शनिवार, 14 जून 2014

बँधी मुट्ठी लाख की !

देश में इस समय विरोधी दल के नेता की ज़ोरों से तलाश हो रही है।जिनसे थोड़ी बहुत उम्मीद थी,उन्होंने साफ़ कर दिया है कि वे विपक्ष की राजनीति करने नहीं आये हैं।ऐसा करने पर उनको लगेगा कि वे सत्ता से बाहर हैं,जबकि वो ऐसा दिखाना नहीं चाहते।उन्हें आभासी प्रभामंडल के ज़रिये अपनी हनक बनाने का ही अनुभव है।वे सत्ता का दोहन करने वाले परन्तु सीधी जिम्मेदारी से बचने वाली परम्परा के नए वाहक हैं।

उनके विपक्ष का नेता बनने का दावा न करने के कई कारण हैं।कहीं ऐसा न हो कि सत्ताधारी दल के नेता बनने की तरह ही विपक्ष का नेता बनने का स्वप्न भी ध्वस्त हो गया तो ? इस पद के प्रति ललक न होने का महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि विपक्ष का नेता होने के नाते सरकार के हर काम पर पूछे गए सवाल का जवाब भी देना पड़ेगा।इसमें थोड़ी तकनीकी समस्या है कि सलाहकारों की अनुपस्थिति के बिना भी उत्तर देना पड़ सकता है,जो बड़ा कठिन कर्म है।उनके जीवन का मूल-मन्त्र है कि जब तक कुछ करने या कहने से बच सकते हैं,बचना चाहिए।

नई सरकार बनाने वालों ने तो अपना नेता बहुत पहले ही घोषित कर दिया था और इसके साथ ही टीवी चैनलों ने ‘कौन बनेगा प्रधानमंत्री’ की ज़ोरदार और लम्बी मुहिम चलाई थी।नई सरकार के आने की उम्मीद सबको थी पर विरोधियों को इतना भी अंदेशा नहीं था कि देश में विपक्षी दल के नेता का टोटा पड़ जाएगा।सत्ताधारी दल का नेता खोजने में तो कोई अड़चन नहीं आई,पर विरोधी दल के नेता के लिए न तो कोई दल घोषणा कर रहा है और न ही चैनल वाले वैसा कोई अभियान चला रहे हैं।ऐसे में लगता है कि देश में विरोधी दल के नेता की कोई इज्ज़त ही नहीं है।सत्ताधारी दल का नेता बनने का बजट करोड़ों में था पर विरोधी दल के नेता बनने के लिए टके भर का नहीं।ऐसे लो-प्रोफाइल पद को कौन अपनाना चाहेगा ?

लोकतंत्र के कुछ समर्थकों की जहाँ एक तरफ यह चिंता है कि सत्तापक्ष को विरोधी दल का नेता बनाने के लिए स्वयं पहल करनी चाहिए,वहीँ कुछ यह भी सवाल उठा रहे हैं कि वह विपक्षी नेता कैसा जो सरकार के रहमोकरम पर बने.कुल मिलाकर विपक्ष के नेता का चुनाव लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बन गया है.

उधर स्वयं विपक्ष पूरी तरह से आहत है.युवराज अभी भी कुछ करने नहीं बल्कि देखने के मूड में लगते हैं।सत्ता की खुमारी उतरने में समय लगता है और दूर-दूर तक अभी इसके उतरने के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते।देश के सम्भावित नेता बन पाने के लिए वे सदन में मुठ्ठी भर लोगों का नेता बनकर नहीं रहना चाहते।साथ ही एक इम्तिहान में फेल होकर दूसरे इम्तिहान का खतरा भी नहीं उठा सकते।ऐसा करने का उनका केवल एक उद्देश्य है कि कुछ लोगों में उनके प्रति आगे भी थोड़ा भरम बना रहे।हो सकता है कि उनके किसी सलाहकार ने उनके कान में फूँक मार दी हो कि बँधी मुट्ठी लाख की,खुल गई तो ख़ाक की।

प्रजातंत्र लाइव में 17/06/2014 को प्रकाशित 

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