बुधवार, 8 मई 2013

कोयला,सीबीआई और सरकार !

८/५/२०१३ को जनसंदेश में !





देश की सर्वोच्च अदालत सीबीआई से नाराज़ है। उसका कुसूर सिर्फ़ इतना है कि उसने कोयले वाली फाइल सरकार को दिखा दी बस। अदालत की शिकायत है कि सीबीआई को सीधे उसे रिपोर्ट करनी थी तो उसने बीच में यह गुल-गपाड़ा क्यों किया ?सीबीआई ने कोयला मामले के बहाने अपनी स्थिति बिलकुल स्पष्ट कर दी है। उसने कहा है कि वह सरकार का ही अंग है,इसलिए जिसकी देह से जुड़ी है,उसी के प्रति जवाबदेह भी है। जिस तरह कोई अंग अपने शरीर की रक्षा करता है,उसी तरह वह कर रही है। आखिर वह एक सुरक्षा-जाँच एजेंसी है और उसे सरकार की रक्षा हर हाल में करनी है। अगर इसमें कुछ गलत हुआ है तो उसे माफ़ कर दिया जाय।

सीबीआई के जवाब से अदालत संतुष्ट हुई हो या नहीं,पर देश को उससे कोई शिकायत नहीं है। अगर वह देश का अंग होती तो ज़रूर कुछ खटकता,पर जब उसने ईमानदारी से यह क़ुबूल कर लिया है कि वह सरकार का अंग है तो फ़िर देश के प्रति उसकी जिम्मेदारी बनती ही नहीं। रही बात सरकार की,तो वह निश्चिन्त है। उसके ऊपर अदालत के कितने भी हथौड़े पड़ें,उसकी मजबूती कायम है। सरकार के अंग जब तक मजबूत हैं,उसे कोई डर नहीं है। यह मजबूती उसे दो तरह से मिली है। उसने शुरुआत से ही अपनी सेहत का खास ख्याल रखा है। इसके लिए टूजी,कोयला और न जाने कितने व्यंजन उसके आहार बने। इसके साथ उसका अंग( सीबीआई) उसके दाहिने हाथ की तरह सहयोगी दलों को साधे हुए है। इस तरह सरकार के पास ऐसा इंतजाम है कि नक्कारखाने में तूती की आवाजें उसे कतई विचलित नहीं कर पातीं।

सीबीआई ने कोयला मामले में ज़्यादा कुछ किया भी नहीं है। जिस तरह देश की सुरक्षा के लिए खतरा बना आम आदमी मेटल-डिटेक्टर से गुजरता है उसी प्रकार सरकार के लिए खतरा बन सकने वाली हर फाइल को सरकार के मेटल डिटेक्टर से गुजारा है बस। इसमें न समझ आने वाली बात ही नहीं है। सीबीआई केवल अपने नियोक्ता का खयाल रख रही है। कोयले वाली फाइल में वैसे कुछ खास था भी नहीं। कानून मंत्रालय के पास उस फाइल को भेजना इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि उसमें ग्रामर और हिज्जे संबंधी कई गड़बड़ियाँ थीं और कहीं गलती से कोयला की जगह कोयल हो जाता तो फ़िर कौन जवाबदेह होता ?

इस मामले में शुरू से ही सरकार साफ़-साफ़ बोल रही है कि जो दोषी हैं उनके खिलाफ मामला चल रहा है। इसमें सरकार का कोई अंग दोषी नहीं है। प्रधानमंत्री ने कानून मंत्री को और कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री को इस मामले में दखल देने के आरोप से से साफ़ बरी कर दिया है। सरकार के पास ऐसे छोटे-मोटे मामले देखने का समय भी नहीं है। वह कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रही है। देश की आंतरिक या वाह्य सुरक्षा पर वह तभी ध्यान दे पाएगी जब वह स्वयं सुरक्षित होगी। इस लिहाज़ से हमें नहीं लगता कि सरकार या सीबीआई इसमें दोषी है। रही बात कोयले की,सो उसकी दलाली में मुँह काला करने के सबूत जब मिल जायेंगे,न्यायालय को अवगत करा दिया जायेगा। फ़िलहाल सीबीआई ने अपने को सरकार का अंग बताकर अपना दामन साफ़ कर लिया है और रही बात सरकार की,तो कोयले की फाइल उसके पास जाने के बावजूद उसकी काली-कामरी में कोई दाग नजर नहीं आ रहा है।     

1 टिप्पणी:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक आलेख...

धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...