मंगलवार, 7 मई 2013

राहत राशि का बरसना !


७/५/२०१३ को नई दुनिया में
 


  

उधर वो रुखसत हुए और इधर राहत राशि अपने ठिकानों से निकल पड़ी।जो मुट्ठी अभी तक बंद थी, अचानक खुल जाती है ।राहत राशि चारों तरफ से बरसने लगती है ।कई बार तो यह गरजकर ही रह जाती है पर इसके लिए टाइमिंग का खास ध्यान रखा जाता है।जहाँ केवल गरजने से ही काम चल जाता है,वहाँ राहत राशि बरसती ही नहीं।यह बरसात भी गुजर जाने वाले के वज़न के मुताबिक होती है।इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह जाने वाले का इंतज़ार करती है।इस बीच अगर जाने वाले के परिवारीजन ही पहले जाने को उद्यत हुए तो चले जांय,राहत राशि को कोई फर्क नहीं पड़ता।वह अपने मन-मुताबिक समय पर ही आती है।

राहत राशि अचानक कई रूपों में प्रकट होती है।नकद धनराशि से लेकर अनुकम्पा नौकरी,पेट्रोल पम्प और भूखंड मिलने तथा किसी प्रभावशाली व्यक्तित्व के भाई बनने तक के विकल्प सामने आते हैं।ये सभी एक साथ मिलने को आतुर हो उठते हैं।सब में होड़ मचती है कि वही जाने वाले के परिवार को असली राहत दे सकता है।भले ही बाद में इनमें से किसी के दर्शन न हों,पर उस कठिन समय में कैमरों के फ्लैश चमककर अपना दायित्व बखूबी निभा देते हैं।जब जाने वाला जाता है तो मीडिया के साथ पूरा देश रोता है पर जब चिता की आग ठंडी पड़ जाती है,राहत भी गायब हो जाती है।फ़िलहाल ,राहत राशि गरज-गरज कर बरस रही है।इसके बरसने की क्षमता पर ही चिता की आग का ठंडा होना निर्भर करता है।

इस राहत राशि की बरसात यूँ ही नहीं होती और न ही यह अलकूता बरसती है।जिसके नाम पर यह मिलती है,वह ऐसा आम आदमी होता है जो दुर्घटनावश खास बन जाता है।यूँ ही हर ऐरे-गैरे को तो झूठी घोषणा भी नसीब नहीं होती।जब तक राहत पाने वाले का कैमरे से संपर्क नहीं होता,राहत राशि भी उससे छिटकी-छिटकी रहती है।इसके उलट जो सदाबहार खास हैं,उनको ऐसी राहत पाने के लिए न मरना पड़ता है और न वे कैमरे का मुँह ताकते हैं।खास लोग अपने जीते जी राहत राशि का जुगाड़ कर लेते हैं।इससे भी राहत न मिले तो वे अपने पुत्र,दामाद,भाई ,भतीजे और भांजे सहित मैदान में कूद पड़ते हैं।राहत राशि अगर गलती से आम जन को मिल भी जाती है तो भी इससे बड़ी राहत खास के हिस्से में ही आती है।वही आखिरी राहत महसूस करता है।

राहत राशि के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए इसे पाने के बजाय कुछ लोग हथियाने में जुट जाते हैं ।वे टाइमिंग को देखते हुए जाने वाले के शोक में डूबने के बजाय बकायदा मोल-भाव पर उतर आते हैं।इसमें मीडिया पूर्ण रूप से सहयोग करता है।ऐसी राहत राशि के वितरण और बारिश का सीधा प्रसारण देखकर कई संभावित जाने वालों के परिवारीजन उसांस लेकर रह जाते हैं,पर सबके ऐसे नसीब कहाँ ?जिनको राहत की उद्घोषणा होती है,वे पहले तो आभार प्रकट करते हैं पर जैसे-जैसे समय बीतता है,राहत से भेंट न होने पर कोसने लगते हैं।घोषणा करने वाले सबसे मजे में रहते हैं।ऐसा करके वे सामयिक परेशानियों से तो बचते ही हैं,असली राहत भी पाते हैं।ऐसी दुर्लभ राहत के लिए हम भी उतावले हो रहे हैं,पर इसके लिए कैमरे और किस्मत का कनेक्शन कहाँ से लाऊँ ?


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