29/11/2012 को डी एल ए में प्रकाशित |
जनसंदेश में 14/11/2012 को प्रकाशित |
उनकी महारैली हो चुकी थी।टीवी और अख़बारों में उनके पर्चा बांचने पर खूब बहस-मुबाहिसे हो रहे थे।कुल मिलाकर लग रहा था कि वे बहुत दिनों से भरे बैठे थे कि कब मौका मिले और वे इस देश को नई दिशा दे सकें ।रैली की खुमारी उतर न जाए इसलिए तुरत-फुरत सारे भक्तों को इकट्ठा कर संवाद-बैठक का आयोजन किया गया ।पहले महारैली और फ़िर अपनी बैठकी में उन्होंने अपने उद्बोधन से बता दिया कि उनका वाचिक-अस्तित्व भी है।महारैली में मैं भी जाने का इच्छुक था पर बाहर से ही बड़ी तादाद में दर्शनार्थियों के आ जाने से सड़क के ट्रैफिक ने हमें आगे बढ़ने ही नहीं दिया।इसलिए संवाद-बैठक में ही उनसे मिलना तय किया ।यह एक ऐतिहासिक बैठक थी,जिसके माध्यम से देश को नई दिशा मिलने वाली थी ।
व्यक्तिगत रूप से मैं उनके महारैली–चिंतन से बहुत प्रभावित हुआ था और देश पर इसके गंभीर प्रभाव और उनके आविर्भाव को खुल के समझना चाहता था।इसलिए बिना समय गँवाए उनके गोपनीय-स्थल की ओर हम रवाना हो गए । जल्द ही हम उनके ठिकाने के प्रवेश-द्वार पर थे।हमने सुरक्षाकर्मी को एक पर्ची थमा दी जिसमें लिख दिया था कि ताज़ा हालात पर हम उनसे बात करना चाहते हैं।हमें उनसे संवाद करने का हमें जल्द ही मौका मिल गया।
वे लॉन में ही मिल गये। कृत्रिम-प्रकाश से घिरे हुए अपने कम्प्यूटर में महारैली व संवाद-बैठक के कवरेज से सम्बंधित ख़बरें स्टोर कर रहे थे।हमें वहाँ पाकर कम्प्यूटर छोड़कर हमसे मुखातिब हुए।हमने देखा,उनका चेहरा सम्पूर्ण आत्मविश्वास से दमक रहा था।बिना मौका गँवाए हमने उन्हें हालिया आयोजनों की ऐतिहासिक सफलता की बधाई दी और उन्होंने इसे बड़े ही नम्र भाव से उसे ग्रहण किया।हमारा पहला सवाल था,’आप महारैली से पहले और बाद में क्या फर्क देख पाते हैं ?’ उन्होंने दिमाग और शरीर की अधिकतम ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए जवाब दिया,’सबसे पहले तो हमने उन विरोधियों को करारा जवाब दिया है जो कह रहे थे कि हम कुछ बोलते नहीं हैं।हम वहाँ बोले और ज़ोर से बोले।हमारे बन्दों ने महारैली में भीड़ इकट्ठी करके सिद्ध कर दिया है कि विरोधियों ने हमारी सरकार पर जितने भी घोटालों के आरोप लगाये थे,सब मिथ्या हैं।जो सही हैं,उनकी जाँच चल रही है और उनमें भी सरकार बेदाग निकल आएगी।इसी सब पर संवाद-बैठक में आम-सहमति भी बन गई। ’इतना कहकर वो कम्प्यूटर में फीड महारैली व बैठक के चित्र दिखाने लगे।
हमने उन्हें बताया कि वाकई हम पहले ही उनकी सफलता से लहालोट हैं,इसलिए बस हमें चंद सवालों का जवाब दे दें।उनकी सहमति पाते ही मैंने अगला सवाल किया ‘आपने आम आदमी के लिए बंद दरवाजे खोलने की बात की है,इसका आशय क्या है ?’ उन्होंने कहा कि देखिए, हमें बताया गया कि उस दिन रैली में जो भी लोग आए थे,सब आम आदमी थे।उनके आने के लिए हमारी सभी राज्य सरकारों ने सारे नाके-दरवाजे खोल दिए थे।हमसे मिलने के लिए किसी को कोई टोल-टैक्स नहीं देना पड़ा और इस वज़ह से हमारी रैली ने भीड़ के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।इसलिए मैं सोचता हूँ कि आम आदमी के लिए बंद दरवाजे खोलना कितना उपयोगी हो सकता है ,हालाँकि इस बात की पूरी कोशिश बरती गई है कि हमारी बैठकी में कोई आम आदमी न घुस पाए !’
हमने अब आखिरी सवाल दागा,’आप देशवासियों को इस अपनी तरफ से क्या सन्देश देना चाहते हैं ?’उन्होंने माथे में आए हुए तनाव को थोड़ा कम किया और कहा,’लोग भ्रामक प्रचार से दूर रहें।हम पर देश में अंधेर करने का इलज़ाम लगाया जा रहा है जो सरासर गलत है।मैं देख रहा हूँ,चारों ओर रोशनी फैली हुई है।पिछले आठ सालों से मुझे थोड़ी समझ आई है।अगले कुछ सालों में हम पूर्ण समझदार होने की कोशिश करेंगे।किसी भी उद्योगपति का दिवाला न निकले ,हम इसका ध्यान रखेंगे।आम आदमी को हर साल की तरह इस साल भी लालीपॉप मुबारक !ज़रूरत हुई तो हम शीघ्र एक और बैठक करेंगे ’ हम उनका यह सन्देश देश के बाकी लोगों तक पहुँचाने के लिए सुरक्षित बाहर लौट आए ।
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