई हों,वह आपको साल में एक बार लालकिले से यूँ ही मिल जाती है ! वैसे तो सरकारी दफ्तरों में हर समय आज़ादी रहती है पर उसके लिए कठिन परीक्षा पास करनी होती है।खेत-खलिहान में काम करने वाले यह मुश्किल नहीं समझते।इस जानकारी के अभाव में वे आज़ादी की चाहत रख लेते हैं।गलती उन्हीं की है।

आज़ादी पर बोलना सबसे कठिन काम है।यह काम तब और मुश्किल हो जाता है जब हर साल किया जाता हो।रिकॉर्ड तोड़ते हुए बोलना और भी मुश्किल है।नए-नए फ्लेवर डालकर उच्चगति से आलाप करना पड़ता है,जिससे सुनने वाला नए तरीके से बहरा हो जाये।आज़ादी अब तरकीब भी है और मौका भी।बोलने की आज़ादी इसीलिए मिली है कि जैसा चाहो,जब चाहो बोलो।पर बोलना भी एक कला है।आज़ादी की तरह यह भी सबके पास नहीं होती।सफल होने के लिए कलाकार होना ज़रूरी है।मेहनत-मजूरी कोई कला नहीं है,उसके लिए पसीना बहाना पड़ता है।पसीने से गंधाये हुए लोग न कलाकार हो सकते है और न सफल।

अगर बोलने की आज़ादी है तो सुनने की भी।दोनों असीमित हैं।बोलने में ऊर्जा नष्ट होती है तो सुनने में संचित होती है।इस तरह से सुनना अधिक उपयोगी उद्यम है।इस क्रिया से धैर्य अपने आप आ जाता है।शायद इसीलिए एक शायर ने कहा भी है,’बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे’।बोलना और सुनना आज़ादी के अंग हैं तो ‘करना’ इसका आवश्यक विस्तार।हमें जितनी आज़ादी काम करने की मिली है,उससे भी अधिक न करने की।हम अधिकता की ओर अग्रसर हैं,इसलिए बोलने के रिकॉर्ड टूट रहे हैं।हमारी आज़ादी की उपलब्धि यही है।

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज की हकीकत - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Anita ने कहा…

आजादी महसूस करने की शै है..वाकई !

साहित्य-महोत्सव और नया वाला विमर्श

पिछले दिनों शहर में हो रहे एक ‘ साहित्य - महोत्सव ’ के पास से गुजरना हुआ।इस दौरान एक बड़े - से पोस्टर पर मेरी नज़र ठिठक ...