उन्होंने ‘माय लव’ को हुक करते हुए ज़ोरदार शॉट मारा और वह सीधा
बाउंड्री-लाइन के बाहर पहुँच गया।यह शॉट जिसे भेजा गया था,उसने उसे बाद में
पकड़ा,संसार की दर्शक-दीर्घा में बैठे निठल्ले लोगों ने पहले लपका।दनादन ट्वीट पर
ट्वीट निछावर हुए और मीडिया को एक बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ मिल गई।दूसरी ओर से भी ‘थैंक
यू’ का ट्वीट लहराता हुआ चला और खिलाड़ी की झोली में समा गया।इसे भी साँस साधे
लोगों ने देखा और उनकी जान में जान आई।इस तरह एक प्रेम-कथा का सार्वजनिक-अभिनन्दन
किया गया और प्रेम सेलेबल होकर धन्य हुआ।प्रेम अब मॉडर्न सेलेब्रिटी है।
एक बार बचपन में हमने भी प्रेम करने की गुस्ताखी की थी।ज्यादा कुछ नहीं ,बस क्लास में साथ पढ़ने वाली एक लड़की के बस्ते में एक छोटी-सी पर्ची डाल दी थी।हमारे ही कुछ ख़ास साथियों की मेहरबानी से मास्टरजी तक बात पहुंची और हमारे प्रेम को सरेआम छड़ी से नवाज़ा गया।यह प्रक्रिया दसियों बार रि-ट्वीट की तर्ज़ पर रिपीट की गई थी।इस तरह मेरा बिना रेटिंग वाला लो-ग्रेड का प्रेम थर्ड-ग्रेड की पिटाई तक पहुँच लिया।खानदान और जान-पहचान के लोग मुझे ऐसी नज़रों से देखते,जैसे मैंने गौ-हत्या जैसा पाप कर लिया हो।
एक बार बचपन में हमने भी प्रेम करने की गुस्ताखी की थी।ज्यादा कुछ नहीं ,बस क्लास में साथ पढ़ने वाली एक लड़की के बस्ते में एक छोटी-सी पर्ची डाल दी थी।हमारे ही कुछ ख़ास साथियों की मेहरबानी से मास्टरजी तक बात पहुंची और हमारे प्रेम को सरेआम छड़ी से नवाज़ा गया।यह प्रक्रिया दसियों बार रि-ट्वीट की तर्ज़ पर रिपीट की गई थी।इस तरह मेरा बिना रेटिंग वाला लो-ग्रेड का प्रेम थर्ड-ग्रेड की पिटाई तक पहुँच लिया।खानदान और जान-पहचान के लोग मुझे ऐसी नज़रों से देखते,जैसे मैंने गौ-हत्या जैसा पाप कर लिया हो।
आज प्रेम को ‘माय लव’ से ‘थैंक यू’ तक का ऐतिहासिक सफ़र करते देखकर मन
बहुत उल्लसित है।कहीं तो है जो प्रेम को बिना कबूतर के पंख मिल गए हैं।कभी हमारे
फ़िल्मी नायकों ने भी प्रेम के लिए कबूतरों को अनुबंधित कर लिया था।अब तो बस ट्विटर
पर एक खाता खोलो और प्रेम को दनादन ट्वीट-रि-ट्वीट करते रहो।ना किसी लुका-छिपी का
डर है और ना ही संदेश के बैकफायर करने का।प्रेम जब ऐसी उच्चता प्राप्त कर लेता है
तो वह पार्कों में पिटता नहीं है बल्कि हमारे आपके ड्राइंग रूम से टीवी की लम्बी
बहसों में पसर कर हिट हो जाता है।यह प्रेम का ग्लोबलीकरण है।जिस चीज़ के पीछे बाज़ार
हो जाता है,वैसे भी वह सभ्य और सामाजिक ट्रेडमार्क बन जाता है।इस मायने में अब
बाजार ही हमारा सच्चा समाज है,खेल,सिनेमा और मीडिया तो महज अदने-से औजार।
किसी को ‘माय लव’ मिला और किसी को ‘थैंक यू’,पर हमें घर बैठे बाराती
बनने का जो असीम सुख मिला है,हम तो उसी से लहालोट हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें