बुधवार, 22 मई 2013

भ्रष्टाचार का उजलापन !

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22/05/2013 को नैशनल दुनिया में !

23/05/2013 को जनसंदेश में !

ईमानदारी आज निपट अकेली है।वह सबसे मुँह छिपाती फ़िर रही है पर उसे सुकून का एक कोना भी नसीब नहीं हो रहा है।वहीँ उसका बड़ा भाई भ्रष्टाचार दिन-पर-दिन निखरता जा रहा है।उस पर दाग लगने ही वाला होता है कि जनता चुनावी-साबुन से उसे धो-पोंछकर साफ़ कर देती है।हर बार भ्रष्टाचार पहले से अधिक मुखर और सुघड़ होकर प्रकट हो जाता है।इधर ईमानदारी अपना ठिकाना ढूँढने में लगी रहती है और उधर भ्रष्टाचार बोरियों रकम अपने ठिकाने लगा देता है।ईमानदारी समाज में मुँह दिखने लायक नहीं होती।अगर कभी उसने अपना चेहरा दिखाने की जुर्रत की तो उसका शीलहरण होने में देर नहीं लगती।

भ्रष्टाचार पूरे दम-खम से ढोल बजा रहा है।जो लोग उस पर उँगली उठा रहे थे,उसकी भारी चुनावी-जीत से अपने को जला हुआ महसूस कर रहे हैं।भ्रष्टाचार के पास अपनी काया-पलट करने का अचूक अस्त्र चुनाव होता है।ऐसे में वह अपनी पूरी ताकत झोंक देता है और चुनावी-जनता द्वारा बिलकुल पाक-साफ़ होकर निकलता है।भ्रष्टाचार अपनी इस लड़ाई में ईमानदारी को पानी पिला देता है।वह ऐसा उसके जीवित रखने के लिए करता है।जीतने के बाद इसी की चादर ओढ़कर वह आने वाला समय आराम से काट लेता है।

ईमानदारी की तरह नैतिकता का भी बुरा हाल है।भ्रष्टाचार जिस कुर्सी पर बैठता है,वह नैतिकता का पाठ पढ़ने लगती है।जब भी कोई सवाल किया जाता है,उसकी जवाबदेह नैतिकता ही होती है।भ्रष्टाचार यहाँ भी अपने को बचा ले जाता है।बहुत ज़्यादा शोर-शराबा हुआ तो नैतिकता के नाम पर कागज का एक रुक्का कैमरों के सामने फेंक दिया जाता है।इस तरह नैतिकता बे-पर्द होकर कुर्सी-आसीन भ्रष्टाचार की रक्षा करती है।अगर किसी बड़ी घटना में नैतिकता मारी जाती है तो उसके लिए औपचारिक रूप से अख़बारों और टेलीविजन पर शोकगीत गाया और बजाया जाता है।इस तरह वह शहीद होकर भी बड़े भाई का मान रखती है।

कुछ समय पहले यह सुनने में आया था कि कुछ लोग भ्रष्टाचार को साफ़ करने के लिए लोकपाल की माँग कर रहे थे,यहाँ तक कि इसके लिए एक महात्मा अपनी जान देने पर उतारू थे।पर अब यह साबित हो चुका है कि ऐसे लोग केवल जज्बाती थे।यह काम तो पहले से ही हो रहा है।आज भ्रष्टाचार जितना उजला और चमकदार दिख रहा है,उतना कभी नहीं था।हाँ,लोकपाल के द्वारा उसकी सफ़ाई होने से यह तो होगा कि लोग जंतर-मंतर पर आने से बच जायेंगे ,पर फ़िर करेंगे भी क्या ? वैसे भी कुछ अंतराल के बाद होने वाले चुनाव के द्वारा जनता स्वयं ही सफ़ाई का प्रमाणपत्र दे देती है। यही सोचकर अभी इस दिशा में काम रुका हुआ है।उम्मीद है कि आने वाले समय में लोकपाल का बैक-अप पाकर भ्रष्टाचार को जोर से हंसने का मौका मिल सकेगा।इसमें उसकी भी ताकत समाहित हो जायेगी,फ़िर कोई क्या कहकर चिल्लाएगा ?

फ़िलहाल ईमानदारी और नैतिकता के पाठ कागज के पन्नों में सिमट गए हैं।भ्रष्टाचार का अंतिम लक्ष्य है कि कुर्सी में जमें रहने के लिए इन दोनों को वहाँ से भी बाहर किया जाए,ताकि उसे कागज का रुक्का लिखने की जो ज़रूरत अभी पड़ती है,वह भी न पड़े।

 

1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

सच जहाँ देखो बुरा हाल है इमानदारी का ...
बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ...

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