मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

सचिन भगवान के मंदिर में !

25/12/2012 को डीएलए  में
२०/१२/२०१२ को जनवाणी में...
18/12/2012 को I-next में !



जैसे ही हम सिद्धि विनायक नायक मंदिर के बाहर निकले,दरवाजे के पास ही सचिन दिखाई दिए।हमने उन्हें नमस्कार किया और खुशी जताई कि चलो अच्छा है, खेल से फुरसत निकालकर वे भगवान से मिलने आते हैं।सचिन ने सीधे मेरी बात का जवाब नहीं दिया । चेहरे पर थोड़ी-सी ज़बरिया मुस्कान बिखेरी और आगे बढ़ लिए ।उनको असहज देखकर हमने आगे बढ़ने का अपना कार्यक्रम मुल्तवी कर दिया।हम भी उन्हीं के पीछे-पीछे बढ़ लिए।हमें पास पाकर वे कुछ विचलित-से हो गए ।हम उनकी मनोदशा भांप चुके थे क्योंकि इस तरह के चेहरे पढ़ने का अपन का बड़ा अनुभव है।हम यह भी जानते हैं कि ऐसे में पीड़ित व्यक्ति को अकेला छोड़ना कतई ठीक नहीं होता।वह क्या है ना...अवसाद की स्थिति बहुत खतरनाक होती है ,सो हम बिना किसी सहयोग-प्रस्ताव के उनके साथ लग लिए।

सचिन मंदिर के प्रांगण में पड़ी बेंच पर पसर गए और यही सबसे उत्तम मौका था जिसको हमने झट से ताड़ लिया ।हमने देखा, सचिन एक हाथ में एल्बम पकड़े हुए थे और दूसरे हाथ की मुट्ठी बंद की हुई थी।हमें इसी बंद मुट्ठी की तलाश थी ।हम राज जानना चाहते थे कि इसमें वे क्या छुपाकर रखे हैं।हमने बात शुरू करी,’सचिन,आपको मंदिर में देखकर अच्छा लगा।क्या आप यहाँ नियमित रूप से आते हैं ?’वे बिलकुल शांत भाव से बोले,’भई ,लोगों ने नाहक हमें भगवान बना दिया है।शुरू-शुरू में तो यह सब अच्छा लगता था पर अब समझ में आया कि भगवान होने की कितनी क़ीमत अदा करनी पड़ती है? पहले तो हमारे पास यहाँ आने का समय ही नहीं था।खेलने से जो समय बचता था ,विज्ञापन वाले मार ले जाते थे।आज तो हम असली वाले भगवान से ही कुछ सवाल करने आए हैं।”

पर ये मुट्ठी में क्या दबा रखा है ?’ हमने मौका पाते ही असली सवाल दागा।सचिन ने जवाब देने के बजाय हमारे सामने ही बंद मुट्ठी खोल दी।देख लो आप भी और हमें बुरा-भला कह लो।कम-से-कम आपका भी कलेजा औरों की तरह ठंडा हो जायेगा।’हमने देखा ,उनकी मुट्ठी में दो रन धरे हुए थे।वे दोनों भी बिलकुल भाग जाने की मुद्रा में दिखे।शायद इसीलिए सचिन ने उन्हें अपनी मुट्ठी में कसकर रखा हुआ था।वे कुछ बोलते कि हम उबल पड़े,’भई ,आप अपनी आखिरी पारी को लेकर क्यूँ इत्ता सेंटिया रहे हैं? कहीं कोई हलचल नहीं है।पूरा बोर्ड और देश का मीडिया आपके साथ है।हाँ,अगर कुछ बड़ी विज्ञापन कम्पनियाँ आपका साथ नहीं दे रही हैं तो हम कुछ खटमल-मार और चड्डी-बनियान गिरोह के लोगों को जानते हैं ,वे आपको प्रायोजित करते रहेंगे।’

अब सचिन में कुछ आत्म-विश्वास की झलक स्पष्ट हुई ।वे ‘बूस्ट’ वाली एनर्जी और ‘अमूल’ मक्खन की ताजगी के साथ बोले,’नहीं,अभी स्थिति इतनी विस्फोटक नहीं हुई है।हमारे पास दूसरे हाथ में पुराना अल्बम है,जिसको देख-देखकर हम गदगद हो लेते हैं।कभी-कभार विज्ञापनदाताओं के दिखाने में ये चित्र बहुत काम आते हैं।कई बार हम खेल के मैदान से जल्दी बाहर इसलिए भी आ जाते हैं ताकि अपने फेसबुक-पेज में किसी पुराने पोज़ को डालकर आलोचकों को अपनी अहमियत याद दिला सकें।’हमने उनके कहे का भरपूर समर्थन किया और दिलासा दी कि अभी तो आप बस खेलते रहें,लोग चाहे इसे अपनी भावनाओं से खेलना समझें या बोर्ड अपनी इज्ज़त से,देश इनमें से कहीं पर भी नहीं आता।आपका मूल्य बाज़ार तय करेगा,टुटपुंजिया खेल-प्रेमी नहीं।और क्या पता ,आप इतने दिनों से भरे बैठे हो,अगले मैच में कहीं कुछ कर ही न बैठो !

बस हमारा इतना कहना था कि सचिन मंदिर के अंदर गए बिना ही हमारे साथ लौट पड़े।हमने देखा कि उनकी मुट्ठी वाले दो रन भी तब तक नदारद हो चुके थे।

 

1 टिप्पणी:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

जय हो ....अब तो सेंचुरी बन कर रहेगी।

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