मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

पैसा आपके हाथ का मैल नहीं है !

०६/१२/२०१२ को जनवाणी में प्रकाशित...!
4/12/12 को inext में...





 

बचपन से सुनते आए हैं कि पैसा हाथ का मैल होता है।इसे जांचने के लिए छुटपन में कई बार हाथ को खूब रगड़ा भी,पैसा तो नहीं पर मैल ज़रूर हमारे हिस्से में आया था ।इस कहावत का असली अर्थ तब समझ में आया जब सरकार ने खुलेआम मुनादी पिटवा दी कि ‘आपका पैसा,आपके हाथ’।अब आगे से आम आदमी के खाते में सीधा पैसा जायेगा और और इसमें केवल सरकार का हाथ रहेगा।इस हाथ को ही उसे ध्यान में रखना है,क्योंकि जिस हाथ से आम आदमी को पैसा दिया जा रहा है,वह हाथ कोई मामूली है भी नहीं।अब इसे दिये जा रहे हाथ का मैल भी नहीं कह सकते।यह तो आम आदमी से मेल बढ़ाने की ज़रूरी प्रक्रिया भर है।

हाथ वालों ने बहुत सोच-विचारकर यह क्रान्तिकारी कदम उठाया है।अभी तक लगातार ये आरोप लग रहे थे कि कई नेता खूब खाते हैं पर अब जनता के खाते खोलकर ऐसी चाक-चौबंद व्यवस्था की जा रही है कि सबके खाते खुल जाएँ और उनमें कुछ डालकर उनका मुँह बंद कर दिया जाय।इस बहाने कई निशाने सध जायेंगे।ऐसा करके सरकार अपने कार्यकाल को रिचार्ज करना चाहती है ताकि आगे की ताजपोशी में कोई अड़चन न पैदा हो सके।साथ ही,उसके कोयला-समूह में आम जनता की भी समुचित भागीदारी हो जाय।चारों तरफ़ पैसे और हाथ का बोलबाला हो जाय,यही वर्तमान निजाम की ख्वाहिश है।

‘आपका पैसा,आपके हाथ’ का नारा भी बिलकुल हिट होने की मुद्रा में है।इसमें देने वाले की जेब से कुछ नहीं जाना है बल्कि बहुत सारा वापस मिलने का गणित है।यह ऐसा जादुई खेल है जिसमें पाने वाला भी अनजान है कि उसे जो मिल रहा है,दर-असल उसी का है।इस तरह देने और लेने वाले दोनों पक्ष इसके परिणाम से पूरी तरह लहालोट हैं।ऐसी मनचाही फसल को उगते देखकर विरोधियों के पेट में मरोड़ उठना स्वाभाविक है।इसीलिए एक सामाजिक क्रांति फ़ैलाने वाले फैसले की वे सब गलाफाड़ आलोचना कर रहे हैं।वे नहीं चाहते कि ऐसा कोई नाड़ा आम आदमी के पाजामें में बंध पाए,क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो स्वयं उनके लिए अपना पजामा संभालना मुश्किल हो सकता है।

अब इस योजना के कुछ पहलुओं पर नज़र डालते हैं।सरकार यह कह रही है कि राशन की जगह सीधे पैसा देने से आम जनता को ही फायदा पहुंचेगा,बिचौलियों को नहीं।उसका मानना है कि कई बार सरकार द्वारा दिया राशन,मसलन उत्तम कोटि का गेहूँ,खुले बाज़ार में बिककर गरीब जनता तक सड़े-गले रूप में पहुँचता है।अब ऐसा नहीं हो सकेगा,जब उसके खाते में दन्न से पैसा आ जायेगा।यह और बात है कि इस ‘दन्न’ की बटन को दबाने में कोई हेरा-फेरी न हो।ज़ाहिर है,यह काम हाथ से ही होगा,कमल,साइकल या हाथी से नहीं।

आम आदमी के खाते में सीधा पैसा जाने का लाभ उस भोले-भाले पति को भरपूर होगा,जिसको अभी तक दारू पीने के लिए अपनी घरवाली से चिरौरी करनी पड़ती थी।राशन मिलने पर वह इसे बेचकर पहले जो अतिरिक्त जोखिम उठाता था ,उससे बच सकेगा ।जैसे ही उसके खाते में नगदी आई,वह दारू की दुकान के पास वाले एटीएम की सेवा लेकर अपना गला तर कर लेगा।घरवाली को कोई भी बहाना बनाकर आसानी से भरमाया जा सकता है ।इसके लिए आवश्यक हुआ तो उसके सामने सरकार को दो-चार गालियाँ भी दी जा सकती हैं,पर बदले में ,पियक्कड़ों की एक बड़ी जमात का उसे समर्थन भी मिल सकता है।इसलिए आम आदमी फ़िलहाल पैसा पाने की खबर से ही रोमांचित है।इसके एवज़ में उसे महज़ अपना  अंगूठा ही तो छापना है।


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