रविवार, 22 फ़रवरी 2015

राजधानी में दाखिला

अपने तीन साल के बेटे चुन्नू को लेकर जैसे ही ‘न्यू इंग्लिश पब्लिक स्कूल’ के गेट पर पहुँचा,वहाँ तैनात मुस्टंडे से गार्ड ने रोक दिया।मैंने उसे बताया कि नर्सरी में एडमिशन के लिए आए हैं तो उसने वहीँ पर इंटरव्यू शुरू कर दिया।मुझे सशंकित नज़रों से देखते हुए बोला-‘एकाउंट है आपका ?’।मैंने भी झट से उत्तर दिया,’जी क्यों नहीं ! अभी पिछले महीने ही ‘जन-धन’ योजना में खुलवा लिया है।चाहो तो चेक कर लो,मिनिमम बैलेंस तो अभी भी पड़ा है,निकाला नहीं है।’इतना सुनते ही गार्ड आपे से बाहर हो गया।कहने लगा-‘भाई साहब,आप किस दुनिया में रह रहे हैं ? मैं सोशल मीडिया में,मसलन ट्विटर और फेसबुक में एकाउंट की बात कर रहा हूँ।’


अभी भी बात मेरे भेजे में चढ़ नहीं पाई थी।मैंने यूँ ही तुक्का मारा-‘ तुम्हारा कहने का मतलब जिसमें अपने प्रधानमंत्री जी और अमिताभ बच्चन जी ‘ट्विट-ट्विट’ खेलते रहते हैं ?’ ‘हाँ जी।यह स्कूल बिलकुल लेटेस्ट है और इसलिए इसमें उन्हीं लोगों का एडमिशन होता है ,जो हरदम अपडेट रहते हैं’ गार्ड ने महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया।मैंने एक बार अपने चुन्नू को निहारा फिर उससे मुखातिब हुए-’पर भाई,एडमिशन तो बेटे का होना है,मेरा नहीं।मुझे अंदर तो जाने दें।मेरा बेटा बड़ा होनहार है।पंडितजी ने बताया है कि बड़ी शुभ घड़ी में ये बालक पैदा हुआ है।बहुत दूर तक जायेगा’


‘हाँ तो सही ही कहा है पंडिज्जी ने।यह बालक अपने घर से पन्द्रह-बीस किलोमीटर दूर जाकर ही पढाई कर पायेगा।’गार्ड ने भविष्यवाणी की विस्तृत व्याख्या कर दी।’पर यह स्कूल तो सबसे नजदीक है।इसी में क्यों न जाए ?’मैंने सतर्क होकर उत्तर दिया।गार्ड भी खूब घुटा हुआ था,तुरंत बोल पड़ा-माना यह स्कूल नजदीक है पर आपकी पॉकेट से तो दूर है।’


तभी गेट पर इलाके के विधायक जी दिखाई दिए।मैंने उनसे स्कूल के प्रांगण तक पहुँचने में मदद की गुहार लगाई ।वे पसीजे भी और इस तरह हम चुन्नू सहित अंदर दाखिल हुए।


अंदर मेला-सा लगा था।एक काउन्टर पर थोड़ी कं भीड़ थी,हम उधर ही भिड़ गए।एक कन्या सबके आवेदन-पत्र ले रही थी।मैंने भी अपना आवेदन सामने पेश किया तो कन्या ने बताया कि सारे डाकूमेंट यहाँ जमा कर दीजिये और लाइन में लग जाइए।सामने डिस्प्ले बोर्ड पर अपना नम्बर देखते रहिए,जब आएगा,बच्चे के साथ कमरे के अंदर आ जाना।मैंने स्लिप में देखा मेरा सत्तावनवां नम्बर था।डिस्प्ले बोर्ड में फ़िलहाल दसवाँ नम्बर चल रहा था।मैं चुन्नू को लेकर लाइन में खड़ा हो गया।


पूरे तीन घंटे बाद मेरा नम्बर आया तो अचानक चुन्नू को गायब पाया।अब मेरी घबराहट बढ़ गई थी।अगर मैं चुन्नू को ढूँढने निकलता हूँ तो इधर नम्बर कट जायेगा।इस उधेड़बुन में मैंने सोचा,बात तो हमें ही समझनी है,चले चलते हैं।स्लिप लेकर अंदर पहुँचा तो सामने पड़े बड़े से सोफे पर तीन मूर्तियाँ पसरी हुई थीं।बीच वाली मूर्ति ने पहला सवाल यही किया कि बच्चा कहाँ है।मैंने उन्हें बताया कि अभी तो यहीं था,बस इधर-उधर निकल गया होगा।बाईं तरफ बैठी मूर्ति तब तक सक्रिय हो चुकी थी।कहने लगी-‘क्या हम यहाँ झख मारने के लिए बैठे हैं ? आप अपना बच्चा तक नहीं संभाल सकते,इतना बड़ा स्कूल कैसे अफोर्ड कर पाओगे ?’।मैंने थोड़ा सहमते हुए उत्तर दिया-‘पर स्कूल को अपने कंधे पर थोड़ी उठाना है।बच्चा है,मिल जायेगा।आप डाकूमेंट चेक कर लें’।


दाईं ओर बैठी मूर्ति ने पहले मुझे ऊपर से लेकर नीचे तक देखा,फिर बम फोड़ा-‘अब तक छप्पन हो चुके हैं,पर ऐसा पीस पहली बार दिखाई दे रहा है।क्या क्वालीफिकेशन है आपकी ?’ मैंने थ्री-पीस पहने उस मूर्ति को जवाब देने के बजाय प्रश्न कर दिया-‘मेरी क्वालिफिकेशन का क्या मतलब है ? मैं बेटे के एडमिशन के लिए आया हूँ,अपनी नौकरी के लिए नहीं।


बीच वाली मुख्य मूर्ति ने हस्तक्षेप करते हुए कहा-‘आप किस तरह यहाँ एडमिशन चाहते हैं ? हम एलूमनी को प्रेफर करते हैं।ऐसा कुछ है तो बताओ ?’


मैंने डरते हुए उत्तर दिया,’मगर मुझे पता चला था कि बिना किसी ‘मनी’ के यहाँ एडमिशन हो जायेगा।अख़बार में आज ही पढ़कर आया हूँ कि स्कूल गरीब बच्चों को एडमिशन देने से मना नहीं कर सकते।न तो मेरे पास देने को आलू हैं और ना ही मनी।‘


इतना सुनते ही स्कूल की घंटी बज गई।मुझसे कहा गया कि मेरा समय अब समाप्त होता है।मैं बाहर आकर चुन्नू को घर ले जाने की तलाश में जुट गया।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

साहित्य-महोत्सव और नया वाला विमर्श

पिछले दिनों शहर में हो रहे एक ‘ साहित्य - महोत्सव ’ के पास से गुजरना हुआ।इस दौरान एक बड़े - से पोस्टर पर मेरी नज़र ठिठक ...