बुधवार, 31 जनवरी 2018

उनके कोश में ‘आधार’ की सेंध !

आख़िरकार आम आदमी की मुसीबतें ख़त्म होने काआधारमिल ही गया।उसका कोष अभी भले ज़ीरो बैलेंस दिखा रहा हो पर दुनिया के सबसे प्रसिद्ध शब्दकोश ऑक्सफ़ोर्ड ने 
आधारको अपने साथ जोड़ लिया है।इसे हर चीज़ से जोड़ने के लिए अकेले आम आदमी ही क्यों जद्दोजहद करता रहे,इसलिए उसका दुःख बाँटने के लिए एक ख़ासहमदर्दमिल गया है।इसे बीते साल का यह सबसे लोकप्रिय हिन्दी शब्द माना गया है।

आम आदमी के लिए ख़ुशी की बात यह रही कि उसे पिछले साल सबसे ज़्यादा परेशान करने वालेमित्रोंऔरनोटबंदीदोनों इस दौड़ में उसी की तरह ख़ाली हाथ रहे।आधारने इन्हें बुरी तरह पछाड़ा है।विद्वानों नेमित्रोंको महज़ इसलिए ख़ारिज कर दिया क्योंकि इसके हिज्जे ग़लत थे।आँकड़े ग़लत होने पर जब किसी देश की अर्थव्यवस्था अनर्थ-व्यवस्था में बदल सकती है तो हिज्जे ग़लत होने पर इससे भी बड़ा नुक़सान हो सकता था।पिछले दिनों हुए चुनाव मेंनीचके अर्थ ने जीती हुई बाज़ी पलट दी थी।सो,जानकारों को ऐसे ख़तरों का अंदेशा था।उन्होंने इसीलिए माना किमित्रोंशब्द पिछले कुछ समय से इतनी बार बोला गया है कि यह घिसकरमित्रोके शुद्धता-स्तर पर  चुका है।चूँकि बाज़ार में शुद्धता की कोई माँग नहीं है,इस नातेमित्रोदौड़ में चूक गया।दूसरा शब्दनोटबंदीशब्दकोश में इसलिए नहीं पाया क्योंकि उसके रहते बैंक,एटीएम सबके कोष ख़ाली हो गए थे।प्रकाशकों को इस बात का डर रहा होगा कि कहीं यह उनके मूल्यवान शब्दकोश को भीअमूल्य बना दे ! इस तगड़ी विवेचना और भीषण मंत्रणा का नतीजा यह रहा कि हमने आम आदमी के फंदे को बाहर वालों के गले भी लटका दिया।


तुलसी बाबा बहुत दूर की सोचते थे।तभी पाँच सौ साल पहले कह गए हैं,’कलियुग केवल नाम अधारा।सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पाराअर्थात कलिकाल में काम नहीं केवल नाम काआधारहोगा।नाम-स्मरण मात्र से ही नर यानी वोटर का पारा उतर जाएगा।इसीलिए अब सर्वत्र नाम-चर्चा है।सरकार को काम करने को यह मज़बूतआधारमिल गया है।अब आप पकौड़ें तलें या बातें बनाएँ,देखना यह है कि ये स्वरोज़गार योजनाएंआधारसे कब जुड़ती हैं !

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