बुधवार, 15 मई 2013

इस तोते को बचाना है !


कल्पतरु में १६/०५/२०१३ व जनसंदेश में १५/५/२०१३ को
 
 
 
तोते की जान सांसत में है।उसे सरेआम अपने मालिक की वफ़ादारी करते पकड़  लिया गया है।बचपन में नानी की कहानियों में सुनते थे कि फलां राजा,रानी या राक्षस की जान तोते में होती थी।तब यह जानकर बड़ा आश्चर्य होता था कि आदमी से अधिक तोता महफूज़ होता था। यह कौतूहल  अब और बढ़ गया है जब से मालूम हुआ है कि पूरी सरकार की जान तोते में बसी हुई है।यानी तोता आज भी आदमी से कई गुना ताकतवर है।आखिरकार सरकार भी तो आदमियों से मिलकर ही बनती है।तोता इतना ताकतवर कैसे हो गया कि एक मुल्क की जान उसमें अटक गयी है ? यह सब हुआ कैसे ?
हम पंचतंत्र की कहानियों से सीख लेते आए हैं,जिनमें जंगल के पशु-पक्षी मुख्य पात्र होते थे।उनको लेकर ही नीति की कहानियाँ गढ़ी जाती थीं ।उनमें जंगल के पशु-पक्षी एक निश्चित रूपक बन गए थे पर उस समय के जंगलराज में भी शेर के खाने के कुछ नियम थे।समय बदला और जंगलराज वास्तविकता में तब्दील हो गया।शेर के कई मुँह और हाथ हो गए,साथ ही अन्य जानवरों पर भी उसका नियंत्रण नहीं रहा ।जिसको जहाँ मिलता है ,वह वहीँ नोच लेता है । शुरुआत में तोता एक अहिंसक प्राणी था,पर अब उसके माध्यम से कई शिकार कर लिए जाते हैं।आधुनिक तंत्र में सरकार के बने और बचे रहने के बीच तोता मुख्य कड़ी बन गया है।
इस बात का इलहाम आदमी को अभी भी न होता यदि हमारे न्याय-तंत्र ने आइना न दिखाया होता।आज का तोता वह पुराना मिठ्ठू भर नहीं रहा,जो केवल पिंजरे में बंद होकर ‘राम-राम’ का जाप करता है ।यह केवल आखेट ही नहीं करता,वरन शिकार के नए नियम भी गढ़ता है।इसे अपने आका की हिफाज़त के लिए कभी स्वयं को पिंजरे में बंद करना पड़ता है और कभी दुश्मनों को अपने पिंजरे में डालना भी।इस प्रक्रिया में तोता अपने दिल की नहीं दिमाग की सुनता है और विरोधियों को आम-अमरुद की तरह कुतर देता है। हम भी कुतरे हुए फल खाने के आदी हो चुके हैं।ऐसे चखे हुए ही फल हमें मीठे लगते हैं।इस तरह तोते और आदमी दोनों का पेट पल रहा है।
अब जब तोते को पहली बार सार्वजनिक रूप से अपने मालिक की वफ़ादारी में लिप्त पाया गया है तो उसने हलफ़ उठाकर दुबारा ऐसा न करने की बात कही है।पर क्या ऐसा मुमकिन है ? इस बार भी वह न पकड़ा जाता मगर उसने कुतरना छोड़कर आका के मुँह पर लगी कालिख पोंछने में अपनी जान लगा दी थी ।अब इसमें तोता क्या करे ? वह वैसा अकेला नहीं है जैसा पिंजरे में बंद रहने वाला मिठ्ठू होता है।इस तोते का पिंजरे के बाहर भी संसार है।उसे इस कठिन समय में पतली रस्सी पर चलने जैसा पुराना करतब भी निभाना है।इसलिए वह अपने आका के लिए जी-जान से समर्पित है और उसकी अपनी कोई मैना भी नहीं है जो उसे ऐसे आका से दूर ले जा सके।
फ़िलहाल तोता पिंजरे में है और सुरक्षित है।उसके लिए मालिक ने सोने की कटोरी में दूध-भात दिया हुआ है क्योंकि तोता तगड़ा और मज़बूत रहेगा तभी तो मालिक की जान और हुकूमत सलामत रह पायेगी। तोते में जान नहीं है पर पूरे तंत्र की जान उसमें बसी हुई है । आओ, हम इस तोते के दीर्घ-जीवन की कामना करें।
 
पत्रिका (इंदौर,भोपाल) में २१/०५/२०१३ को प्रकाशित

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