बचपन से सुनते आये हैं कि सेवा में ही मेवा होती है।अब उसका प्रत्यक्ष दर्शन हो रहा है।लोग सेवा करने के लिए टूटे पड़ रहे हैं।पहले सेवा स्वेच्छा से होती थी और अब पर्ची काट कर की जा रही है।उस सेवा का कोई वक्त तय नहीं था यह मौसमी है।पाँच साल में एक बार ही जनता के ‘भाग‘ खुलते हैं।सेवक ज्यादा हैं इसीलिए इसके लिए रार और मार मची है।एक अदद पर्ची के लिए कपड़े फट रहे हैं,जूते चल रहे है।सेवा का ऐसा जज्बा पहले कभी न था।
सेवा करने के लिए जेब भरी और भारी होनी चाहिए जिससे सेवा करने का जज्बा उबल कर बाहर आ जाए ।फटी जेब वाले जज्बा रखें तो कहाँ ? अभी इसमें ईएमआई स्कीम भी नहीं आई है।कोई भी काम करने के लिए ‘तन-मन-धन’ का सूत्र यूँ ही नहीं दिया गया है।बाहुबली और थैलीशाह इसीलिए सेवा करने के सबसे पहले हक़दार हैं।
जन-सेवा निवेश का मुख्य क्षेत्र है।इसके लिए टेंडर उठते हैं,बोलियाँ लगती हैं।सेवा करने का ज्वार इतना तीव्र होता है कि विचार अचार के मर्तबान में आ जाते हैं।लम्बे हाथ और लम्बी जेब के स्वामी सेवक बनने के लिए सबसे काबिल माने जाते है।बस उन्हें एक मौका चाहिए ।इस प्रक्रिया में बड़ा श्रम लगता है।बाद में वे दस हाथों और बीस आँखों से जनता की सेवा करके अपना श्रम सार्थक करते हैं।यही ‘मेकिंग ऑफ़ जनसेवक’ है।
जिनको सेवा करने का लाइसेंस नहीं मिल पाता वो बड़े अभागी होते हैं।उनके पास काम लायक एक-दो सेक्टर ही होते हैं।बालू-खनन वाला देश की शिक्षा-नीति की खुदाई भी करना चाहता है पर ऐसे में वह पिछड़ जाता है।इलाके का तड़ीपार कानून और व्यवस्था दुरुस्त करना चाहता है,पर समय से पर्ची नहीं मिल पाती।सेवादार यदि शॉर्प-शूटर हो तो कोई समस्या ही नहीं।सेवा की पर्चियाँ कटनी चालू हैं।हर तरफ सेवादार घूम रहे हैं।वे सेवा को आतुर हैं पर जनता भूमिगत है।उसे हर पाँच साल में अपनी सेवा करवानी पड़ती है।इसके लिए शार्प-शूटर तैयार हैं,बस आपको एक बटन-भर दबाना है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें