धरतीपकड़ जी धूल-धक्कड़ झाड़कर फिर से खड़े हो गए हैं।बहुत दिनों से धूलि-धूसरित
होकर वे किसी खोह में घुसे हुए थे।ढोल-नगाड़ों की आवाजें उन्हें दूर से ही चिढ़ा रही
थीं,पर अचानक थाप रुकी तो उनकी जान में जान आई।हम भी उनकी बिगड़ती दशा को देखकर
चिंतित हो उठे थे कि इनका तो चलो ठीक है पर देश का क्या होगा ? देश बचने के लिए
उनका बचना ज़रूरी था और लो,अब तो वे बच भी गए।सही समय पर उन्हें संजीवनी मिल गई।
हमने उनके पुनर्जीवित होने पर बधाई दी और कारण पूछा,वे एकदम से फट पड़े,कहने
लगे ‘हमें अपने से ज्यादा जनता पर विश्वास था।जो जनता चार महीने पहले मूरख बनी थी,वह
अब काफ़ी समझदार लग रही है।यूँ कहूँ तो घणी बुद्धिमान हो ली।वह सही तरीके से हमारा
समाजवाद समझ गई है।हमने भी देश-सेवा के लाने अपनी तीन पीढ़ियों को झोंक दिया है।’हमने
पलटकर फिर सवाल किया,’जिन वजहों से उसने आपको ज़मीन पर पटका था,क्या अब वे वजहें
खत्म हो गईं हैं ?’
‘नहीं जी,वजहें तो खत्म नहीं हुईं और न कभी हो सकती हैं।बस,वो अपना
ठिकाना बदल लेती हैं।हम कल जिन वजहों से हारे थे,आज विरोधी के परास्त होने की वही
वजहें हैं।’धरतीपकड़ जी ने चेहरे पर पूरा आत्मविश्वास लौटाते हुए कहा।
‘इन चुनावों से आपने क्या सबक लिया है ?’ हमने हिम्मत करके पूछ ही
लिया।वे बोले,’सबक तो उनको मिला है जी,इसलिए सीखना भी उन्हें ही चाहिए।पिछली बार
हमने सीखा था,अब उनकी बारी है ।’ ‘फिर तो
ज़श्न बनता है’ हमने सवालिया नज़रों से जुबान लपलपाई।वे भी कब पीछे हटने वाले
थे,बोले,’अपनी जीत पर दस किलो और उनकी हार पर दस कुंटल लड्डू का आर्डर दे दिया है।’
यह बातचीत जारी थी कि तभी अच्छे लाल जी आते दिखाई दिए।हमने उनको
सांत्वना देने की कोशिश की पर वे बिफर उठे।कहने लगे,’यह उपचुनाव क्या होते हैं ?
लव जिहाद क्या है ? अजी सौ दिन कुछ होते हैं क्या ?आप दस-बीस साल इंतज़ार नहीं कर
सकते हैं ?’ कहकर उन्होंने हमें खा जाने वाली नजरों से देखा।हमसे देखा नहीं गया तो
देह में बची पूरी ताकत बटोरकर पूछ ही बैठे ,’ छात्र संघ चुनावों में जमकर नृत्य
करने वाले उपचुनावों में ‘मेंहदी रचे हाथ’ प्रतियोगिता में भाग लेने चले गए थे
क्या ? इस प्रश्न को सहजता से झेलते हुए वे अंतिम समाधान की तरह बोले ,’जनता बड़ी
जातिवादी और अधर्मी हो गई है।यह ज़रूर शोध का विषय है कि संत और महंत की मेहनत पर
पानी कैसे फिर गया ,पार्टी इस पर विचार अवश्य करेगी।’
हमने देखा,तब तक धरतीपकड़ जी अपने कार्यकर्ताओं से घिर चुके थे।कुछ
कार्यकर्ता अगली दीवाली का पूरा इंतजाम करके आए थे।उनके दिये में इतना तेल दिख रहा
था कि जिससे एक आला रोशन हो सके।
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