लो जी,हमने अपना वादा पूरा किया.
क्या ख़ाक पूरा किया है ? वादा वही जो पूरा न किया जाय.
लेकिन हमने तो वह किया जो कहा.यही तो ईमानदारी है.
जी नहीं यह ईमानदारी नहीं बाजीगरी है.बात तो तब है कि जो कहा जाये उसके उलट किया जाय और किया वही जाय,जिसके उलट कभी कहा हो.
पर यह तो जनता के साथ धोखा है.जनमत का सरासर अपमान है.
नहीं,बिलकुल नहीं.370 हो या 70 में 3 कम,हम अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करते.चाहे महाराष्ट्र हो या जम्मू-कश्मीर,हम बड़े लचीले हैं और हमारे पार्टनर बहुत मज़बूत.एक ‘आप’ हैं जो ‘मुफ्तखोरी’ से टांका भिड़ाये हैं.
हम तो जनता को बिजली-पानी मुफ्त में दे रहे हैं पर तुम तो सबका पेट भरने वाली ज़मीन ही हथियाने में लगे हो ?
देखिए,विकास-विरोधी नजरिया है यह.हम किसी दामाद को ज़मीन देने के खिलाफ़ हैं इसीलिए हम चाहते हैं कि बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ इसे ले जाँय और विकास पैदा करें.
मगर चुनाव से पहले तो आप किसानों के हमदर्द थे.अब ऐसा क्या हो गया ?
हमदर्द तो हम अब भी हैं पर धनिया-पुदीना उगाने वालों के सहारे देश आगे नहीं बढेगा.उसके लिए तो तेल निकालने वाली कम्पनियाँ ही सक्षम हैं.वे कायदे से सबका तेल निकालेंगी.बहुमत हमारे साथ है.
हमारे पल-पल का हिसाब लेने वाले अब नौ महीने का हिसाब क्यों नहीं देते ?
लिखो...देश की सबसे बड़ी समस्या ‘काला-धन’ जुमला बन गई,किसानों के बिना कहे उनका हित किया जा रहा है,राम-मंदिर के साथ धारा 370 को गंगा-स्नान करा दिया गया है.इससे गंगा भी शुद्ध होगी.भूखे पेट में कुछ जाए,इसके लिए ‘मन की बात’ का नियमित संचार किया जा रहा है.भूले-भटकों की घर-वापसी कराई जा रही है.साथ ही कई अध्यादेश लाये गए हैं जो देश का नक्शा बदल देंगे.
पर यह सब तो घोषणा-पत्र में कहीं नहीं था ?
हमने पहले ही कहा है कि हम जो करते हैं,वही हमारा घोषणा-पत्र होता है.घोषणा-पत्र में किये गए वादे चुनावी होते हैं जो चुनाव के साथ ही हवा हो जाते हैं.आप ने गलत मिसाल पेश की है.राजनीति ऐसे थोड़ी ना चलेगी.
लेकिन हमने तो वह किया जो कहा.यही तो ईमानदारी है.
जी नहीं यह ईमानदारी नहीं बाजीगरी है.बात तो तब है कि जो कहा जाये उसके उलट किया जाय और किया वही जाय,जिसके उलट कभी कहा हो.
पर यह तो जनता के साथ धोखा है.जनमत का सरासर अपमान है.
नहीं,बिलकुल नहीं.370 हो या 70 में 3 कम,हम अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करते.चाहे महाराष्ट्र हो या जम्मू-कश्मीर,हम बड़े लचीले हैं और हमारे पार्टनर बहुत मज़बूत.एक ‘आप’ हैं जो ‘मुफ्तखोरी’ से टांका भिड़ाये हैं.
हम तो जनता को बिजली-पानी मुफ्त में दे रहे हैं पर तुम तो सबका पेट भरने वाली ज़मीन ही हथियाने में लगे हो ?
देखिए,विकास-विरोधी नजरिया है यह.हम किसी दामाद को ज़मीन देने के खिलाफ़ हैं इसीलिए हम चाहते हैं कि बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ इसे ले जाँय और विकास पैदा करें.
मगर चुनाव से पहले तो आप किसानों के हमदर्द थे.अब ऐसा क्या हो गया ?
हमदर्द तो हम अब भी हैं पर धनिया-पुदीना उगाने वालों के सहारे देश आगे नहीं बढेगा.उसके लिए तो तेल निकालने वाली कम्पनियाँ ही सक्षम हैं.वे कायदे से सबका तेल निकालेंगी.बहुमत हमारे साथ है.
हमारे पल-पल का हिसाब लेने वाले अब नौ महीने का हिसाब क्यों नहीं देते ?
लिखो...देश की सबसे बड़ी समस्या ‘काला-धन’ जुमला बन गई,किसानों के बिना कहे उनका हित किया जा रहा है,राम-मंदिर के साथ धारा 370 को गंगा-स्नान करा दिया गया है.इससे गंगा भी शुद्ध होगी.भूखे पेट में कुछ जाए,इसके लिए ‘मन की बात’ का नियमित संचार किया जा रहा है.भूले-भटकों की घर-वापसी कराई जा रही है.साथ ही कई अध्यादेश लाये गए हैं जो देश का नक्शा बदल देंगे.
पर यह सब तो घोषणा-पत्र में कहीं नहीं था ?
हमने पहले ही कहा है कि हम जो करते हैं,वही हमारा घोषणा-पत्र होता है.घोषणा-पत्र में किये गए वादे चुनावी होते हैं जो चुनाव के साथ ही हवा हो जाते हैं.आप ने गलत मिसाल पेश की है.राजनीति ऐसे थोड़ी ना चलेगी.
सब मिले हुए हैं जी.हम भी देखते हैं कि इस खिचड़ी में मिलने का हमारा कितना स्कोप है ?बाजीगरी करनी केवल तुम्हें ही नहीं आती.
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