अभी तक हम यह सुनते आये थे कि हमारे यहाँ सरकारें भगवान-भरोसे चलती हैं पर अबकी बार यह रहस्योद्घाटन भी हुआ कि सरकारें बनती भी उसी के भरोसे हैं।आम आदमी समझ रहा था कि दिल्ली में अद्भुत बहुमत से बनी सरकार उसके वोट से बनी है,पर खुद सरकार ने साफ़ कर दिया है कि इसमें ऊपरवाले का हाथ रहा।उसी की मंशा थी कि दिल्ली में किसकी सरकार बने।हारने वालों ने जब यह रहस्य सुना तो उनको लगा कि अच्छा ही हुआ कि उन्होंने मन से मेहनत नहीं की।उनके नेता ने भी पहले ही बता दिया था कि वे सब खुशनसीब के साथ हैं और उन्हें कुछ नहीं करना है ।इसीलिए उन्होंने इस बार किसी से वादा भी नहीं किया।आख़िरकार वो खुशनसीब निकले कि उन्हें कोई वादा नहीं पूरा करना है।
इस चुनाव से यह भी फायदा हुआ है कि आम आदमी और सरकार बिलकुल बराबरी के स्तर पर आ गए हैं।आम आदमी अपनी हर छोटी-बड़ी समस्या के लिए ऊपरवाले की शरण में जाता है तो अब सरकार को भी ऊपरवाले की दरकार है।इससे सामाजिक समरसता तो प्रकट होती ही है,जवाबदेही जैसी फिजूल की लटकन से भी निजात मिलती है।एक को चुनाव से पहले ईश्वर की घड़ी के मुताबिक मैदान में उतारा गया था तो दूसरे को चुनाव जीतने के बाद ईश्वर की मंशा पूरा करने के लिए कुर्सी पर बिठाया गया है।यह रामराज्य नहीं तो और क्या है,जहाँ पक्ष-विपक्ष और आम अवाम सब एक ही दर पर खड़े हैं।इनमें से अगर किसी के साथ भी कुछ बुरा होता है तो यह उसका नसीब।
आम आदमी के जीवन में ईश्वर का अहम रोल होता है।कदम-कदम पर वह जनता की तकलीफों को दूर करने के लिए अपने को आगे ले आता है।उसका न अपना कोई घोषणा-पत्र है और न ‘विज़न’। वह चाहे दूसरों के द्वारा किये गए वादे पूरा करे या नहीं,उनकी मन्नतें ज़रूर पूरी करता है।दुआ में इतनी ताकत होती है कि वह सरकार बनाती है और चलाती भी।जो आज सरकार के बाहर हैं,उनको भी बस उसी का आसरा है,भले ही इसके लिए पन्द्रह या पचीस साल लग जाएँ।उन्हें पता है कि ऊपरवाले के घर देर है,अंधेर नहीं।यही बात अब जनता को भी पता चल गई है।
हमें उम्मीद है कि सरकारों के कामकाज पर आलोचक अपना मुँह बंद रखेंगे।जो भी हो रहा है या होगा,सब ऊपरवाले की मंशा है।कौन खुशनसीब है या बदनसीब,यह उसकी अपनी किस्मत है !
इस चुनाव से यह भी फायदा हुआ है कि आम आदमी और सरकार बिलकुल बराबरी के स्तर पर आ गए हैं।आम आदमी अपनी हर छोटी-बड़ी समस्या के लिए ऊपरवाले की शरण में जाता है तो अब सरकार को भी ऊपरवाले की दरकार है।इससे सामाजिक समरसता तो प्रकट होती ही है,जवाबदेही जैसी फिजूल की लटकन से भी निजात मिलती है।एक को चुनाव से पहले ईश्वर की घड़ी के मुताबिक मैदान में उतारा गया था तो दूसरे को चुनाव जीतने के बाद ईश्वर की मंशा पूरा करने के लिए कुर्सी पर बिठाया गया है।यह रामराज्य नहीं तो और क्या है,जहाँ पक्ष-विपक्ष और आम अवाम सब एक ही दर पर खड़े हैं।इनमें से अगर किसी के साथ भी कुछ बुरा होता है तो यह उसका नसीब।
आम आदमी के जीवन में ईश्वर का अहम रोल होता है।कदम-कदम पर वह जनता की तकलीफों को दूर करने के लिए अपने को आगे ले आता है।उसका न अपना कोई घोषणा-पत्र है और न ‘विज़न’। वह चाहे दूसरों के द्वारा किये गए वादे पूरा करे या नहीं,उनकी मन्नतें ज़रूर पूरी करता है।दुआ में इतनी ताकत होती है कि वह सरकार बनाती है और चलाती भी।जो आज सरकार के बाहर हैं,उनको भी बस उसी का आसरा है,भले ही इसके लिए पन्द्रह या पचीस साल लग जाएँ।उन्हें पता है कि ऊपरवाले के घर देर है,अंधेर नहीं।यही बात अब जनता को भी पता चल गई है।
हमें उम्मीद है कि सरकारों के कामकाज पर आलोचक अपना मुँह बंद रखेंगे।जो भी हो रहा है या होगा,सब ऊपरवाले की मंशा है।कौन खुशनसीब है या बदनसीब,यह उसकी अपनी किस्मत है !
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