मतदाता वोट डालकर अपने घर भी नहीं पहुँचा था कि टीवी में न्यूज़ चैनलों और पोल वालों ने मिलकर सरकार बना डाली।सरकार अब एक बार में नहीं बनती और ना ही केवल मतदाता बनाता है।मतदान से पहले और मतदान के बाद बाहर निकलने वाले पोल भी असली सरकार बनने से पहले अपनी सरकार बना डालते हैं।अब केवल बटन दबाने से भी सरकार नहीं बनती।पोल वाले अपने काम में इतने कुशल हो गए हैं कि वे मतदान करके बाहर आते हुए वोटर का चेहरा बखूबी समझ लेते हैं।उन्हें पता है कि वोट देने से पहले भले ही कोई वोटर झूठ बोल दे,पर बाद में कतई नहीं।बावजूद इसके, हर बार चुनाव पूर्व सर्वे किया जाता है।त्रासदी तो यही है कि एग्जिट पोल एक बार ही हो सकता है।
एग्जिट पोल भले ही एक बार आता हो,पर यह सबको कुछ न कुछ दे जाता है।जीतने वाले के लिए जहाँ सतरंगी सपने बुनने की रफ़्तार तेज हो जाती है,वहीँ संभावित हार वाले को सहज बनने का पर्याप्त मौक़ा मिल जाता है।इस बीच इतना समय मिल जाता है कि जीतने वाला फूलों का टोकरा और हारने वाला कायदे का कोई ठीकरा ढूँढ ही लेता है।चैनल पर पैनल-दर-पैनल चर्चा होती है और हारने वाले की कई खूबियाँ उसकी खामियों में तब्दील हो जाती हैं।जिसे जीता हुआ बताया जाता है,उसकी हर खामी,उसकी चतुराई भरी चाल में बदल जाती है।
एक तरफ एग्जिट पोल में जीतने वाला अपनी सरकार की प्राथमिकतायें गिनाने लगता है,वहीँ दूसरी ओर हारने वाला अपनी हिम्मत को असल परिणाम आने तक साधे रखता है।वह अब जीतने का दावा नहीं करता बल्कि निवेदन करता है कि आख़िरी परिणाम उसके पक्ष में ही आयेंगे।इस वक्त चैनलों की टीआरपी हाई पर होती है।खुदा-न-खास्ता,यदि एग्जिट पोल के उलट परिणाम आते हैं तो इसके जिम्मेदार सिर्फ पोल वाले होंगे।हारा हुआ पक्ष अचानक ‘पोल’ पर चढ़ जायेगा।जो अभी तक अपनी जीत को जनता की जीत बता रहा था,वह पोल में हुई पोल को खोल देगा।
टीवी चैनलों के दोनों हाथों में लड्डू हैं।वे एग्जिट पोल की सरकार बनाने के बाद वास्तविक नतीजे आने का इंतज़ार कर रहे हैं।इसके बाद वे सभी असल सरकार बनाने में भी इतने ही जी-जान से जुट जायेंगे।प्रत्याशी चुनावी-थकान से निपटकर अपनी हजामत बनवा रहे हैं और जनता को भी इस बात का इंतज़ार है कि उसकी ‘हजामत’ कौन बनाता है !
एग्जिट पोल भले ही एक बार आता हो,पर यह सबको कुछ न कुछ दे जाता है।जीतने वाले के लिए जहाँ सतरंगी सपने बुनने की रफ़्तार तेज हो जाती है,वहीँ संभावित हार वाले को सहज बनने का पर्याप्त मौक़ा मिल जाता है।इस बीच इतना समय मिल जाता है कि जीतने वाला फूलों का टोकरा और हारने वाला कायदे का कोई ठीकरा ढूँढ ही लेता है।चैनल पर पैनल-दर-पैनल चर्चा होती है और हारने वाले की कई खूबियाँ उसकी खामियों में तब्दील हो जाती हैं।जिसे जीता हुआ बताया जाता है,उसकी हर खामी,उसकी चतुराई भरी चाल में बदल जाती है।
एक तरफ एग्जिट पोल में जीतने वाला अपनी सरकार की प्राथमिकतायें गिनाने लगता है,वहीँ दूसरी ओर हारने वाला अपनी हिम्मत को असल परिणाम आने तक साधे रखता है।वह अब जीतने का दावा नहीं करता बल्कि निवेदन करता है कि आख़िरी परिणाम उसके पक्ष में ही आयेंगे।इस वक्त चैनलों की टीआरपी हाई पर होती है।खुदा-न-खास्ता,यदि एग्जिट पोल के उलट परिणाम आते हैं तो इसके जिम्मेदार सिर्फ पोल वाले होंगे।हारा हुआ पक्ष अचानक ‘पोल’ पर चढ़ जायेगा।जो अभी तक अपनी जीत को जनता की जीत बता रहा था,वह पोल में हुई पोल को खोल देगा।
टीवी चैनलों के दोनों हाथों में लड्डू हैं।वे एग्जिट पोल की सरकार बनाने के बाद वास्तविक नतीजे आने का इंतज़ार कर रहे हैं।इसके बाद वे सभी असल सरकार बनाने में भी इतने ही जी-जान से जुट जायेंगे।प्रत्याशी चुनावी-थकान से निपटकर अपनी हजामत बनवा रहे हैं और जनता को भी इस बात का इंतज़ार है कि उसकी ‘हजामत’ कौन बनाता है !
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