जनसंदेश और हरिभूमि में ०६/०६/२०१३ को |
०७/०६/२०१३ को नेशनल दुनिया में ! |
‘अजी सुनते हो ? अब
टीवी के सामने से उठोगे भी या कहो तो यहीं पर बिस्तर लगवा दूँ ?मैं देख रही हूँ कि
पिछले आठ दिनों से तुम एक इस्तीफ़े के इंतज़ार में टकटकी लगाये बैठे हो।आखिर देख
लिया ना ! खेल अपनी रफ़्तार से चल रहा है और देश भी।एक तुम्हीं सेंटिया गए थे।नतीजा
क्या निकला ? तुम्हारे इस्तीफ़े के चक्कर में ‘नाच इंडिया नाच’ ,‘मास्टर-शेफ’ और
‘सास,बहू,ननद’ सभी छूट गए।अब मैं समझी कि ‘ससुर-दामाद’ का कार्यक्रम इन सब पर कैसे
भारी पड़ा।इसलिए तुम भी समझ जाओ और टीवी के आगे से हट जाओ।‘
‘भागवान ! तुम भी ना...!
पहले एक कप चाय पिला दो,सर बिलकुल भारी हो रहा है।रही बात टीवी के आगे से हटने की,तो
अभी भी मुझे न्यूज़ चैनल वालों और उस पर बहसियाने वालों पर पूरा भरोसा है।कभी भी
ब्रेकिंग-न्यूज़ आ सकती है।आखिर इतने दिनों से इस्तीफ़े का दबाव जो है । कभी तो वह काम करेगा।‘
‘लीजिए,अपनी चाय
पीजिए और पहले अपना दबाव दूर करिये।खेल आप देखते हो पर समझती मैं हूँ।ये जो दबाव
वगैरह हैं ना,कमजोर इच्छाशक्ति वाले को डिगाते हैं। वे खेल के असली खिलाड़ी हैं।अपनी
आत्मा की मजबूती को वो पहचान चुके हैं।वह सीमेंट से भी ज़्यादा सख्तजान है।इसलिए अब
वे कोई नौसिखिए भर नहीं रह गए हैं,घाघ बन गए हैं घाघ।अब घाघत्व प्राप्त व्यक्ति की
आत्मा गीता के अनुसार अविचलित,अजर और अमर हो जाती है।जिस तरह वह कभी नष्ट नहीं
होती,केवल कपड़े बदलती है,इसी तरह इसने भी कुर्सी बदल ली है।‘
‘क्या बात है ? आज
तो बड़ी दार्शनिक बातें कर रही हो।खेल के बारे में इत्ता कुछ तुम्हें पता है,हम तो
जानते ही नहीं थे।अच्छा और क्या जानती हो,जरा तफसील से बताओ ना ?’
‘अजी,हमें तो और भी
बहुत कुछ पता है।तभी मैं कहती थी कि आप बैठक के नतीजे का इंतज़ार मत करो,वह मुझे पहले
से ही मालूम था।खेल की तरह यह बैठक भी फिक्स थी।खेल के घाघ ने राजनीति के घाघों से
मिलकर इसकी फिक्सिंग कर ली थी।इस पर भी सटोरियों ने जमकर माल काटा और तुम खेल में
लग रहे सट्टे से हलकान हो रहे हो ।‘
‘अब यह क्या कह रही
हो ? बैठक पर सट्टा ? वह कैसे ?’
‘अजी ! समाचार तुम सुनते
हो पर अंदर की खबर नहीं निकाल पाते क्योंकि तुम्हारे ऊपर तो इस्तीफ़े की ही धुन
सवार है ।बैठक से पहले हर चैनल यही खबर दे रहा था कि उसके सूत्रों ने बताया है कि
आज इस्तीफ़ा हो जाएगा।देखने-सुनने वालों ने भी यही समझा।हकीकत तो यह थी कि वे सूत्र
नहीं सटोरिये थे,जो इस तरह की खबर देकर इस पर भी सट्टा लगवा रहे थे।उन्हीं को पता
था कि इस्तीफ़ा नहीं होने वाला।अब जिन्होंने इस्तीफ़ा होने पर दाँव लगाया था,वे
चित्त हो गए।इसे कहते हैं असली घाघ ! तुम खेल में फिक्सिंग को लेकर रो रहे
हो,उन्होंने बैठक और नतीजे को ही फिक्स कर डाला। कल्लो, क्या कल्लोगे ?’
‘फिलहाल,एक कप चाय
और ले आओ।मेरा सिर फटा जा रहा है !’
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