सरकार ने बड़ी हँसी-ख़ुशी सौ दिन पूरा कर लिए हैं।ये दिन उपलब्धियों भरे
रहे हैं, पर कुछ मोतियाबिंद के मरीजों को ‘अच्छे दिन’ फिर भी नहीं दिखाई दे रहे
हैं सो उनके लिए एक फ़िल्म बनाई गई है।सरकार को तो शुरू से ही पता था कि वह सौ दिन अवश्य
पूरा करेगी,इसलिए सभी मंत्रियों को समुचित मन्त्र दे दिए गए थे।पहले वाली सरकार
नादान थी.वह मंत्रियों को एजेंडा देती थी, जो कभी भी पूरा नहीं हो सकता था।इससे
जनता यही समझती कि सरकार निकम्मी है।नई सरकार बेहद चतुर और सतर्क है,इसलिए उसने
काम के बजाय शासन के मन्त्र बाँटे हैं ।इन मन्त्रों का जाप करके सौ दिन क्या पूरे
पाँच साल बिताये जा सकते हैं।
जनता की याददाश्त बहुत कमज़ोर होती है,यह बात सरकार अच्छी तरह से जानती
है।चुनावों से पहले लगता था कि
मंहगाई,भ्रष्टाचार और बलात्कार जैसी समस्याएँ देश को ख़त्म करके रख देंगी।लेकिन
देखिये,’अच्छे दिनों’ की छाँव तले जब सौ दिन पूरे हुए हैं,देश बचा हुआ है पर
समस्याएँ छूमंतर हो गई हैं।इतने कम दिनों में जब इतना बदलाव महसूस किया जा सकता है
तो पूरे पाँच साल में और उसके बाद अगले पाँच साल में देश का पूरा इतिहास ही बदल
जायेगा।
अब टीवी और अख़बार में शिक्षा,बेरोजगारी और कुशासन पर ज्यादा चर्चा
सुनने को नहीं मिलती।इससे सिद्ध होता है कि देश के लिए ये समस्याएँ रही नहीं।अब
धर्म,संप्रदाय,जिहाद पर फोकस किया जा रहा है क्योंकि यदि बदलाव होना है तो सभ्यता
और संस्कृति का हो। जब सारी समस्याएँ इन्हीं से जुड़ी हैं तो जाहिर है,इसमें समय
लगेगा।सरकार जनता से वह समय स्वयं ले लेगी।इतना तो उसका भी हक़ बनता है।।इसलिए
सरकार का ढोल बज रहा है और आपको नहीं अच्छा लगता है तो आप अपने कान बंद कर लीजिये।
इतनी सारी उपलब्धियाँ इतने कम समय में मिलना एक दुर्लभ घटना की तरह है।सरकार
की शुरुआत में ही कुछ विद्वेषीजन छींकने लगे थे,तभी उसने स्पष्ट रूप से कह दिया था
कि उसे हनीमून पीरियड के लिए कम से कम सौ दिन चाहिए।सब यही समझ भी रहे थे कि सरकार
का हनीमून पीरियड चल रहा है मगर सौ दिन आते-आते अंदर से अफवाह निकल आई ।अभी तक यह
नहीं पता चल पाया है कि यह अफवाह ‘अच्छे दिनों’ को लेकर है या हनीमून के बारे में।कुछ
लोग इसे बुजुर्गों का शाप बता रहे हैं तो कुछ कह रहे हैं कि यह महज़ अफवाह है।
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