कई महीनों से लगातार बजने वाले ढोल-मंजीरे अचानक शांत हो गए हैं।’हर
हर महादेव’ की पुड़िया में लपेटकर प्रसाद वितरण करने वाले भक्तगण पता नहीं कहाँ
बिला गए ? नई सरकार देशहित में जनता को पुराने नुस्खे बाँट रही है और उसके समर्थक
इसे क्रान्तिकारी बदलाव बता रहे हैं।
सरकार ने साफ़ कर दिया है कि देश के विकास के लिए खजाने का भरना ज़रूरी
है।चूँकि यह सब जनहित में हो रहा है ,सो इसकी सारी जिम्मेदारी भी जनता की होगी।सपनों
के भारत का निर्माण जनता की कीमत पर ही किया जायेगा क्योंकि सरकार भी तो जनता की
है।जिस जनता ने ‘अच्छे दिनों’ के सुर में सुर मिलाते हुए ‘डांडिया-नृत्य’ किया
था,उसे अब ख़ुशी-ख़ुशी ‘तांडव’ करने में कष्ट क्यों हो रहा है ? ’अबकी बार’ का बुखार
इत्ती जल्दी उतरेगा,मरीज़ को भी नहीं पता चल सका।
जनता वैसे भी स्थिर नहीं रहती,जबकि सरकार को स्थिरता चाहिए।चुनावों से
पहले जनता जहाँ भावुक हो जाती है,वहीँ चुनावों बाद नादान और नासमझ।यदि जनता सरकार
को चुनती है तो सरकार भी उससे चुन-चुन कर बदले लेती है।ख़ास बात है कि वादों और
इरादों में फर्क होता है।वादे चुनाव के पहले काम आते हैं और इरादे चुनाव जीतने के
बाद।यह जनता की मूर्खता है कि वह वादों के पीछे भागती है,उसके पीछे के नेक इरादों
को नहीं देखती।देशहित में वादे तो वादे,पूरी विचारधारा कुर्बान करनी पड़ती है,पर
नादान जनता यह कहाँ समझ पायेगी ?
आज हर तरफ रेलवे के बढ़े हुए किरायों का शोर है।अव्वल तो यह काम पिछली
सरकार ने किया था,ये तो बस लागू कर रहे हैं।विपक्ष को इस सरकार का शुक्रगुजार होना
चाहिए कि उसका एजेंडा ही वह लागू कर रही है।इससे उसे दोतरफा फायदा मिला है।एक तो
सरकार बदलने के बाद अभी भी उसी के आदेश काम कर रहे हैं,दूसरे मृतप्राय हो चुके
विपक्ष को इस कदम से संजीवनी मिल गई है।अभी तक कहने व करने को कुछ नहीं था,पर अब
धरना-प्रदर्शन का रास्ता खुल गया है।जब तक विपक्ष ऐसी हरकतें नहीं करता,तब तक
सरकार को भी अपने होने का यकीन नहीं होता।ऐसे में दोनों काम करते हुए दिखते हैं।
आलोचक कहते हैं कि यह बढ़ोत्तरी ऐतिहासिक है।यह असहनीय इसलिए भी है
क्योंकि यह काम ‘उम्मीदों वाली सरकार’ ने किया है।उनके मुताबिक इस तरह सारी
उम्मीदें ही भारी हो गई हैं।आलोचक कभी भी दूरदर्शी सोच नहीं रखते।सरकार तो रेलगाड़ी
को हवाई जहाज बनाने जा रही है और वे इस पर भी चिल्ल-पों मचाए हुए हैं।वास्तविक रूप
से यदि सरकार के इस कदम का विश्लेषण किया जाय तो वह यात्रियों को भले ही सीटें
मुहैया न करा पाए पर किराये के लिहाज़ से छुक-छुक गाड़ी की हवाई जहाज से बराबरी तो
कर ही सकती है।इसे विश्वस्तरीय बनाने के लिए कुछ तो डाटा चाहिए,सो किरायों की नई
दर देश के सामने हाज़िर कर दी गई है।
विकास यूं ही नहीं होता और न सपने देखने से कुछ होता है।यह बात वे
नहीं समझ सकते जो सत्ता से बाहर हैं।सरकार को जनता की दरकार केवल चुनावों में होती
है इसलिए अब उसका बोलना कतई गलत है।सरकार को काम करने दो,जनता की बात सुनने के लिए
अभी पाँच साल पड़े हैं।
'प्रजातंत्र लाइव' व जनसन्देश टाइम्स में 26/06/2014 को !
1 टिप्पणी:
भारतीय इतिहास में पहली बार यह सरकार बहुमत से आई,जब जनता ने अपना सारा प्यार इन पर न्योछावर कर दिया, तो जनता ने कुच्छ सब्र करना चाहिए। अब मुहओब्त्त का असर भी तो धीरे धीरे होता है। पूरानी सरकार ने ।मह्गाई के नाम जनता पर इतने कोड़े बरसाए - इत्ते कोड़े मारे ,की नई सरकार जब से आई है। बस उपचार में ही लगी है। दवा के कडुवे घूँट पिलाने में व्यस्त हो गई।
आप का मधुरभाषी व्यंग हमें इतना पसंद आया की हम इस द्वारा इन्फेक्टेड हो गए
संतोषजी मुबारक एवम हार्दिक अभिनन्दन।
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