बुधवार, 5 दिसंबर 2012

हमारे पास पारस-बटिया है !

१७/१२/२०१२ को डीएलए में

05/12/2012 को जनसंदेश में

 

बहुत दिन हो गए थे,खुलासे भी ठप-से पड़ गए थे।सोचा,नेता जी से मिलकर देश की थोड़ी-सी आबो-हवा लेता चलूँ,सो उनके ठिकाने की तरफ़ मुड़ लिये।नेता जी अपने दरवाजे के कुएँ पर ही मिल गए।वे बाल्टी-लोटा लिए हुए एक साबुन की टिक्की से अपनी मांसल-देह को रगड़ रहे थे।हमें देखते ही लंगोटा कसने लगे ।हमने कहा कि आप आराम से नहा लें,हम थोड़ा इंतज़ार कर लेंगे,साफ़-सफ़ाई बहुत ज़रूरी है।नेता जी अपनी पर आ गए,बोले’ज़्यादा समय नहीं है हमारे पास।हमें बहुत से काम करने हैं और रही सफ़ाई की बात उसकी चिंता हमें नहीं है।’ साबुन की टिकिया की तरफ़ इशारा करते हुए बोले,’इसे आप महज़ साबुन न समझें,यह ‘पारस-बटिया’ है।इसके संसर्ग से बड़े-बड़े दाग एकदम उजले हो जाते हैं।’
इस ‘पारस-बटिया’ के बारे में और जानने की हमारी उत्कंठा बढ़ती जा रही थी।हमने कहा,’इसकी ऐसी क्या खासियत है,जिससे यह सब-कुछ झक कर देती है?’नेता जी मुस्कुराते हुए बोले ,’आपने कभी आल्हा सुना है ? उसमें इस पारस-बटिया के बारे में ज़ोर-ज़ोर से कहा गया है कि ‘जिनके घर मा पारस-बटिया,लोहा छुवे स्वान होइ जाय’,ये बटिया पुरातन-काल से ऐसा कारनामा करती आ रही है और इसकी प्रकृति है कि यह बादशाहों के पास ही रहती है।पहले तो यह लोहे को सोना बनाने के काम आती थी पर जबसे हम कोयले से सोना बनाने लगे,इससे केवल दाग-सफ़ाई जैसे हल्के काम ही लेते हैं।’
‘तो क्या हम भी इसे आजमा सकते हैं ?’हमने अपनी इच्छा को प्रकट किया ।नेता जी अबतक नहा-धो कर,लंगोट कसकर हमारे करीब आ चुके थे।कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,’देखिए ,यह पारस-बटिया केवल उन्हीं के लिए है जो देश के सबसे बड़े मंदिर में पूजा करने के पात्र हैं।जिसको एक बार भी उस मंदिर में प्रवेश मिल गया,समझो यह साबुन-टिक्की हमेशा के लिए उसे मिल गई।इसे केवल देश-सेवकों के लिए ही आवंटित किया जाता है।आपने देखा नहीं,पिछले दिनों एक के बाद एक खुलासे होते रहे,किसी का कोयले ने मुँह काला किया तो किसी का डीएनए-टेस्ट ने।यह ऐसी अचूक सफ़ाई की टिकिया है कि बड़े से बड़े दाग और खुलासे मिनटों में हवा हो जाते हैं।एक मंत्री पर विकलांगों के पैसे हड़पने का इलज़ाम लगा था ,उन्होंने इसे आजमाया और देखिए, उनकी पदोन्नति हो गई।ये सारे खुलासे धुल जायेंगे,पर हमारी टिकिया नहीं घुलेगी’
‘पर आपको इस टिकिया से क्या विशेष फायदा हुआ है ?’हमने अपनापा दिखाते हुए पूछ लिया।नेता जी अब तक बदन में लकदक सफ़ेद धोती-कुरता धारण कर चुके थे,बोले ‘हमारी फ़िलहाल एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है,जिसमें अगले आम चुनावों के लिए प्रधानमंत्री-पद मिलने की सम्भावना पर विमर्श होना है।यह बैठक हमारे लिए इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि हम अब देश-सेवा को बिलकुल तत्पर बैठे हैं।प्रदेश की जिम्मेदारी से हम बिलकुल मुक्त हैं और अपने लिए बड़ी जिम्मेदारी ढूँढ रहे हैं।इस काम में एक अनुभवी शिखर-पुरुष भी हमारे साथ हैं।उनको भी इसी पारस-बटिया ने अभय-दान दिया हुआ है।अब हमारी बिरादरी के हैं तो हम एक दूसरे के सुख-दुःख का ध्यान नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा?’
अब तक हम पूरी तरह से नेता जी और पारस-बटिया के गुणों से परिचित हो चुके थे।हमें सफाई का मूल-मन्त्र मिल चुका था,पर वह हमारे काम का नहीं था,इसलिए हम अपनी परंपरागत सफ़ाई-स्थली गंगा जी में ही एक डुबकी लगाने चल दिए।

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