११/०४/२०१३ को कल्पतरु में ! |
10/04/2013 को जनसंदेश में ! |
मैं बिस्तर पर सोने
की कोशिश में लगा था कि अचानक कानों में भिन-भिन, भुन-भुन का तीखा स्वर सुनाई दिया।मैंने
थोड़ा ध्यान से देखा तो मेरे कान के दोनों ओर मक्खियाँ भिन-भिना रही थीं।मुझे लगा
कि वे किसी भी क्षण काट सकती हैं,यह सोचकर थोड़ा होश में आया ।मैंने पहले बाईं ओर
वाली मक्खी से अर्ज किया ,’तुम क्यों मेरे पीछे पड़ी हो ? मुझे थोड़ा तो आराम करने
दो।’ उस युवा मक्खी ने बताया कि मैं काटने वाली मक्खी नहीं हूँ।मैं यहाँ सीधे
मधुमक्खी के छत्ते से प्रकट हुई हूँ।रानी मक्खी का आदेश है कि लोगों को बता दो कि
छत्ते पर शहद बन चुका है।हमारे कई लोग उस पर चिपट चुके हैं।आप भी थोड़ा-सा शहद चट
लें,बस यही बताने आई हूँ।’
मेरी तन्द्रा तब तक
भंग हो गई थी।मैं सोचने लगा कि आजकल कितना अच्छा समय आ गया है कि मक्खियाँ स्वयं
अपने शहद को हमें समर्पित करने को आतुर हैं।लगता है अब चैन की नींद सो सकूंगा ।यह
सोच ही रहा था कि दाएँ कान की तरफ़ ज़ोर की भन्नाहट हुई।मैं एकदम से हड़बड़ा उठा।उधर
की ओर मुखातिब हुआ तो पीले रंग की बड़ी सी मक्खी दिखाई दी।मैंने सहमते हुए उससे
अपना गुनाह पूछा।उस मक्खी ने ज़वाब देने से पहले मेरे पूरे शरीर का निरीक्षण किया
और ठीक कान के नीचे भन्ना कर बोली,’मैं मधुमक्खियों की नकली नस्ल की नहीं हूँ।मेरा
आधुनिक अवतार हुआ है और लोग मुझे मोदी-मक्खी के नाम से जानते हैं।मेरी खासियत है
कि मैं शहद-वहद नहीं चटाती,बल्कि ज़ोर से काट लेती हूँ।’
इतना सुनते ही मैं
और सतर्क हो गया।मैंने जिज्ञासा की कि मगर काटने का काम तो बर्र का होता है,आप तो
मक्खी लग रही हैं।मैंने अभी-अभी मधुमक्खी से बात की है। अब ये मोदी-मक्खी कौन-सी
नई प्रजाति आ गई ?’उसकी भिन्नाहट पहले से तेज हो गई थी;बोलने लगी,’अब सब लोग जान
जायेंगे।अभी तक हमने कुछ लोगों का ही कर्ज उतारा है।अब मौका आ गया है कि सभी लोगों
पर यह उपकार कर दूँ।रही बात नई प्रजाति की,सो हम वैसे तो बहुत दिनों से सक्रिय
हैं,पर हर बार हमारे रूप-रंग बदल जाते हैं।मैंने बात आगे बढाते हुए पूछा,’तुम्हारे
यहाँ रानी मक्खी कौन है और उसका काम क्या है?’उसने तड़ से ज़वाब दिया ,’हमारे यहाँ
कोई रानी-वानी नहीं है।एक बूढ़ी बर्र है जिसके डंक अब निष्क्रिय हो गए हैं।हम उसको
कोई काम नहीं करने देते।हम मोदी-मक्खी की पोशाक पहनकर मधुमक्खी जैसा भले दिखते हैं
पर हमने अपना स्वाभाविक गुण नहीं छोड़ा है।’
‘पर क्या तुम्हारा
छत्ता भी है ?हमने धीरे से अगला सवाल पूछ लिया।मोदी-मक्खी अचानक ज़ोर से भन्नाने
लगी।वह अब हमारी ठीक छाती के ऊपर मंडराने लगी।अपने डंक को बाहर निकालते हुए वह
बोली,’हम छत्ता नहीं बनाते।हमारे पास माँ है जिसकी हिफाज़त हम अपने तरीके से करते
हैं।जो भी इसे छत्ता समझकर चाटने आता है,हम उसे काट लेते हैं।माँ थोड़ा नादान है जिसे
चाटने और काटने वालों में फर्क नहीं पता है।हम अगर उसकी सेवा भी करते हैं तो हमारे
डंक उसे लग जाते हैं।अब इसमें भला हमारी क्या गलती ?माँ को हमारी भावनाएं समझनी
चाहिए।मैं इसीलिए तुम्हें सतर्क करने आई हूँ कि यह बात तुम भी समझो और मेरी माँ को
भी समझाओ !”
मैंने अब मधुमक्खी
की तरफ़ निहारा।वह नदारद हो चुकी थी।हो सकता है रानी मक्खी ने उससे केवल भिनभिनाने
का ही काम करने को कहा हो।मेरी नींद अब पूरी तरह गायब हो चुकी थी।
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