शुक्रवार, 13 जून 2014

फुटबॉल के हम धुरंधर !


फुटबॉल का महाकुम्भ शुरू हो चुका है।जहाँ इसमें संसार की सबसे शक्तिशाली ३२  टीमें एक-दूसरे के खिलाफ गोल पर गोल दागेंगी, वहीँ हमारा देश इस खेल से ही गोल है।फिर भी,हमारे देश में इस खेल को लेकर काफ़ी उत्सुकता दिख रही है।टीवी और अख़बार से यह खेल हमारे घरों में घुस गया है।इस खेल की प्रभुता इतनी है कि इसकी मौजूदगी खेल के मैदान के बजाय पूरे बाज़ार में पसर गई है।हम भले ही संसार को इस खेल के खिलाड़ी न दे पाए हों,पर ऐसा कतई नहीं है कि हमारी धरती ऐसे बहादुरों से खाली है।

यूरोप और लातिन अमेरिकी देशों में सबसे ज्यादा फुटबॉल को लेकर क्रेज़ है और वे अपने खिलाड़ियों के ऊपर लाखों-करोड़ का बजट निछावर करते हैं ।इधर हमारे देश में फुटबॉल और कबड्डी खेलने के चैंपियन हर गली-मुहल्ले में फ़ोकट में मारे-मारे फिरते हैं।मौका पड़ने पर ये प्रतिभाएं बहुत कम लागत में अपना दम-खम दिखा सकती हैं।पार्षद से लेकर विधायक और सांसद बनने की राह में हमारे होनहार जबरदस्त सिर-फुटौवल करते हैं।अगर इन्हें किसी फुटबॉल टीम से खेलने का मौका मिले तो इनके ‘हेडर’ से निकलने वाले गोल दर्शनीय और अद्भुत होंगे।लेकिन अफ़सोस है कि बड़ी टीमों को हमारे देश के मौलिक खिलाड़ियों की क्षमता बारे में कुछ पता नहीं है।

कबड्डी के खेल के हम ऐसे ही चैंपियन नहीं हैं।इसीलिए बाकी देश यह खेल हमसे खेलने से ही  कतराते हैं।हमारे यहाँ संसद और विधानसभाओं में कबड्डी को लगातार प्रोत्साहन दिया जाता है।इसी तरह फुटबॉल के विकास के लिए समय रहते हमें सचेत होना होगा।जब तक इस खेल को राजनीति से प्रेरणा नहीं मिलती,इसका भविष्य अंधकारमय रहेगा।क्रिकेट का उदाहरण हमारे सामने है।फुटबॉल खेलने वाले देश क्रिकेट में इसीलिए शून्य हैं।उन्हें खेल की सफलता का मूल मन्त्र ही नहीं पता।

फुटबॉल के विश्वकप से प्रेरणा लेकर हमें अपने मौलिक खेल को बढ़ावा देना होगा।हम स्वभावतः उठा-पटक पसंद वाले देश हैं।अब कुश्ती को ही लीजिए,इसमें भी हमारी तूती बोलती है।किस दाँव से हमारा विरोधी चित्त होगा ,यह हमें बखूबी पता है।ऐसे लोगों को खेल में कम और राजनीति में ज्यादा मौके मिलते हैं और वे सफल राजनेता बन जाते हैं।खेल खेलना और खेल से खेलना दोनों अलग बातें हैं।कबड्डी,कुश्ती और फुटबॉल के स्वाभाविक गुणों से युक्त हमारी प्रतिभाएं आज हर खेल में लगी हैं।उनको पता है कि सारे खेल मैदान में ही नहीं होते,इसलिए उन्हें पसीना बहाने की ज़रूरत महसूस नहीं होती।

फुटबॉल के खेल में बड़ी संभावनाएं होती हैं।इस खेल में केवल ताकत ही काम नहीं आती।कई बार जहाँ  ताकत फेल हो जाती है,वहाँ हिकमत काम आती है।ऐसे लोग अपनी हारी हुई टीम को जिता भी सकते हैं।

टंगड़ी मारना,सिर-फुटौव्वल करना ,जूता-लात चलाना ये सब आधुनिक हिकमतें हैं।इनसे लैस होकर ही कोई टीम विश्व-विजेता बन सकती है।इन सबके लिए हमारे देश में अलग से ट्रेनिंग नहीं दी जाती।सौभाग्य से इस तरह के खेल के हम उस्ताद हैं क्योंकि ऐसे हुनर हमारे खून में हैं। ऐसे में कोई फुटबॉल खेलने वाले देशों को हमारी प्रतिभा की जानकारी दे तो फिर देखिये,मेसी,रोनाल्डो और नेमार जैसे खिलाड़ी हमारे आगे पानी भरेंगे।



'नई दुनिया' में 13/06/2014 को।

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