बुधवार, 24 अप्रैल 2013

वो ईमानदारी सीखकर आएँगे !


24/04/2013 को जनसंदेश में !

25/04/2013 को नैशनल दुनिया में ! 
 


बचपन से हम सुनते आए हैं कि ईमानदारी व्यक्ति के संस्कारों में होती है।यह ऐसा जीन होता  है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने-आप आगे बढ़ता है।इसलिए पुराने लोग परिवार के संस्कार से व्यक्ति की पहचान आसानी से कर लेते थे।हम अपनी पढ़ाई के दौरान भी इससे इतर नहीं जान पाये थे ।अब जब से सुना है कि विदेश में ईमानदारी सिखाने के प्रशिक्षण केंद्र हैं,लगता है कि हमारी सारी पढ़ाई अकारथ हो गई।हाल ही में मध्य प्रदेश के लोकायुक्त ने शासन को एक प्रस्ताव भेजा है जिसमें अधिकारियों को ईमानदारी सीखने के लिए विदेश भेजने की बात कही गई है।यह जानकर लगा कि वास्तव में हम कितनी पिछड़ी सोच के साथ जी रहे थे।

समय बहुत तेजी से बदल रहा है।ईमानदार अधिकारियों का नए समाज में जीना मुश्किल हो रहा है।कुछ समय पहले तक उनकी रोटी-पानी ठीक-ठाक चल रही थी पर अब आए दिन पड़ते छापों ने उनकी बड़ी अवमानना की है।बेचारे कितने श्रम से दिन-रात लगाकर आईएएस,पीसीएस बनते हैं,अपनी नींद खराब करते हैं और जब मजे से सपने पूरा करने के दिन आते हैं तो भ्रष्टाचार-विरोधी सिरफिरे फ़िर उनकी नींद खराब कर देते हैं।ऐसे माहौल में हर अफसर शक की निगाह से देखा जाता है।इसलिए अफसरों का पाक-साफ़ दिखना ज़रूरी है।भ्रष्ट नेता तो चुनाव में जीतकर ईमानदारी का प्रमाणपत्र पा लेता है पर बेचारे अफ़सर कहाँ जाएँ ? सो लोकायुक्त ने ऐसे अफसरों के लिए राहत योजना लाकर प्रशंसनीय काम किया है।

अब अफसर यदि विदेश से ईमानदारी सीखकर आएगा तो ज़रूर कुछ खास बात होगी।अव्वल तो उसके पास ईमानदारी का अंतर्राष्ट्रीय बिल्ला होगा जिस की वैधता पर कोई सवालिया निशान नहीं लगा सकता ।ईमानदारी या भ्रष्टाचार के सूचकांक आदि देखने का काम विदेशी एजेंसियां ही करती हैं,सो ऐसे प्रमाण-पत्र धारक शत-प्रतिशत ईमानदार होंगे।अपने देश में आकर वे बिलकुल निर्भय होकर पुश्तैनी काम करेंगे जबकि दूसरे अफसर ईमानदारी से काम करते हुए भी डरेंगे ।विदेश से ईमानदारी सीखकर आए अफसरों पर किसी ने यदि उँगली उठाई तो वे झट से अपना प्रमाण पत्र दिखा देंगे ।इसलिए अब विदेश जाने में भी मारामारी रहेगी।ऐसे में कुछ ले-देकर हमारे अफसर ईमानदारी  सीखकर आते हैं तो बुरा क्या है ?

यदि हमारे अफसर विदेश में यह सीखने जाते हैं कि ईमानदारी कैसे की जाय या बरक़रार रखी जाय तो विदेशी भी उनसे सीखेंगे या यूँ कहिये कि विदेशी ही सीख जायेंगे।हमें अपने अफसरों की खानदानी प्रतिभा पर पूरा भरोसा है और वहाँ वे ईमानदार दिखने के अपने प्रयोग साझा कर सकते हैं।जो व्यक्ति उन्हें ईमानदारी का पाठ पढायेगा उसके घर-परिवार की ये ऐसी सेवा कर देंगे कि वही इनका मुरीद होकर उच्च कोटि का प्रमाण पत्र दे देगा।ये अफसर भ्रष्टाचार को ईमानदारी से करने के गुर बताकर विदेशों में भी अपना झंडा गाड़ देंगे।

इसलिए हम तो यह चाहेंगे कि ऐसे क्रान्तिकारी प्रस्ताव को सरकार की तुरंत स्वीकृति मिलनी चाहिए।सरकार पर दबाव बनाने के लिए अगर अफसरों को कुछ दिन ईमानदारी से काम करना पड़े तो भी कोई हर्ज़ नहीं होना चाहिए।अफसरों के विदेश जाकर ईमानदारी सीखने के पीछे कोई गलत मंशा नहीं है।आखिरकार उन्हें जब कोई चीज़ संस्कार में नहीं मिली है तो उसे उधार लेने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।वे बाहर से ईमानदारी सीखकर आयें और निडर होकर अपना स्वाभाविक काम करें।सरकार को भी चाहिए कि ऐसे अफसरों को छापों से दूर रखे क्योंकि इससे विदेशी-प्रतिष्ठा पर आँच आएगी।इस तरह हम ईमानदार देशों की सूची में पहले पायदान पर पहुँच सकते हैं।

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