वे झुंड के बीच खड़े हैं।माइक उनकी पकड़ में है।कोशिश देश को पकड़ने की है।सामने माहौल है,उत्साह भी।देश दम साधे सुन रहा है।लग रहा है कि जरा सी चूक हुई कि दम निकला।यह दृश्य एक जगह का नहीं है।क्रांति वही है जो आग की तरह फैले।क्रांतियों के लिए यहाँ खूब स्कोप है;सिनेमास्कोप से लेकर चैनल-स्कूप तक।यह देश गजब अभ्यासी है और क्रांति-फ्रेंडली भी।बहुत पहले कभी वह रुपहला परदा फाड़कर आई थी।क्रांति का क्या है,वह चना बेचने भर से ही आ जाती है और भाड़ झोंकने से भी।तब परदे पर चना इतनी जोर से गरम हुआ था कि निर्माता,निर्देशक सबकी जेब गरम हो गई थी।अब तो साक्षात् प्रकट हो गई है।पूरा देश गरम हो रहा है।
आज़ादी से पहले केवल एक ही क्रांति आई थी।सन सत्तावन की उस तलवार में अब अच्छी-खासी जंग लग चुकी है।इसलिए जबानें ही तलवार का काम कर रही हैं।क्रांति के नए-नए पैकेज आ गए हैं,सुपारी दी जा रही है।इस क्रांति में घर-परिवार त्यागने की जहमत नहीं उठानी पड़ती है।बस दो इंच की जीभ लपलपाइए और क्रांतिकुमार बन जाइए।छोटे पैकेज में बड़ी डील।यानी हर्रा लगे न फिटकरी और ‘सत्यमेव जयते’ की तुरंत स्थापना ।
वे अभी भी खड़े हैं।उन्हें खड़े ही रहना है।चुनाव आएगा,तब भी खड़े होंगे।कुर्सी मिलने तक वे खड़े ही रहेंगे।देश की सेवा के लिए वे इतना तो कर ही सकते हैं।बैठते ही चुप्पी ओढ़ लेंगे।मन हुआ तो ट्वीट कर सक्रियता का प्रमाण दे देंगे।अधूरे काम बैठकर ही पूरे होते हैं।खड़े होकर तो केवल क्रांति की जा सकती हैं।इसीलिए वे अन्याय के खिलाफ़ खड़े हैं।उनके बैठते ही न्याय हो जाएगा।ऐसे न्याय का वे सम्मान करते हैं।उनका संघर्ष अपने लिए नहीं,दलितों और पिछड़ों के लिए है।तब तक वे चुप नहीं बैठेंगे।
उनके हाथ में माइक है और मुँह में जुबान।वह मिसाइल से भी अधिक कारगर है।खड़े-खड़े ही वायरल हो रही है।गली-गली में क्रांति हो रही है।सब अपनी-अपनी जीभें लिए खड़े हैं।माइक वहीँ पहुँच जाते हैं,जहाँ जीभ निकलती है।अलग-अलग किस्म की जीभें हैं।दाँतों के नियन्त्रण से बाहर होते ही जीभें लाखों की हो जाती हैं।आदमी की कीमत गिर जाती है।
देश क्रांति की चपेट में है।नारेबाज स्वतंत्र हैं।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का स्वर्णिम दौर है इसलिए जीभें लटककर बाहर आ गई हैं।रुपहले परदे की क्रांति तो सिनेमा खत्म होने के बाद ठंडी पड़ जाती है पर हमारी आँखों में गिरा यह परदा स्थायी हो रहा है।हमें क्रांति का इंतज़ार है और आजकल क्रांति ऐसे ही आती है।इसीलिए वे खड़े हैं।
आज़ादी से पहले केवल एक ही क्रांति आई थी।सन सत्तावन की उस तलवार में अब अच्छी-खासी जंग लग चुकी है।इसलिए जबानें ही तलवार का काम कर रही हैं।क्रांति के नए-नए पैकेज आ गए हैं,सुपारी दी जा रही है।इस क्रांति में घर-परिवार त्यागने की जहमत नहीं उठानी पड़ती है।बस दो इंच की जीभ लपलपाइए और क्रांतिकुमार बन जाइए।छोटे पैकेज में बड़ी डील।यानी हर्रा लगे न फिटकरी और ‘सत्यमेव जयते’ की तुरंत स्थापना ।
वे अभी भी खड़े हैं।उन्हें खड़े ही रहना है।चुनाव आएगा,तब भी खड़े होंगे।कुर्सी मिलने तक वे खड़े ही रहेंगे।देश की सेवा के लिए वे इतना तो कर ही सकते हैं।बैठते ही चुप्पी ओढ़ लेंगे।मन हुआ तो ट्वीट कर सक्रियता का प्रमाण दे देंगे।अधूरे काम बैठकर ही पूरे होते हैं।खड़े होकर तो केवल क्रांति की जा सकती हैं।इसीलिए वे अन्याय के खिलाफ़ खड़े हैं।उनके बैठते ही न्याय हो जाएगा।ऐसे न्याय का वे सम्मान करते हैं।उनका संघर्ष अपने लिए नहीं,दलितों और पिछड़ों के लिए है।तब तक वे चुप नहीं बैठेंगे।
उनके हाथ में माइक है और मुँह में जुबान।वह मिसाइल से भी अधिक कारगर है।खड़े-खड़े ही वायरल हो रही है।गली-गली में क्रांति हो रही है।सब अपनी-अपनी जीभें लिए खड़े हैं।माइक वहीँ पहुँच जाते हैं,जहाँ जीभ निकलती है।अलग-अलग किस्म की जीभें हैं।दाँतों के नियन्त्रण से बाहर होते ही जीभें लाखों की हो जाती हैं।आदमी की कीमत गिर जाती है।
देश क्रांति की चपेट में है।नारेबाज स्वतंत्र हैं।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का स्वर्णिम दौर है इसलिए जीभें लटककर बाहर आ गई हैं।रुपहले परदे की क्रांति तो सिनेमा खत्म होने के बाद ठंडी पड़ जाती है पर हमारी आँखों में गिरा यह परदा स्थायी हो रहा है।हमें क्रांति का इंतज़ार है और आजकल क्रांति ऐसे ही आती है।इसीलिए वे खड़े हैं।
1 टिप्पणी:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " लोकसभा चैनल की टीआरपी - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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