18/04/2013 को नैशनल दुनिया में ! 19/04/2013 को कल्पतरु में ! |
भारतीय राजनीति में
टोपी का अपना खास महत्व है।यह दो तरह से काम करती है।टोपी लगाने वाला प्रत्यक्षतः
स्वयं टोपी धारण करता है पर दरअसल वह औरों को ही टोपी लगाता है।टोपी की यूएसपी यही
है कि इसे पहनता कोई और है,महसूसता कोई और।टोपी लगाने वाले हमेशा आनंदित रहते
हैं,जबकि जिनको टोपी लगती है ,वे इसका असर पाँच साल के पहले तक नहीं महसूस कर पाते।टोपी-महिमा
से प्रभावित होकर एक दल ने तो आम आदमी को आधिकारिक रूप से टोपी लगाने की सोची है।बात
टोपी तक रहती तो गनीमत थी,अब इसका नया संस्करण टीके के साथ आ गया है।आने वाला समय
देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होने वाला है।आज़ादी के समय से लेकर अब तक देश
में टोपी की कई किस्में लगातार सक्रिय रही हैं।इसी से उत्साहित होकर अब टीका लगाने
का नया नुस्खा भी ईजाद किया गया है।
एक नेता ने उद्गार
व्यक्त किया है कि टोपी तो लगाना ही चाहिए पर समय की माँग को देखते हुए टीका लगाने
के लिए भी तैयार होना पड़ेगा ।यानी आम आदमी को टोपी पहनाने के लिए यदि ज़रूरी हुआ तो
टीके से परहेज नहीं है।इसका मतलब यह है कि सत्ता का टीका लगाने का अधिकारी वही
होगा,जो बहुरंगी और सामयिक टोपी पहने हो। इससे आम आदमी को सटीक टोपी लगने की
प्रत्याशा अचानक बढ़ जाती है।टीका भी उसी को लगाया जाता है जो या तो नेक काम के लिए
प्रस्थान कर रहा हो या उसने कोई उपलब्धि अर्जित की हो।अब टोपी लगाने से बेहतर नेक
काम दूसरा तो होगा नहीं इसलिए टीका लगाने की सार्थकता इसी से सिद्ध हो जाती है।चुनावी-जंग
में विजेता बनने के लिए यदि टीका बाधक बनता है तो उसे पहले या बाद में अपनी
सहूलियत के आधार पर लगाया जा सकता है। इस तरह ‘दुहूँ हाथ मुद-मोदक मोरे’ वाली
स्थिति होती है ।
रही बात आम आदमी
की,सो उसे जब अब तक टोपी से कोई शिकायत नहीं है तो टीका भी स्वीकार्य हो जायेगा।आखिर
टोपी पहनना और टीका लगाना उसके अपने हाथ में तो है नहीं ।उसे तो बस इस सबके बीच
अपने को टिकाये और बचाए रखना है।अब तक टोपी उसे अपनी छत्रछाया से निहाल करती रही
है ,संरक्षित किए हुए है ,तो टीका भी टिकाये रखेगा।वैसे भी हल्दी और चूना मिलाकर
टीका बनता है,बस टीका लगाने वाले को थोड़ा एहतियात बरतना होगा कि चूने की मात्रा कम
हो ताकि उसका साइड-इफेक्ट न हो।इस तरह वह टीका लगाकर आम आदमी को सही चूना लगा सकता
है।आम आदमी बड़ा आशावादी होता है।उसे जिस तरह टोपी लगने की लत लग चुकी है,जल्द ही
टीके को भी वह अपना लेगा।उसके लिए भ्रष्टाचार,मंहगाई आदि से निजात पाने का टीका
खोजना किसी के एजेंडे में नहीं है।बस यही बात उसे पता नहीं है और लगनी भी नहीं
चाहिए।ऐसा होने पर उसे अपने ऊपर से ही भरोसा खत्म हो जायेगा।हमारे राजनेता भी इस
भरम को बने रहने देना चाहते हैं।टोपी के साथ टीका लगाना नेताओं से ज़्यादा अब आम
आदमी की ज़रूरत है।इसलिए नए माहौल में टोपी और टीका पर कोई टोकाटाकी स्वीकार्य नहीं
होगी।अब दोनों के ज़रिये सही ढंग से चूना लग सकेगा।
जनवाणी में १७/०४/२०१३ को प्रकाशित
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