गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

कुछ तो ले ले रे.....!

चुनाव सिर पर हैं और नेताजी सांताक्लॉज बन सड़क पर घूम रहे हैं।उनके लम्बे झोले में अनगिन उपहार भरे पड़े हैं।झोला भी अब स्मार्ट होकर ‘विज़न डाक्यूमेंट’ बन गया है।इस पर केवल दृष्टिपात ही किया जा सकता हैजिनकी दृष्टि कमजोर होगी,उन्हें यह ‘विज़न’ दिखेगा भी नहीं क्योंकि इसमें सारे उपहार डिजिटल फॉर्म में रखे गए हैं।ऐसा ‘डिजिटल इंडिया’ की मजबूती के लिए किया जा रहा है । उपहारों की डिलीवरी की शत-प्रतिशत या उससे भी अधिक की गारंटी दी जा रही है।लोग कम हैं और उपहार ज़्यादा।अब इस इस बात को लेकर कन्फ्यूज़न हैं कि वे दाल-रोटी में ही बसर करें या पिज्जा-बर्गर का ऑर्डर भी रिसीव कर लें ! वे नगर के नारकीय-नागरिक बनें रहें या मंगल ग्रह के स्मार्ट सिटिज़न हो जांय ! बहुत कम समय में लोग इतनी सौगातों की बारिश में डूब-उतरा रहे हैं।ऐसी आपदा तो कोशी की बाढ़ के समय भी नहीं आती।इससे उबरें तो उपहारों को पंजीरी बनकर फांकने का लाभ उठा सकें।

सांताक्लॉज के झोले में वह सब कुछ मौजूद है जो एक स्मार्ट नागरिक के पास होना चाहिए।लैपटॉप,स्कूटी और टीवी जैसी चीजें आते ही फटेहाली और भूख अपने-आप भाग जाती है।बंदा लैपटॉप लेकर फेसबुक में यह थोड़ी लिखेगा कि उसके पास रोटी नहीं है।नियमित रूप से स्टेटस अपडेट करने वाले भूखे-नंगे और पिछड़े लोग नहीं होते।खैरात में मिली स्कूटी में बैठकर ‘सेल्फी ले ले रे’ गाते ही डामर वाली सड़क नेताओं के बातों जैसी चिकनी-चुपड़ी हो उठेगी।ऐसे स्टेटस पर लाइक्स की दनादन बौछार होगी।अति स्मार्ट होने का यह दस्तावेजी-सबूत है।
यहाँ तक कि उपहारों का वर्गीकरण भी हो गया है। लड़कों को लैपटॉप,लड़कियों को स्कूटी और उनके माता-पिताओं के लिए टीवी देने की योजना बनाई गई है।इससे चुनाव में सरकार तो बदल ही जायेगी,समाज में भी क्रान्तिकारी बदलाव आएगा।लड़के लैपटॉप लेकर फेसबुक पर ‘गौमाता-बचाओ’ अभियान में व्यस्त रहेंगे और उनकी माताएँ बैग से झाँकती उनकी किताबों को हड़काती रहेंगी।लड़कियाँ स्कूटी में बैठकर ‘ऑल द फन’ की ब्रांडिंग करेंगी और माता-पिता टीवी पर भाभी जी के साथ ‘सही पकड़े हैं’ देखकर मगन होते रहेंगे।यानी सब अपने काम पर।इस तरह सरकार भी अपना काम निश्चिन्त होकर करती रहेगी।
   
लैपटॉप,स्कूटी और टीवी ने बिजली,सड़क और पानी को बड़ी आसानी से रिप्लेस कर दिया है।अब ये सभी चीजें डिजिटल फॉर्मेट में मिलती हैं या टोकन के रूप में।इसीलिए न तो बिजली अब खम्भों और तारों से आती है और न पानी नल से।इनके टोकन रीचार्ज करने के लिए ही लैपटॉप बाँटे जा रहे हैं । टोकन डालने पर दूध और पैसे की तरह पानी निकलेगा।इससे पानी पैसे की तरह बहेगा।अगर उपहार बंटने का मौक़ा मिला तो मंगल का सारा खारा पानी मीठा बनकर बोतल-बंद हो जायेगा ।रही बात स्कूटी की तो वह सड़क से ज्यादा सोशल-मीडिया पर चलेगी।ऐसे में ऊबड़-खाबड़ सड़क में जितने ज़्यादा ‘एडवेंचर’ होंगे,सोशल मीडिया में सरकार की टीआरपी उतनी ही अधिक बढ़ेगी।इस क्रांति से एक फायदा यह भी है कि नई पीढ़ी के रोजगार के लिए एक नया सेक्टर खुल जायेगा।
   
जनता को हर हाल में उपहार मिलना तय है,भले ही किसी को हार मिले।बस उसके लिए उपहार चुनना आफत का काम है।दीवाली और क्रिसमस ऑफर एक साथ आ गए हैं।एक दूसरे  झोले में गाँवों को शहर बनाने का फार्मूला रखा हुआ है।उसको कई लोग लादे हुए हैं और अब जनता पर लादना चाहते हैं।अभी तक चारा चबाने और ‘सुशासन’ ढोने से ही ‘टैम’ नहीं मिला।था।इस बार यदि जनता ने फ़िर लदने दिया तो वे उसके लिए ‘कामधेनु’ और ‘कल्पवृक्ष’ का इंतजाम कर देंगे।इसके लिए तो टोकन की भी ज़रूरत नहीं रहेगी।जो चीज़ जब चाहिए,मिल जायेगी बशर्ते उसका नेता मिल जाये।‘कामधेनु’ और ‘कल्पवृक्ष’ को जगाने का मंतर उसी के पास है।

फ़िलहाल,बेशुमार उपहार हवा में तैर रहे हैं।जिन्हें लो-नेटवर्क में सिग्नल पकड़ने का हुनर मालूम है,वे पकड़ लें क्योंकि कभी भी कॉल-ड्रॉप हो सकती है।


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