नैतिकता जी बड़ी तेजी से राजभवन की ओर भागी जा रही थीं।हम बड़ी मुश्किल से उनसे बचे नहीं तो टकरा ही जाते।इस भगदड़ का कारण पूछने पर नैतिकता जी ने बताया कि अचानक उनकी माँग बढ़ गई है और वे अपने प्रति इस अप्रत्याशित अनुराग के लिए तैयार नहीं थीं।वे आगे कहने लगीं,’अभी अभी राजभवन से सूचना आई है कि जनहित जी की बिगड़ती हालत के लिए दोषी सिर्फ मैं हूँ और अब आगे ऐसी स्थिति कतई स्वीकार नहीं की जा सकती है।वे महीनों से अनाथ पड़े हैं और हमारी तरफ़ टुकुर-टुकुर निहार रहे हैं।’
हम उनके इस कथन से भौंचक रह गए।जब समझ में कुछ नहीं आया तो उनकी ओर सवालिया नज़रों से देखने लगे।वे मामले को बिलकुल साफ़ करने के मूड में दिख रही थीं।उन्होंने हमें अपने पीछे-पीछे आने का संकेत दिया।हम मंत्रमुग्ध हो उनका अनुसरण करने लगे।वे अब तक अपने को सामान्य कर चुकी थीं इसलिए उनकी आवाज़ में अब कोई थरथराहट भी नहीं थी।हमारी जिज्ञासा को शांत करते हुए वे बताने लगीं,’ मैंने इस बीच बहुत अकेलापन भोगा है,जनहित जी को भी हमने बहुत मानसिक संताप दिया है।मुझसे उनका तड़पना अब देखा नहीं जाता।राजभवन भी चाहता है कि मैं अब कोई ना-नुकुर न करूँ,इसी में उसका भी हित निहित है।इसलिए लोक-लाज के दिखावटी बंधन तोड़कर,मैं जनहित जी को अपनाने जा रही हूँ।आप इस सम्बन्ध से सहमत हैं ?’
‘हाँ,हाँ क्यों नहीं ? अगर आपने न्योता दिया है तो हम अस्वीकार नहीं कर सकते।अगर आपने दावत क़ुबूल की है तो हम भी उसमें शरीक़ होंगे।हम आपसे अलग थोड़े ही हैं।राज्य के आमन्त्रण को न स्वीकारना घोर अशिष्टता होगी और कम से कम हमसे तो अब यह नहीं हो पायेगा।आपको इस पवित्र बंधन की बधाई पर हमारे एक सवाल का जवाब दोगी क्या ?’
‘बिलकुल जी।हम तो आत्मा की पुकार के साथ हैं और उसको अपने साथ कर चुके हैं सो अब किसी भी प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं।पूछिए जो पूछना है।’ नैतिकता जी ने बिना रुके,ठिठके जवाब दिया।
’इतने दिनों तक आपने जनहित जी को कष्ट क्यों दिया,वे तो आपसे गले मिलने को कब से आतुर बैठे थे ?’ हमने भी तपाक से पूछ ही डाला।
‘दरअसल,हमारे पास डेट्स की समस्या थी।उस समय हम किसी और के साथ डेटिंग पर थे।अब हम भी खाली हैं और जनहित जी भी;सो कोई समस्या नहीं रही।हनीमून-पीरियड के लिए भी हमें अच्छा–खासा पैकेज मिल रहा है तो क्यों मना करें ?’ इतना कहकर नैतिकता जी ने खुला हुआ घूँघट पूरी तरह उघाड़ दिया और राजभवन में प्रविष्ट हो गई।
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