बुधवार, 17 अप्रैल 2013

हम बिलकुल बेकसूर हैं,साब !



 
23/04/2013 को कल्पतरु में
'जनसंदेश टाइम्स' में १७/०४/२०१३ को प्रकाशित

वो तो एकदम बेकसूर निकले। यह बात तब पता चली जब उन सभी ने यह ऐलान कर दिया । दरअसल हम सब अभी तक यही समझते रहे कि राजधानी में हुए गैंगरेप में उन्हीं का हाथ है। यह बात हमें भुक्तभोगियों के बयान ,टीवी चैनलों,अख़बारों की रिपोर्टिंग और पुलिस की सतर्क कार्रवाई के ज़रिये पता चली थी। इतने दिनों की थुक्का-फजीहत के बाद उन बेचारों का बयान अब सबके सामने आया है। यह नौबत आज भी न आती ,अगर उन्हें एक परोपकारी वकील साहब न मिलते। सुनते हैं कि उन्हीं की ज़बरदस्त हौसला-अफज़ाई के बाद वो बयान देने लायक हुए हैं,नहीं तो उन बेकसूरों में से एक ने तो कारागार में ही अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली थी। वकील साहब के बार-बार उसे निर्दोष बताने के बाद भी उसे उनकी वक़ालत पर शक था । अगर आज वह जिंदा होता तो,वह भी बेकसूरों की सूची में शामिल होता।

इन बेचारों के बारे में यह महत्वपूर्ण जानकारी हमें तब मिली,जब पेशी के वक़्त जाते समय थोड़ी देर के लिए अचानक उनसे मुलाक़ात हो गई । जिन लोगों पर इस कांड में शामिल होने का आरोप लगा था  ,उसमें एक तो बिलकुल नाबालिग है। उतनी उम्र वाले तक को तो बलात्कार का मतलब ही नहीं पता होता ! यही सोचकर कुछ लोगों ने उसे अपराधी मानने से साफ़ इंकार कर दिया । दूसरे ने फांसी लगाकर यह साबित करने की कोशिश की कि उसे गलत फंसाया जा रहा था। बाकी बचे हुए चार लोगों ने अपने बचाव में बिलकुल नई सच्चाई बताई । उनमें से एक ने कहा है कि वह उस बस में ही नहीं था,जिसमें यह घटना हुई थी। यहाँ तक कि उसने बस में कभी सफ़र ही नहीं किया है ,यह बात उसे अपने वकील साहब के माध्यम से मालूम हुई है।

दूसरे आरोपी ने खुलासा किया ,’साब ! हम तो उस दिन दिल्ली में ही नहीं थे। हमारे गाँव में मनकापुर की नौटंकी का प्रोग्राम था और ऐसे में हम और कहीं क्यूँ जाते ? नौटंकी देखते हुए ही पुलिस हमें धर लाई थी । उस वक्त हमारे दिमाग में ससुरी नौटंकी चढ़ी हुई थी,सो हम कुछ समझ न पाए। अब जाकर वकील साहब ने यह रहस्योद्घाटन किया है कि हमारे खिलाफ यह साजिश है। ’तीसरे आरोपी ने मुँह बनाते हुए जवाब दिया,’साहब ! हमें तो नशे की लत ने मार दिया। उस दिन रोज़ की तरह चौपाल में हम गाँजे की पिनक में लुढके पड़े थे। हमारे कई साथी वहाँ मस्त और बेसुध थे। पता नहीं,कब पुलिसवाले आए और हमको उठा लिया। वह तो भला हो वकील बाबू का,जो उस रात वहीँ से गुजर रहे थे जब हम चिलम फूँक रहे थे। अब उनकी ही गवाही से हम बेकसूर साबित होंगे। ’

बचे हुए चौथे बेक़सूर ने साफ़-साफ़ बताया,’साब ! हम तो पिकनिक मनाने के लिए अंडमान-निकोबार के टूर पर थे। अगले दिन होटल के कमरे में लगे टीवी में हमें पकड़े जाने की खबर मिली। इस बात से हम बेहद डर गए थे और अपने आप वहीँ की जेल में बंद होने जा रहे थे,पर हमारे वकील साहब ने फ़ोन करके हमें बुला लिया कि जेल में हम सेफ रहेंगे। अचानक एक साथी के जेल में ही निपट जाने के बाद हम सहम गए थे,पर वकील साहब ने अपनी पिछली कई उपलब्धियाँ गिनाई,जिससे हमें इस देश के कानून पर भरोसा हो गया है। ’

इस तरह का वाकया बताता है कि हम बहुत ही भावुक लोग हैं जो किसी भी आन्दोलन या खबर से बहुत जल्द प्रभावित हो जाते हैं। ऐसे में हमेशा बेकसूर ही मारे जाते हैं।


'हरिभूमि' में १२/०६/२०१३ को प्रकाशित
 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

साहित्य-महोत्सव और नया वाला विमर्श

पिछले दिनों शहर में हो रहे एक ‘ साहित्य - महोत्सव ’ के पास से गुजरना हुआ।इस दौरान एक बड़े - से पोस्टर पर मेरी नज़र ठिठक ...