गज़ब उलटबाँसी है।इधर फागुन में सावन बरस रहा है और उधर बजट के बाद रोने के लिए आम आदमी एक कंधे को तरस रहा है।सरकार ने बिलकुल साफ़ कह दिया है कि वह अपना ख़याल खुद रखे।वह चाहे तो अच्छे दिनों की छतरी लगाकर इस बेमौसम की बारिश में नाच सकता है।उसे अपना ख्याल रखने को इसलिए भी कहा गया है क्योंकि वह अब कोई बच्चा नहीं रहा,बड़ा हो गया है।कहा जाता है कि आम आदमी हाल-फ़िलहाल तक मध्य वर्ग में ही शुमार होता था पर जबसे दिल्ली में ‘आम आदमी’ की सरकार बनी है,वह ख़ास हो गया है।जिस आम आदमी ने अपने ‘विकास’ को नज़र-अंदाज़ करते हुए दिल्ली में अराजकता का साथ दिया,पूरे देश से उसका बोरिया-बिस्तर गोल करना ज़रूरी था।यानी मध्य वर्ग को ‘आम आदमी’ होने का इनाम मिला है।किसी ज़र्जर बस में बैठी हुई सवारी ’अपने सामान की रक्षा स्वयं करें’ की तर्ज़ पर वह ‘अपना ख्याल खुद रखने वाला’ अब एक आत्म-निर्भर तबका बन चुका है।
सरकार ने ‘मिडिल क्लास’ को उसके हाल पर यूं ही नहीं छोड़ा है।यह वही ‘कैटल क्लास’ है,जो चुनावों में झुंड बनाकर उसे वोट देने आया था।उसके वोट की स्याही इतनी भी चटख नहीं होती कि वह पाँच साल तक चले।वोट से केवल सरकार बनती है पर चलने के लिए तो नोट चाहिए और इस काम के लिए ‘मिडिल क्लास’ की नहीं ‘मिडिल मैन’ की ज़रूरत होती है।यह बात अगर कोई नहीं समझता तो यह उसकी नादानी है।कुछ सिरफिरे फिर भी कह रहे हैं कि सरकार को जिस ‘मध्य वर्ग’ ने वोट दिया है,उसे उसका ख़याल पहले रखना चाहिए पर सरकार तो समझदार ठहरी ।उसे बखूबी पता है कि मिडिल क्लास के वोट और कार्पोरेट के नोट को कब और कहाँ निवेश करना है।सबसे पहले चुनाव के समय खाली हुए सूटकेस भरे जायेंगे,फिर ’मनरेगा’ के गड्ढे।ये गड्ढे भी तब तक नहीं भरेंगे,जब तक तेल और कोयले की सारी खदानें खुद नहीं जातीं !
वैसे भी इस देश के मिडिल-क्लास का हाजमा बहुत मज़बूत है।घर से लेकर कार्यालय तक उसे रोज इतने अधिक ख़याल रखने पड़ते हैं कि सरकार के इस छोटे-से आह्वान को पूरा करने के लिए उसे किसी अतिरिक्त श्रम की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।जिस दिन देश का इतना बड़ा वर्ग बिना किसी सरकार के अपना ख़याल रखना शुरू कर देगा,सरकारें बेरोजगार हो जाएँगी।बस देखने वाली बात यह है कि चुनाव के समय यही मिडिल-क्लास अपनी मध्यमा उँगली का क्या और कैसे इस्तेमाल करता है ?
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