गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

हो गई है घाट पर पूरी व्यवस्था !

कल शाम प्रवक्ताजी मिले,बड़े गुस्से में थे।सरकार बनने के बाद ऐसा पहली बार था।पहले तो उन्होंने हमें घूरा फिर ऊपर से नीचे तक पूरा मुआयना किया। हमें सम्मान-हीन देखकर आश्वस्त हुए और बोले,’ इतने दिनों बाद ऐसी सरकार आई है और आपकी बिरादरी कुछ मांगने के बजाय वापस लौटा रही है..।यह हमारे खिलाफ साजिश है।’

हमने भी कहा,’हो सकता है कि कोई गहरी साजिश हो।इसकी जाँच कराई जाय कि जिन लेखकों के हाथ में कलम और कागज होना चाहिए उन्होंने अपने सम्मान-पत्र के गोले बनाकर सरकार पर कैसे फेंकने शुरू कर दिए।यह तो हद है ! प्रवक्ताजी बिफर पड़े,’हम पर उन्हें अपमानित करने का आरोप लग रहा है,जबकि सम्मान वापस करके उन्होंने स्वयं अपमान चुना है।अरे भाई,दोनों चीजें एक आदमी के पास कैसे रह सकती है ?वैसे साहित्य को सहिष्णु और तटस्थ होना चाहिए।इसके लिए हम उन्हें तट पर बैठाकर उनका पुनर्वास कर सकते हैं।वे अपने मनपसंद घाट चुन लें।’

हमने मामले को ठंडाने की गरज से उनके साथ चिन्ता साझा की,’आप सौ फीसद सही कह रहे हैं।पर सम्मान को अपमान में न बदला जा सके इसके लिए आपकी सरकार क्या कर रही है ?प्रवक्ताजी संयमित होते हुए बोले,’हमने एक योजना बनाई है कि जिस सरकार के रहते साहित्यकारों को सम्मान दिए जाएँ,उस सरकार के जाते ही वे सम्मान एक्सपायर हो जाएँ।इसमें इस विकल्प पर भी विचार हो रहा है कि दूसरी सरकार के दिए गए सम्मानों के लिए वर्तमान सरकार जिम्मेदार नहीं होगी।यह बात साहित्यकार के मान-पत्र पर ही चस्पा कर दी जाये।’

हमने ध्वनिमत से वह प्रस्ताव तुरंत पास कर दिया।सरकारी सम्मानों के लिए यह बेहतरीन योजना लगी।’साहित्यकारों को और क्या-क्या करना चाहिए,यह भी अगर सरकार द्वारा बता दिया जाय तो ऐसी स्थिति निर्मित ही न हो।नेताजी अचानक से चहक उठे,’इसीलिए हम आप जैसे लेखकों का सम्मान करते हैं।हम आम लोगों के खाने-पीने से लेकर बोलने-कहने तक सबके लिए एक नियम बनाने जा रहे हैं।’वेदों की ओर लौटें’ हमारे इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है।उनमें वर्णित बातें हमारे लिए कानून हैं।हम इसकी पालना सुनिश्चित करेंगे।’

‘पर एक अड़चन आ सकती है।हमारा संविधान कहीं इसके आड़े आ गया तो..?’हमने गम्भीर चिन्ता प्रकट करते हुए प्रवक्ताजी की ओर ताका।वे भी तैयार थे,कहने लगे,’संसद की संप्रभुता ख़तरे में है।ज़रूरी हुआ तो इस पर हम रोजाना ट्वीट करेंगे।’

इसके बाद हमारे सीने में उठ रहा दर्द कुछ शांत हुआ।

कोई टिप्पणी नहीं:

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...