और अंग्रेजों ने एक बार फिर से हमारे साथ छल किया है।ऐन आज़ादी के ज़श्न के वक्त
हमें जीत का तोहफा देने के बजाय अंदर तक तोड़ दिया।ठीक 1947 में आज़ादी से ठीक पहले उन्होंने हमारे दो टुकड़े
कर दिए थे,हम उसी से अभी तक उबर नहीं पाए हैं।अबकी बार की चोट उससे भी गहरी है।तब
तो हम उनके गुलाम थे,पर इस वक्त तो अच्छी-खासी रेटिंग में थे।जानबूझकर अंग्रेजों
ने आखिरी समय में गच्चा दे दिया।जिस समय पूरा देश आज़ादी के ज़श्न में डूबा हुआ
था,उन्होंने रंग में भंग कर दिया।हमारे खिलाड़ी भाई अपने विज्ञापनों की कमाई का
पूरी तरह से लुत्फ़ भी नहीं उठा पाए थे कि उनको कोहनी मारकर गिरा दिया गया।अब वे
खाली बटुए और इकलौती गर्लफ्रेंड लिए शॉपिंग मॉल में घूमने को मजबूर हैं।इस तरह से
अंग्रेजों ने खेलप्रेमियों और खिलाड़ियों दोनों से भरपूर बदला लिया है।
भारतीय टीम की हार का विश्लेषण करने पर सनसनीखेज तथ्य सामने आये हैं।भारतीय कप्तान को यह गुमान था कि अँगरेज़ 1947 की तरह इस बार भी उन्हें जीत उपहार में दे डालेंगे।नासपीटों ने मेजबानी का भी थोड़ा-सा लिहाज़ नहीं किया।इसके साथ ही अंग्रेजों ने अपने पूर्वजों का भी अपमान किया है।मैदान छोड़कर भाग जाने की उनकी ऐतिहासिक परम्परा के प्रति हमारे कप्तान आश्वस्त थे,पर उनके पेट में सरेआम छुरा भोंका गया है।दो-चार मैच हारने का गम एक मज़बूत कप्तान तो सहन कर सकता है पर विज्ञापनों का टोटा होने से पेट पर जो आसन्न संकट खड़ा हो गया है,बोर्ड उसकी कितनी भरपाई कर पायेगा ?
भारतीय टीम स्वयं हारने के कारणों पर गंभीरता से विचार करने में जुटी
है।क्रिकेट टीम के कोच का कहना है कि उन्हें अंग्रेजों से ऐसी उम्मीद बिलकुल नहीं
थी।उन्होंने खुद तो शतक और अर्धशतक बनाये,विकेट लूटे,कैच लपके ,स्टम्प बिखेरे पर हमारे
करने के लिए कुछ नहीं छोड़ा।हम मेहमानी के लिहाज़ में ही पड़े रहे।ऐसी विकट परिस्थितियों
में हमारे लड़कों ने जिस बहादुरी और साहस का परिचय दिया है,उससे दो-तीन खिलाड़ी
पद्मश्री के निश्चित दावेदार बन गए हैं ।कोच ने चुनौती दी है कि बिना रन और बिना
विकेट लिए दुनिया की कोई भी टीम नहीं जीत सकती,फिर हमसे यह उम्मीद क्यों ? यह
हमारी हार नहीं बल्कि विपक्षी टीम का असहयोगीपूर्ण रवैया रहा।इस पर सभी खिलाड़ियों
में आम सहमति बन गई है।खबर है कि इंग्लैंड में भारतीय टीम के साथ हुए इस अमानवीय और
शिष्टाचार विरुद्ध व्यवहार के लिए क्रिकेट बोर्ड आईसीसी के समक्ष मुद्दा उठाएगा।इससे कप्तान और
कोच ने राहत की भारी साँस ली है।
सभी खेलप्रेमियों से भी आग्रह है कि संकट की इस घड़ी में वह टीम का
मजबूती से साथ दें।खिलाड़ियों की परफॉरमेंस को देखते हुए यदि कोई विज्ञापन कम्पनी
किसी खिलाड़ी के पेट पर लात मारती है तो उसका घोर विरोध होना चाहिए।
दैनिक भास्कर,डीबीस्टार में 22/08/2014 को प्रकाशित
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